आइसक्रीम औ बर्जर की चिकनाई दिमाग पे इस तरह हावी होती है ,आपको होश ही नही रहता -कितना खाना है -जी करता है -औ भूख लगे -इसी मुगालते में आप जीमे जाते हैं ,मढे रहतें हैं ,भूख शमन की इत्तला देने वाले हारमोन लेप्टिन औ इंसुलिन नाकारा हो जाते हैं ,इसीलिए जंक फ़ूड का जादू सर चढ़के बोलता है .खाने पर आपका नियंत्रण ही नहीं रहता ,ना पेट भरता है ,ना नीयत ,पेट आप का अपना है ,यह इल्म ही नहीं रहता ।
इसीलिए पोषण विज्ञानी खूराख विज्ञानी ,खूराख -विद डाएट(खूराख )में कमसे कम सेचुरेतिद फेट (संतृप्त वसा )लेने की ताकीद करतें हैं .म्युफा औ प्युफा (एकल -असंत्रिप्त औ बहु -असंत्रिप्त वसा )की हिमायत करतें हैं ,अलबत्ता कुल मिलाकर १५ ग्रेम चिकनाई एक आदमी के लिए काफ़ी बतलाई जाती है -यानी तीन चाय की चमच भर चिकनाई .लेकिन आइसक्रीम ,बर्जर ,पिजा ,चोक्लित में छिपी चिकनाई आपके दिमाग को बेकाबू किए रहती है ,नतीजा होता है ,खाए जाओ ,खाए जाओ ।
डल्लास स्तिथ यु .टी .साउथवेस्ट मेडिकल सेंटर के विज्यानिओं ने पता लगाया है ,उक्त पदार्थों में मौजूद चिकनाई सीधे दिमाग को असरग्रस्त बना ऐसे संकेत कोशिकाओं को भिज्वादेती है जो लेप्टिन औ इंसुलिन से आने वाले संकेतों की उपेक्षा औ परवाह ना करने की हिदायत ही होती है .ऐसे में अपेताएत सप्रेसिंग हारमोन लेप्टिन औ इंसुलिन नाकारा हो जातें हैं .दिमाग पर इन चिक्नाइयों का कहर तीन दिन तक बरपा रहता है ।
आम तौर पर हमारे शरीर के पास एक सक्षम साफ्ट वेअर होता यह समझने बतलाने के लिए ,हमारा पेट भर गया है ,औ अब और नहीं खाना चाहिए ।
लेकिन साहिब यहाँ तो देखते ही देखते पूरी ब्रेन केमिस्ट्री ही बदल जाती है ,चिकनाई सना भोजन दिमाग को भी सुरूर में ले आता है ,हूकिंग हो जाती है इस चिकनाई से दिमाग की औ आप देखते ही देखते इंसुलिन औ लेप्टिन रेसिस्टेंट हो जातें हैं ।
दिमाग आपको यह बतलाना भूल जाता है ,भाई साहिब और नहीं खाना ,खा लिया बस ,अब बस करो ।
विज्ञानियों ने यह भी पता लगाया है -बीफ ,बतर ,चीज़ औ दूध (होल क्रीम मिल्क )में मौजूद चिकनाई पामिटिक एसिड (पी ऐ एल एम् आई टी आई सी -एसिड ) इस पूरी प्रक्रिया को एड लगाती है ,हवा देती है ,कुसूरवार है ।
चूहों और माईस पर संपन्न यह अध्धय्यन खूराख विदों द्वारा संतृप्त वसा की मात्रा सीमित रखने की हिदायतों को बल प्रदान करता है ।
उक्त तीनोंकिस्म की वसा बहुविध चूहों को समान मात्रा तथा समान केलोरी में देने के बाद ही उक्त नतीजे निकाले गए है ।
दी एक्शन वास वेरी स्पेसिफिक तू पामिटिक एसिड विच इज वेरी हाई इन फूड्स देत आर रिच इन सेचुरेतिद फेट्स असली कुसूरवार यही है ।।
बेहतर यही है ,जो चीज़ ज्यादा अच्छी लगती है ,खाइए ज़रूर लेकिन बस थोडी सी ,चख भर लिजीये ताकि मेह्रूमियत महसूस ना हो .वेट लास का यही कारगर तरिका भी है .क्रेश खुराख के फायदे अल्प कालिक ही होतें हैं ,गेट एरा -उन्द डा साइक्लोजिकल अटेचमेंट तू फ़ूड .सारा चस्का जबान का है .परम्परागत भोजन अच्छा है लेकिन मौका लगते ही शादी -ब्याह में लोग जमकर खातें हैं ,गाहे बगाहे ट्रीट लेतें हैं ,पार्टी टाइम में फंसे रहतें हैं ।
महरूम रखने वाली परम्परा गत खुराख पाँच साल तक ही ५-२० फीसद कामयाब रहती है ,लोग फ़िर अपनी औकात पर लौट आतें हैं ,इसीलिए मोटापे को मुल्तवी रखना आज बड़ा मसला है ,केंसर का पुख्ता इलाज़ है ओबेसिटी का नहीं ,जबान के स्वाद से जुड़ी है मोटापे की नवज ।
सन्दर्भ सामिग्री :-इरेजिस्तिबिल :जंक फ़ूड कंट्रोल्स आवर ब्रेन (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १७ ,२००९ ,पृष्ठ १९ ।)
प्रस्तुती मौलिक है :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
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