शोध नतीजे बतलातें हैं ,मैथुन रत महिलाओं में से ७५ फीसद की सिर्फ़ पीनाइल -इंटरकोर्स से तसल्ली नहीं होती ,यौन -आनंद के शिखर को छूने के लियें प्रेम प्रदर्शन के बतौर इन्हें शिखर तक लाने के लिए सेक्स -खिलोनों की प्रेम -क्रीडा के विविध रूपों यथा तंग टिप से क्लित्रस (भग -शिश्न की लिकिंग ),पुरूष की २१ वीं नहीं बाकी उँगलियों की रगड़ सहलाहट भी चाहिए .अब पुरुष ठहरा स्वकेंद्रित ,कुरुक्षेत्र के मैदान में अक्सर सुरक्षा कवच धारण कर वह कूदता है ,औ फटा फट गोला बारी कर दूसरी तरफ करवट ले सो जाता है .उसे अक्सर खबर ही नही होती -उधर कोई हताहत भी हुआ या नहीं ।
ज़ाहिर है ,औरत देशी हो या विदेशी ,फॉर -प्ले ,मैथुन पूर्व प्रेम क्रीडा ,आलिंगन चुम्बन (नख -शिख )का अपना उत्तेजन है ।
कविवर दिनकर ने उर्वशी में लिखा -रूप की आराधना का मार्ग आलिंगन नहीं तो और क्या है ,स्नेह का सोंदर्य को उपहार रस -चुम्बन नहीं तो और क्या है ?और यह भी -सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान तुम कविता ,कुसुम या कामिनी हो ?
बिहारी कहतें हैं ,कहल -वातें हैं अपनी एक मुग्धा नायिका से - सखी वो आतें है ,,सहलातें है -प्रेमांगों को ,नीवी खोलतें हैं ,इतना तो पता रहता है -फ़िर उसके बाद हमें कुछ खबर नहीं होती .यही है परम -रस अवस्था मुग्धा -वस्था ,इससे पूर्व यौन सुख शिखर तक लाये तो कैसे ।
ऐ बी सी न्यूज़ के अनुसार १० -१५ फीअद महिलायें ओर्गेस्म (यौन शिखर ,आनंदा -तिरेक से )से वंचित ही रह जाती हैं ,सिर्फ़ पीनाइल इंटर कोर्स से ये आनंद -परबत पर कभी नहीं चढ़ -पातीं ।
मैथुन पूर्व की छेड़ -छाड़ ,एक दूसरे को सताने का अपना उत्तेजन है ।
लगता है ,भागती जिंदगी के पास इस सबके लिए वक्त नहीं है .या फ़िर इसकी कुछ शरीर संरचनात्मक वजहें भी हैं ?
किम वालें- एन (प्रोफेसर आफ न्यूरो -एन्दोक्राई -नालाजी अत एमोरी यूनिवर्सिटी )सी -वी डिस्टेंस (भग शिश्न यानी क्लित्रिस वल्वा दूरी ) और ओर्गेनिज्म में संभावित अंतर -सम्बन्ध की पड़ताल कर रहें हैं ।
इस एवज आपने गत सौ सालों के उन आंकडों को खंगाला है जिन्हें मेर्री बोनापार्ट (फ्रेंच साइको -अनेलिस्ट )ने जुटाया था .बोनापार्ट के मुताबिक यह आदर्श दूरी एक इंच या ढाई सेंटीमीटर है ।
बोनापार्ट ख़ुद फ्रिजिदिती से ग्रस्त थीं ,उत्तेजित नहीं होतीं थीं ,यौन शिखर को नहीं छू पाती थी ,इसलिए इन्होने दो मर्तबा सर्जरी के द्वारा सी -वी ठीक आदर्श दूरी के बराबर करवाई ।
अलबत्ता इन नतीजों को प्रतिनिधिक ,दिमान्स्त्रेतिव माना जाए या नहीं यह सवाल ,अभी अन -उत्तरित ही है .और अध्धयन अपेक्षित हैं ।
हर आदमी स्प्रिन -तर (दौड़क सौ मीटरी )नहीं हो सकता , वाद्द्य - यंत्र भी नहीं बजा सकता ,वैसे ही क्या कुछ भौतिक गुन धर्म कुछ महिलाओं को केवल पीनाइल इंटर -कोर्स के द्वारा चर्म सुख तक नहीं ला पाते ?
जो हो सवालों की सलीब पर अकडू मर्द टंगा हुआ है .तसल्ली कीजिये अपने पार्टनर की ,असली प्रभुत्व (शाव्निज्म ) यही है ।
सन्दर्भ सामिग्री :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )द्वारा टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर ७ ,२००९ में प्रकाशित ख़बर "कें ऐ सिम्पिल मेज़रमेंट फोर्टेल ओर्गेस्म इन वूमन ?"पर आधारित आलेख .प्रस्तुति सर्वथा मौलिक एवं अन्यत्र अप्रकाशित है ।
वीरेंद्र शर्मा (वीरू भाई .)
सोमवार, 7 सितंबर 2009
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