गुरुवार, 19 मई 2011

हाव डू आई नो फॉर स्युओर आई हेव फिब -रोईड्स ?

फिब -रोइड्स का रोग निदान कैसे किया जाता है ?
रूटीन पेल्विक एग्जामिनेशन के दरमियान ही स्त्रीरोगों और प्रसूति विज्ञान के माहिरों को गर्भाशय ,ओवरी (अंडाशय )और वेजाइना मन्युअल जांच से पता चल जाता है ,आपको फिब -रोइड है .जब वह जायजा दस्ताने पहन कर ऊंगलियों से लेता है ,उसे साफ़ पता चलता है गर्भाशय पर कोई गांठ ,कोई लंप ,कोई मॉस मौजूद है ।
अकसर माहिर आपकोगांठ के आकार का जायजा एक तुलना करके आपके गर्भाशय के उस वक्त के आकार से देता है जब आप गर्भवती हो जातीं हैं ।यानी गर्भाशय के (गर्भकाल के विभिन्न चरणों में) बढ़ते आकार से समझा सकता है .
मसलन वह आपको बतला सकता है फिलवक्त आपके गर्भाशय का आकार उतना है जितना तब होता यदि आपको १६ हफ़्तों का गर्भ होता ।
एक तुलना फलों ,संतरा ,ग्रेप फ्रूट ,नट्स ,अकोर्न,गोल्फ बाल ,या फिर वोलिवाल से भी की जा सकती है गंठानों के आकार की .मकसद आपको गांठों के आकार की इत्तला देना होता है ।
रोग निदान को पुख्ता करने के लिए माहिर ऐसे रोग निदानिक परीक्षण करवाने की सलाह देता है जिससे शरीर के अन्दर गर्भाशय का हाल इमेजिंग से मुखरित होजाता है .
इनमे शामिल रह सकतें हैं :
(१)अल्ट्रा -साउंड :जिसमें अति -स्वर ध्वनी तरंगों के ज़रिये अन्दर की तस्वीर आजाती है . अल्ट्रा -साउंड अन्वेषी (प्रोब )को एब्दोमन पे भी रखा जाता है ,योनी के अन्दर भी ।
(२)मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग :इसमें तस्वीर का रुख भांपने के लिए चुम्बकों और रेडिओ तरंगों का स्तेमाल किया जाता है ।
(३)एक्स -रेज़ :एक्स रेज़ भी एक ख़ास किस्म के लघु तरंग विकिरण का ही स्तेमाल करती है तस्वीर बनाने में ,मकसद एक ही है शरीर के अन्दर तसल्ली से तांक झाँक ताकि रोग निदान (डायगनोसिस )में कोई खटका न रह जाए ,किसी संदेह शंका की गुंजाइश न रह जाए ।
(४)केट स्केन(सी टी स्केन या कम्प्युट -राइज्द टोमो -ग्रेफ़ी ):इसमें एक्स किरणे अलग अलग कोणों से डाली जातीं हैं वांछित अंग पर ,पूरी एक श्रृंखला ही इमेज़िज़ की हासिल कर ली जाती है ,अनुप्रस्थीय काट लिए, टुकडा टुकडा जायजा लेती तस्वीरें गर्भाशय की उतारी जातीं हैं ।
(५)एच एस जी यानी हिस्टेरो -साल -पिन -जूग्राम या सोनो -हिस्टेरो -ग्राम :इसमें पहले एक एक्स रे डाई गर्भाशय में इंजेक्ट की जाती है ,अनंतर एक्स -रे -तस्वीरें ली जातीं हैं गर्भाशय की .जबकि सोनो -हिस्टेरो -ग्राम के तहत गर्भाशय के अन्दरपहले पानी भी पहुंचाया जाता है ,इसके बाद ही अल्ट्रा -साउंड पिक्चर्स तैयार की जाती हैं .
शल्य प्रोसीज़र्स भी आजमाए जातें हैं डायग्नोसिस में :
(१)लापरोस्कोपी :इसमें माहिर एक लॉन्गऔर थिन "स्कोप" नाभि या उसके पास के हिस्से में एक सूक्ष्मनन्ना सा चीरा लगाके प्रवेश करवाता है .इसमें तेज़ रोशन ,चमकदार प्रकाश (ब्राईट लाईट )मय एक कैमरे के मौजूद रहता है .बस गर्भाशय और अन्य अंगों का हु -बा -हु हाल एक मोनिटर (स्क्रीन )पर उभर आता है .तस्वीरें भी इन अंगों की तैयार की जा सकतीं हैं .
(२)हिस्टेरो -स्कोपी :इसमें माहिर प्रकाश से लैस एक थिन स्कोप को योनी और गर्भाशय गर्दन (सर्विक्स )से होकर गर्भाशय तक पहुंचाता है .इसमें किसी कट किसी चीरे की ज़रुरत नहीं पडती है .माहिरों को गर्भाशय के अन्दर संभावित फिब -रोइड्स और पोलिप्स की खबर देती है यह प्राविधि .,यह सूक्ष्म मशीनी ताक झाँक .स्कोप के साथ एक कैमरे भी स्तेमाल किया जा सकता है ।
(ज़ारी ...)
इस मर्तबा का शैर सुनिए :
धूप साया नदी हवा औरत ,इस धरा को नेमते खुदा औरत ,
नफरतों में ज़ला दी जाती है ,ख्वाबे मोहब्बत की जो अदा औरत ,
गाँव शहर या कि फिर महानगर ,हादसों से भरी एक कथा औरत ,
मर्द कैसा भी हो कुछ भी करे ,पाक दिल हो तो भी खता औरत .

4 टिप्‍पणियां:

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत सुंदर लिखा आपने.....

Unknown ने कहा…

बहुत बहुत शुक्रिया ,आपका .

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर लिखा वीरू जी

virendra sharma ने कहा…

भाई सवाई सिंह राजपुरोहित जी ,संजय जी भास्कर ,अमित भाई ,शुक्रिया आपका होसला अफजाई के लिए .