रविवार, 29 मई 2011

ग़ज़ल :पहला पहला प्यार .

ग़ज़ल
कोई पता न ठौर उसका आज तक मिला ,
ता -उम्र है ढूंढा किया ,वह पहला प्यार था ।
उसके मिरे दरमियान था सागर का फासला ,
हम शक्ल तो मिलते रहे ,वैसा कोई न था ,
आँचल में जिसके आंच और ममता का था उफान ,
यूं जिस्म मिल गए बहुत ,पर वह कहीं न था ।
मनुहार और दुलार थे नेनो से बा -जुबां,
नैनो से मिले नयन कई ,वह न उनमे था ।
उसको न ढूंढ सका कोई नेट ऑरकुट ,
दिन रात ओढ़ा था जिसे ,वह पहला प्यार था .
सहभाव :डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश ".डी .लिट .

2 टिप्‍पणियां:

Dr Ved Parkash Sheoran ने कहा…

नेट ओरकुट पे ब्लोगिए मिलते हैं, मत ढूढों यहां पहला पहला प्यार

दिल में बचाके रखा है जो हिस्सा, काम चलाओ उसी से सरकार

virendra sharma ने कहा…

शुक्रिया सरकार !हुकुम सरकार का !