डॉ .चाचाजी को यूं एक छोटे से संस्मरण में समेट कर आगे बढ़ जाना उनके गत्यात्मक व्यक्तित्वके साथ ही नहीं हमें अपने साथ भी ज्यादती और ना -इंसाफी लगी ।
चाचा श्री हर मौके पर रोहतक पधारते थे मौक़ा चाहें ग़मी का हो या किसी और वजहसे आँखों की नमी या ख़ुशी का .और सुबह सवेरे उठकर हरिद्वार के लिए रोहतक या बुलंदशहर से जहां भी हम होते चलने वाली पहली बस भी पकड़ लेते थे ।उनकी उपस्थिति मात्र ही आश्वश्त कर देती थी हर मौके पर .वह हमारे दोश्त चाचाजी थे .ब्याह शादी के मौके पर हम उनकी मौजूदगी में पेग भी लगा लेते थे ,इधर उधर होकर सिगरेट भी पी लेते थे .कभी उन्होंने अपने आदर्शों का हम पर दवाब नहीं बनाया .हम उनके चहेते जो थे .इत्ते बड़े बाबा के खानदान में से हम पहले एम् एस सी थे .प्रोफ़ेसर थे .आज तो हमारा बेटा भी प्रति रक्षा सेवाओं में सीनीयर कमीशंड ऑफिसर ही नहीं .बी एस सी ,बी .टेक .,आई आई टी चेन्नई से एम् टेक भी है .तब की बात और थी .१९६७ में हमने एम् एस सी कर लिया था और नतीजा आते ही कोलिज की प्रोफेसरी मिल गई थी .हमने ज़ारी पहल भी नहीं की थी .हमारे तो बाबा भी Head Master थे .
राजनीति में अच्छी पकड़ थी चाचाजी की जिस मर्जी विषय पर उनसे विमर्श कर लो और इस सबसे आगे निकल शैर और शायरी करते ही नहीं थे आशु शायरभी थे .एक भाव का शैर आप पढो उसी बहर में (मीटर )में ,काफिया और रदीफ़ में विपरीत भाव में हाज़िर हो जाते थे ,अशोक चक्र धर से . बिंदास अंदाज़ था आपका ।
एक मर्तबा हमने किसी का एक शैर पढ़ा -
पूछना है गर्दिशे ऐयाम से ,
(अरे )हम भी बैठेंगें कभी आराम से .
उधर से ज़वाब आया -
जाम को टकरा रहा हूँ जाम से ,
(अरे )खेलता हूँ गर्दिशे ऐयाम से ,
और) उनका गम ,उनका तसव्वुर ,उनकी याद ,
(अरे )कट रही है ज़िन्दगी आराम से .
जी हाँ चाचू कभी पीते नहीं थे हरिवंश राय बच्चन जी की तरह टी -टोटलर थे .
सत्यार्थ प्रकाश में वर्णित चरित को उन्होंने अपने अश आर और लेखन से एक लयात्मक परवाज़ दी थी .
कट रही है ज़िन्दगी आराम से(zaari ...)
रविवार, 22 मई 2011
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3 टिप्पणियां:
संस्मरण मजेदार है.
Thanks for sharing.
ऐसे व्यक्तित्व तो अब लगता है एक पीढ़ी विशेष तक की ही नियामत बन कर रह गए.
आज पहली बार रोहतक जाना हुआ... किसी की शादी में हाज़िरी ज़रूरी थी. मेरे दिमाग़ में रोहतक का भी, नज़फ़गढ़ और बहादुगढ़ जैसा चित्र बना हुआ था. पर रोहतक देखकर अच्छा लगा...
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