बड़ी जीवट वाली महिला थी अम्मा .उसके जीवट की दास्ताँ कुछ हमने अपनी आँखों देखी थी ,कुछ अम्मा की जुबानी सुनी थी .अम्मा आप बीती भी किसी किस्से की तरह ही सुनाती थी .जैसे जो कुछ घटित हो चुका था वह उसकी उपभोक्ता न होकर साक्षी मात्र रही हो ।
कहाँ से शुरू करें ?
अम्मा बतलाती थी हमारे बाबा के घर में (यानी अम्मा की सुसराल में )झगडे ही झगडे थे जिनसे आजिज़ आकर अम्मा हमारे नाना के घर यानी हमारी ननिहाल , अपने मायके चली आईथी .यूं मायके में भी सबसे बड़ी माँ ही थी .नाना बचपन में ही गुज़र चुके थे .नानी का सहारा माँ थी .मामा का भी .एक मात्र मामा जो थे ।वह भी अम्मा से छोटे .उनके लिए पुत्र -वत.
बकौल अम्मा पिताजी हमारे उस दौर में कुछ करते नहीं थे ।
अम्मा बताएँ थीं -उन्होंने उस दौर में फौजियों के स्वेटर भी बुने थे ।
बाबा की फार्मेसी थी दवाओं की .सारा कुनबा उसी से काम चला रहा था .अलबत्ता बिक्री का तंत्र आदिम था .बसों में चढ़कर आवाज़ लगाना -गुलावठी का मशहूर सुरमा मंजन ,जगन बाल घुट्टी ,जगन फार्मेसी ,गुलावठी ,बुलंदशहर .ज़मके बिक्री होती थी तभी तो इतने बड़े कुनबे का काम मज़े से चल रहा था .पिता श्री हमारे चार भाई थे .सबके बच्चे थे .
लेकिन अम्मा तो पिता श्री को लेकर अपने मायके चली आईं थी .
मामा बड़े हो गए थे इतने के कक्षा १२ पास करके विश्विद्यालय में पढने लायक हो गए थे .होनहार थे सो अम्मा ने उन्हें अलाहाबाद विश्व विद्यालय में पढने भेज दिया था .नानी ने अपने सारे गहने बेच दिए थे .अम्मा की मेहनत और प्यार मामा के बहुत काम आया था ।
एक मर्तबा इलाहाबाद शहर में कर्फ्यू लगा .झगडा विश्व विद्यालय से ही शुरू हुआ था .अम्मा अकेली इलाहाबाद पहुँच गई थी .डाय -मंड जुबिली हाल भी .जो उस दौर का मशहूर छात्रा वास था .एक पूरी"आई ए एस "विंग होती थी इस छात्रावास में ।छटे दशक में .
दूसरी मर्तबा अम्मा हमारे तब काम आईं थीं जब हम गहरे संकट में फंस गए थे कुछ अपने हिंदी प्रेम की वजह से कुछ इस गलत फ़हमी में ,शिक्षक राष्ट्र निर्माता होता है .
हम हरयाना शिक्षा सेवा में प्रवक्ता का पद पा चुके थे ,महा -विद्यालयीय शिक्षा हेतु ।
कोलिज का कन्वोकेशन था .मौक़ाए भाषण होता है यह .निदेशक शिक्षा ,हरयाना उच्चतर सेवा मुख्य अथिति थे .बड़ा आदर्श -
वादी भाषण दिया था .
हमें लगा आदमी काम क़ा है .पूछा गया उनके जाने से पहले कोई मिलना चाहता है .नसीब हमारा हम जा मिले ।
ज़नाब लंच कर चुके थे .मुंह में बीड़ा दबाये ,पाँव मेज पर फैलाए बैठे थे .हमरी तरफ उन्होंने देखा -हुंकारा भरा -हूँ .मुंह में पान था और कुछ कह भी कहाँ सकते थे ।
हम शुरू हो गए राष्ट्र निर्माता की हैसियत से -भाईजान !
बात आगे बढती इससे पहले ही उस प्राणी ने हमें टोक दिया -भाईजान क्या आपका तकिया कलाम हैं ।
हमने कहा भाईजान के रूप मेभी आपकी इज्ज़त की सकती है .
हाँ !क्या चाहतें हो -बोलो ।
हमने कहा अभी हमें जुम्मा जुम्मा आठ रोज़ हुएँ हैं नौकरी में आये (१८ महीने ही तो हुए थे बा-मुश्किल )तीन ट्रांसफर हो गईं हैं हमारी अपने अपने आदमी फिट करने के चक्कर में ।
निदेशक शिक्षा बोले -भाई फिर सरकारी नौकरी क्यों ज्वाइन की .यहाँ तो ऐसा होता ही है ।
हमने कहा -माफ़ कीजिये राष्ट्र की सेवा क़ा अधिकार सिर्फ आपको ही नहीं है ।
एक महीना वह आदमी हमारा इंतज़ार करता रहा हम चंडीगढ़ आके माफ़ी मांग लेंगें लेकिन हम तो राष्ट्र निर्माता माने बैठे थे खुद को ।
पता चला दिहाड़ी दार हैं जिसे कभी भी चलता किया जा सकता है होटल के बैरे की तरह ।
सेवा निवृत्ति क़ा नोटिस हमें मिला था एक माह क़ा -लिखा था -योर सर्विसिज़ आर नो लोंगर रिक्वायर्ड बाई दिस डिपार्टमेंट यु आर गिवन वन मंथ्स नोटिस इन लियु ऑफ़ व्हिच यु स्टेंड रिलीव्ड ऑफ़ योर ड्यू -टीज़.
माँ पहुंची थी पता चलने पर भागी भागी चंडीगढ़ .कहाँ बुलंदशहर कहाँ चंडीगढ़ ।नोटिस हमारा वापस ले लिया गया हम बहाल हुए अम्मा के करम से .हमें यूं निकाला भी नहीं जा सकता था .लेकिन हम कमज़ोर पड़गए थे पत्नी उस वक्त गर्भ से थीं .
पत्नी हमारी आकस्मिक तौर पर एक दुर्घटना में चली गईं थीं ,तीनों बच्चे छोटे ही थे .हम खुद ३८ साल के थे पत्नी तब थीं ३६ की ।
माँ ने तब भी होसला नहीं छोड़ा था .हमारी गृहस्थी आके संभाल ली थी .इट वाज़ ए स्मूथ टेक ओवर .
लडका हमारा जो दो लड़कियों के बीच में था उस वक्त एन डी ए में चयनित हो चुका था .ज्वाइन कर चुका था खडग- वासला .पिता श्री चल बसे थे ।
हम उस पल ही बुजुर्ग हो गए थे ।
पिताजी दमे के मरीज़ थे .ऑक्सीजन टेंशन कम चल रहा था .न्युमोनिया से किसी तरह बाहर निकल आये थे .उम्र कोई ज्यादा न थी लेकिन कोंस्तित्युश्नाली बहुत वीक थे .चले गए देखते ही देखते .अभी दो मिनिट पहले टेम्प्रेचर देख रहे थे अपना थर्मामीटर से .थरमामीटर उनके हाथ से छूट गया था .तापमान- मापी -बोले बेटा बिल्ली ने गिरा दिया ।मैं ने नहीं गिराया .
फिर हरी ॐ और बस निर्जीव काया शेष ।
हम उस वक्त हाथ में चाय क़ा प्याला लिए थे .घूंठ
दो घूंठ बचे होंगें .देख तो हमने सब लिया था .पिताजी गए लेकिन स्वीकारा नहीं ।
अम्मा बोलीं -अरे गए !ये तो गए ! हम दीवार की और मुंह किये खड़े रहे पीठ हमारी पिता श्री की ओर थी .
पिता जी को धरती पर लिटाया और हम केम्प के लिए निकल पड़े अंतिम संस्कार क़ा सामान जुटाने बिना कुछ बोले .
बहुत बाद में हमें पता चला उस पल अम्मा हमारा सहारा ढूंढ रहीं थीं .फफक फफक कर रो पड़ीं थीं वह ।
सब कुछ याद करके ।
कैसे हाथी पे चढ़के पिताजी बारात लेकर आये थे .जीवन भर क्या कुछ हुआ था .उन्हें कैसे अम्मा ने काम सिखलाया था सुरमा मंजन क़ा .बिक्री करना .एजेंट को सामान देना ,उससे हिसाब लेना ।सब कुछ अम्मा रो रोके तेरह दिन तक बतातीं रहीं थीं .
हरिद्वारपिताजी की अस्थियाँ ले गए तो माँ भी साथ गईं थीं .अस्थि विसर्जन के बाद बड़ी गंगा में जो हर की पौड़ी से थोड़ा हटके है -नहाते हुए अम्मा कह रही थी गंगा मैया मुझे भी जल्दी बुलइयो .और गंगा मैया तो जैसे सच मच सुन ही रही थी .साल दो बीतते न बीतते अम्मा भी चली गईं थीं ।
एक बार फिर हम अस्थि विसर्जन के लिए उसी घाट पर आये थे ।बड़ी गंगा .
गंगा मैया मुझे जल्दी बुलइयोअम्मा के स्वर कान में गुंजन कर रहे थे .अम्मा अब बड़ी गंगा बन गई थीं .
शनिवार, 21 मई 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
Very appealing and sentimentaldescription of family and society.
Apni mata ji ko mera sadar charansparsh kahiye.
Nirantar likhte rahiye,aap se bahut ummeed ho chali hai ham sabhi ko .
sader,
dr.bhoopendra
rewa
mp
Very appealing and sentimentaldescription of family and society.
Apni mata ji ko mera sadar charansparsh kahiye.
Nirantar likhte rahiye,aap se bahut ummeed ho chali hai ham sabhi ko .
sader,
dr.bhoopendra
rewa
mp
मेरा नमस्कार आप सबको
itne sateek shabdoin mein itni marmik abhivyakti ab kuch hi logoin ki dharohar rah gayi hai...keep writing so we can stay close our language, our simplicity and to all that life means...!
एक टिप्पणी भेजें