गत पोस्ट से आगे ......
इंतर्फेरोंस फॉर रिलेप्सिंग मल्तिपिल स्केलेरोसिस :१९९३ के बाद से ही ऐसी चिकित्सा दवा दारु मेडिकेसंस को मल्तिपिल स्केलेरोसिस के इलाज़ के बतौर आजमाया गया है जो हमारे रोग प्रति -रोधी तंत्र में बदलाव लाती हैं .इनमे इनटर -फेरोंस उल्लेखनीय हैं .
वास्तव में इंटर -फेरोंस प्रोटीन हर्कारें हैं ,प्रोटीन मेसेंजर्स हैं जिन्हें कुदरती तौर पर हमारे इसी रोग रोधी तंत्र इम्यून सिस्टम की कोशिकाएं तैयार करतीं हैं तथा इन्हीं के माध्यम से आपसी संवाद बनाए रहतीं हैं ,कम्युनिकेट करतीं हैं ।
इंटर -फेरोंस की किस्में हैं :
अल्फा ,बीटा ,गामा .सभी किस्मों में रोग प्रति -रोधी तंत्र को रेग्युलेट करने विनियमित करने की कूवत (क्षमता )होती है ,तथा ये इंटर -फेरोंस घात लगाके शरीर पे हल्ला बोलने वाले रोग- कारकों यथा विषाणुओं से भी हिफाज़त करतें हैं .हरेक का काम करने का ढंग जुदा है .लेकिन कोई ख़ास विभाजक रेखा भी इनके फंक्शन्स के बीच नहीं है ,ओवर्लेप करतें हैं इनके फंक्शन्स .
बीटा -इंटर -फेरोंस को "एम् एस "(मल्तिपिल स्केलेरोसिस )के प्रबंधन में असर कारी माना गया है ।
१९९६ में सबसे पहले अमरीकी खाद्य एवं दवा सस्था की हरी झंडी (मंजूरी )स्तेमाल के लिए "इनटर -फेरोंन बीटा -१ बी (बेटासेरोंन )को मिली आर आर -एम् एस( रिलेप्सिंग एम् एस )के प्रबंधन के लिए .
२००२ में अमरीका में सब -क्युतेनियास इंटर -फेरोंन बीटा -१ ए को मंजूरी दे दी गई .
२००९ में ऍफ़ डी ए (फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ,अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था )ने बीटा -१ बी को भी मंजूरी दे दी .यह ब्रांड नेम एक्स्ताविया के नाम से मिलने लगी ।
जिनलोगों का इलाज़ इंतर्फेरोंस से किया जाता है उनमें रिलेप्सिस भी कम होतें हैं ज्यादा देर भी से रोग का हमला लौटके आता है .
एवोनेक्स तथा रेबिफ का स्तेमाल समय के साथ बढती हुई अक्षमता को ब्रेक लगाने के लिए किया जाता है .अलबत्ता इनके पार्श्व प्रभावों में फ्ल्यू जैसे ही लक्षण आ घेरतें हैं मरीज़ को .फीवर ,टायर्ड -नेस ,कमजोरी ,चिल्स तथा मसल- एक्स आम हैं ।
लेकिन इस सिंड्रोम की बारंबारता धीरे धीरे इलाज़ के आगे बढ़ने के साथ ही कम होती जाती है .अन्य अवांछित परिणामों में शरीक हैं ,ब्लड सेल काउंट में अंतर आना ,इंजेक्शन जिस जगह लगा है वहां रिएक्शन होना ,एब्नोर्मेलेतीज़ ऑफ़ लीवर टेस्ट्स ।
इसीलिए नियमित यकृत जांच (लीवर टेस्ट्स )तथा ब्लड काउंट्स टेस्ट्स को दोहराने की सलाह उन मरीजों को दी जाती है जो बीटा -इन्टर -फेरोंस ले रहें हैं ।
थाई -रोइड फंक्शन्स की जांच भी नियमित करवानी पड़ती है इन मरीजों को .बीटा -इंटर फेरोंस थाई -रोइड ग्रंथि को असर ग्रस्त करतें हैं .लेकिन दर्द हारी दवाओं के स्तेमाल के साथ ,लोकल स्किन इन्फेक्शन के प्रबंधन के साथ इंतर्फेरोंस टोलरेंस गत सालों में बढ़ी है .
क्लिनिकल ट्रायाल्स ऑफ़ बीटाइंटर -फेरोंस :जिन्हें ये दवाएं पहले अटेक के फ़ौरन बाद मुहैया करवाई गईं ,उनमें "एम् एस "का दूसरा हमला देर से हुआ .यह एवोनेक्स थी जिसे सप्ताह में एक मर्तबा इंट्रा -मस्क्युलर सुइयों के ज़रिये दिया गया .जबकि बीटा -सेरोंन या एक्स्ताविया की सुइयां चमड़ी के नीचे (सब- क्युतेनिअसली )एक दिन छोड़ एक दिन (ई डी यानी एवरी आल्टरनेट डे) लगाईं गईं ।
(ज़ारी ...).
सोमवार, 30 मई 2011
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3 टिप्पणियां:
सारगर्भित पोस्ट.
शुक्रिया वर्षा जी !
लेखक ने बडी मेहनत की है । पढने वाले के लिए हिम्मत का काम है ं। ़
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