सोमवार, 31 जनवरी 2011

व्हाट इज वासेक्टोमी ?

वासेक्टोमी या नसबंदी क्या है ?
यह एक मामूली सा ओपरेशन है शल्य कर्म है जिसमे दोनों अन्डकोशों की 'वास देफेरेंस 'को काटकर गांठ बाँध दी जाती ही ।इसका नतीजा यह होता है इनमे से स्खलन /इजेक्युलेसन /वीर्य -पात के वक्त शुक्राणु मूत्र मार्ग से बाहर नहीं आ पाते ।गांठ को खोलने पर शुक्राणु दोबारा यौन शिखर पर पुरुष के पहुँचने पर वीर्य के साथ बाहर आने लगतें हैं.इस प्रकार नसबंदी से पुरुष हमेशा के लिए बाँझ नहीं होता है .
वास देफेरेंस क्या हें ?
अंडकोष से मूत्र मार्ग तक दो नलियाँ/महीन ट्यूब्स अंडकोष से शुक्राणु लेकर आती हैं ,हरेक एंड कोष में एक ही वास देफेरेंस होती है .

क्या है वासेक्टोमी ?

पुरुष नसबंदी यानी वासेक्टोमी क्या है ?
वासेक्टोमी इज दी सर्जिकल ओपरेशन ऑफ़ सेवेरिंग दी डक्ट (वासदेफेरेंस ) कनेक्टिंग दी टेस्तीज़ टू दी सेमिनल वेस्सिले /वेसिकिल एंड युरेथ्रा .वासेक्टोमी ऑफ़ बोथ दक्ट्स रिज़ल्ट्स इन स्टार्लिती एंड इज एन इन्क्रीज़िन्गली पोप्युलर मीन्स ऑफ़ बर्थ कंट्रोल .वासेक्टोमी डज़ नोट अफेक्ट सेक्स्युअल डिजायर ऑर पोटेंसी .
वास देफेरेंस आर आइदर ऑफ़ दक्ट्स देट कन्दक्ट्स स्पर्मातोज़ोआ फ्रॉम दी एपिदीदमिस टू दी युरेथ्रा ऑन इजेक्युलेसन .इट हेज़ ए थिक मस्क्युलर वाल दी कोंतरेक्शन ऑफ़ व्हिच असिस्ट्स इजेक्युलेसन .

पुरुष नसबंदी मिथ और यथार्थ .

क्या पुरुष नसबंदी यौन क्षमता ,कामेच्छा दोनों को ही ले उडती है ?पौरुष ,मर्दानगी को दाग लगा देती है / वासेक्टोमी ?
महज़ मिथ्या /भ्रान्ति /भ्रांत धारणा /दिल्युश्जन है ऐसा मानना समझना .पहली बात तो यह है ,यह एक रिवार्सिबिल प्रक्रिया है .हमारे अन्डकोशों (टेस्तीज़)में दो तरह की कोशिकाएं /कोशा /सेल्स होतें हैं .एक का काम पुरुष हारमोन तैयार करना है .कामेच्छा इन्हीं हारमोनों से पैदा होती है ।
दूसरी किस्म की कोशाओं का काम स्पर्म्स /शुक्राणु /स्पर -मेटा -ज़ोआ बनाना है .यौनपुरुष जब मैथुन के शिखर पर पहुंचता है तब यह इजेक्युलेट के बतौर मूत्र -मार्ग से बाहर आतें हैं .यही स्खलन है ,डिस -चार्ज होना है .लिन्गोथ्थान का सम्बन्ध कामेच्छा /फोरप्ले के वक्त पीनाइल आर्ट -रीज की और शिश्न को रक्त ले जाने वाली धमनियों की ओर अधिकाधिक रक्त का पहुंचना है .यह रक्त आपूर्ति वासेक्टोमी के बाद भी ऐसी ही रहती है यानी लिन्गोथ्थान पूर्व -वत होता है .इजेक्युलेट (वीर्य की मात्रा )भी पूर्व वत रहती है .शुक्राणु तो पूरे शुक्र द्रव्य में मात्र १%से भी कम ही होतें हैं ।
शेष शुक्र द्रव्य शुक्राशय एवं प्रोस्टेट से रिश्ता है .बस नसबंदी के बाद इस द्रव्य में शुक्राणु (स्पर्म )नहीं होतें हैं .केवल किसी औरत को गर्भवती बना देना मर्दानगी नहीं है .
संतान हो न हो इसका फैसला दोनों को मिलकर करना होता है .

मुहांसे है तो क्या हुआ ?

मुहांसे हैं तो इन्हें आजमायें :
(१)संतरे के छाया में सुखाये गये छिलके बारीक -बारीक पीसकर इसमें बराबर मात्रा में बेसन या फिर बारीक पीसी हुई मुल्तानी मिट्टी दोगुना मात्रा में मिला लें .इस मिश्र को १५ मिनिट पानी में भिगोकर गाढ़ा पेस्ट बनालें .मुहांसों पर लेप करलें .दस मिनिट बाद चेहरा गुनगुने पानी से धौ लें .४-६ सप्ताह इसे आजमायें .मुहांसे देखते रह जाओगे कहाँ गए ।
(२)संतरे के छिलके का पाउडर गुलाब जल में मिलाकर मुहांसों पर लेप करने से भी मुहांसे नष्ट हो जातें हैं .झाईंएवं चेचक के दाग भी दूर हो जातें हैं .
(३)मुहांसों पर सुबह उठते ही अपना बासी थूक लगायें .कुछ ही दिनों मुहांसे गायब हो जायेंगें .अनुभूत प्रयोग है यह ।
(४)त्रिफला चूर्ण तीन ग्राम रात को सोते समय गरम पानी से लें .उपर्युक्त को भी ज़ारी रखें .शीघ्र लाभ का उपाय है यह ।
(५)१० मुनक्का रात को आधा कप पानी में भिगो दें.मुनक्का बीज साफ़ करके खा लें .बचे हुए पानी में मिश्री या शक्कर मिलाकर पी जाएँ .मुहांसे एक माह के सेवन से निकलने बंद हो जायेंगे .खून साफ़ होगा
(६)सप्ताह में एक मर्तबा स्टीम लें .२-३ मिनिट चेहरे को भांप का सेंक देकर गीले ठन्डे तौलिये से चेहरा पौंछ लें .रोम -रोम ,चमड़ी के छिद्र खुल जायेंगे ,पसीना बाहर आने से त्वाचा की सफाई हो जायेगी .मुहांसे जल्दी दूर होंगे ।
विशेष :कृत्रिम रसायन से तैयार सौन्दर्य प्रशाधन ,वानस्पतिक तेल से युक्त कोस्मेतिक्स स्तेमाल न करें .

तुरत उपाय :यदि आप बाल निगल गए हैं ....

यदि आप बाल निगल गए हैं .पेट में चला गया है सिर का बाल पके हुए अनानास (पाइन -एपिल )छील कर इसके छोटे छोटे टुकड़े काली मिर्च पाउडर और सैंधा नमक लगाकर खाएं ऐसा करने से बाल पेट में ही गल जाएगा .मच्छी का काँटा और निगला हुआ मिलावटी खाद्य में कांच का बारीक टुकड़ा भी गल जाएगा पेट में ही ।
(२)यदि कंकड़ और कांच खाने में आ जाए :
२-३ चम्मच ईसबगोल की भूसी एक ग्लास ठन्डे पानी में भिगोकर इसमें आवश्यकता के अनुरूप बूरा/ब्राउन सुगर डालकर पी जाएँ ।
(३)नौनिहालों /बालकों के पाँव में काँटा चुभने पर :आंच पर किसी बर्तन में गुड पिघलाकर उसमे अजवाइन पीसकर मिलालें .थोड़ा गर्म रह जाए तब बाँध दें काँटा बाहर आ जाएगा .

बच्चों का दमा (एस्मा जुवेनाइल ,इन्फेन्ताइल एस्मा )देशी इलाज़ .

एक साल से ऊपर के शिशु को दमा रोग में (एस्मा /अस्थमा )में बासिल लीव्ज़ /तुलसी की पांच पत्तियाँ ग्राउंड करके कुचल पीसकर शहद के साथ सुबह शाम चटायें ।
एक साल से कम आयु के शिशु को तुलसी का सत/रस पिसे पत्तों को साफ़ बारीक कपडे /छलने में छानकर शहद मिलाकर चटायें दिन में दो बार .दमा के अलावा रेस्पाय्रेत्री सिस्टम (श्वसन तंत्र )के अनेक रोग संक्रमण में यह लाभकारी है .शिशुओं को बे -खटके निश्संक भाव से दें।
दमा के अलावा साइन -साईं -टिस ,पुराना सिर दर्द ,आधा शीशी का सिर दर्द /मीग्रैन ,एलर्जिक कोल्ड (सर्दी प्रत्युर्जात्मक )जीर्ण दमा आदि रोगों में भी तुलसी के पत्ते रामबाण हैं .बस तुलसी की सात -आठ हरी पत्तियाँ धौ कर साफ़ पानी से पीसकर शहद के साथ २-३ सप्ताह आवश्यकता के अनुरूप लें .आराम आयेगा .

स्वांस नली में सूजन अर्थात ब्रोंकाई -तिस का देशी समाधान .....

सौंठ ,काली मिर्च ,हल्दी पाउडर बराबर मात्रा में लेकर मिला लें .सुबह शाम सिर्फ दो चम्मच गरम पानी से लें ।
ब्रोंकाई -तिस के अलावा यह मिश्रण खांसी ,जोड़ों के दर्द ,कमर और हिप -पैन में भी असरकारी है .पूरा लाभ न हो तो चार पांच दिन और ले सकतें हैं .कोई अवांच्छित प्रभाव नहीं है इस मिश्र का .

रविवार, 30 जनवरी 2011

कैसे बना सर्कस ?

आखिर सर्कस कैसे चलन में आया और मनोरंजन का ज़रिया बना ?प्राचीन मिश्र तक जाता है सर्कस का इतिहास .जब सेनायें दूरदराज़ के इलाके साम्राज्य के तहत जीतकर लौटतीं थीं ,अपने साथ मनोरम पशु भी ले आतीं थीं .इनसे भीड़ का मनोरंजन करतीं थीं ।
एक सर्किल एक रिंग में एक घेरे में तमाम करतब दिखलाए जाने लगे .कलाबाजी से लेकर जादूगरी तक .बस सर्किल से सर्कस शब्द चल निकला .धीरे -धीरे इसमें तमाम तरह के खतरनाक खेल तमाशे जुड़ने लगे .

व्हाट इज मिनिस्कस टीयर ?

मिनिस्कस टियर एक चिकित्सा शब्दावली से जुड़ा प्रयोग है .दोनों घुटनों में एक -एक मिनिस्कस कार्टिलेज (थिन कर्व्द उपास्थि )होती है .यह अंग्रेजी के अक्षर "सी "की आकृति लिए रहती है .जो अपने आपमें एक 'सोफ्ट इलास्टिक फिबरो -स्ट्रक्चर्स 'है .मृदु लचीले तंतुओं की निर्मिती है ,मेट्रिक्स है .इसी की फटन को मिनिस्कस टियर कह देतें हैं ।
घुटनों के जोड़ों की हिफाज़त करती रहती है यह मिनिस्कस .यह एक प्रकार से शोक एब्ज़ोर्बर का काम करता है .घुटने की हर हरकत गति संचालन में इसका हाथ रहता है .
युवा लोगों में यह मुड़ते मटकते टूट जाती है .ट्विस्ट करते टूट जाती है .बुढापे में जोड़ों की घीसन इसे ले बैठती है .

व्हाट इज टोटेम ?

टोटेम एक प्रतीक है यह एक पशु ,कुदरती चीज़ ,पादप /प्लांट कुछ भी हो सकता है .यह बहुत ही आदर भाव से देखा जाताहै एक समुदाय ,कबीला ,परिवार दवारा ।अमरीका के मूल निवासियों में इसे एक अप्रतिम स्थान हासिल है .एक रहस्य मूलक धार्मिक कर्म काण्ड से परस्पर एक दूसरे से जुड़े रहें है समुदाय विशेष के लोग .टोटम उनके बीच भाईचारे अपनापे ,बंधुत्व का प्रतीक है .एक टोटम वंश वेळ से अपने को जुड़ा,कनेक्तिद मानतें हैं .टोटम एक झंडा है एक कुनबा है . वंशानुगत जुड़ाव का निशाँ हैं ।
इन मोस्ट केसिज दी टोटमइक एनीमल ऑर प्लांट,एनी अदर नेच्युरल ओब्जेक्त इज दी ओब्जेक्त ऑफ़ टाबू .इस पवित्र पशु ,पादप को मारना ,मारकर खाना वर्जित है .जो ऐसा करेगा शापित होगा .सेक्रेड प्लांट /एनीमल है टोटम सिर्फ एक प्रतीक भर ,एक गोंद्ना (टाटू/टैटू )नहीं है जिसे शरीर पर गुन्द्वा लिया है .शश्त्रों पर खुदवा लिया है .मुखोटे जिसके बनाकर पहन लिए गये हैं .नेटिव अमरीकी टोटम पोल बनातें हैं .इसपे टोटम खुदा रहता है .टोटम कबीले का भाई है .पुरखा है .

व्हाट इज साइन -टो -लोजी ?

साइन -टो -लोजी इज ए रिलिजियस सिस्टम बेस्ड ऑन गेटिंग नोलिज ऑफ़ योरसेल्फ एंड स्प्रिच्युअल फुल्फिल्मेंट थ्रू कोर्सिज ऑफ़ स्टडी एंड ट्रेनिंग ।
यानी एक ऐसी धार्मिक प्रणाली /परम्परा जिसका मकसद अपने आत्मन (सेल्फ ,स्वयं ,आत्मज्ञान ) को जानना है .आध्यात्मिक ध्येय हासिल करना अध्ययन /स्वाध्याय और प्रशिक्षण से ..आत्मज्ञान और आध्यात्मिक लक्ष्य तक ले जाने वाले ज्ञान दाता को साइन -टो -लोजिस्ट कहा जाता है .

ये मौन प्रसव (सायलेंट बर्थ )है क्या ?

व्हाट इज सायलेंट बर्थ ?
यह एक पद्धति ,तरकीब न होकर एक रिवाज़ है जिसकी वकालत सा -इन -टो -लोजिस्टों ने की है .इस प्रसव कराने की परम्परा में प्रसूता (प्रसव को उद्द्यत )महिला के गिर्द पूर्ण शांत माहौल बद पैदा किया जाता है एक दम से प्रशांत ,निस्शब्द ।
आमतौर डॉक्टर्स और नर्सें गर्भवती महिला के गिर्द अदबदाकर हंसी -ठट्टा ,हंसी मज़ाक करते रहतें हैं और यह सब प्रसव को सुगम बनाने की नियत से महिला को प्रेरित करने लेबर में मदद के लिए किया जाता है ।
सायलेंट बर्थमें यह सबशोरशराबा ,हंसी मज़ाक वर्जित है ।
ऐसा समझा जाता है इस परम्परा के समर्थकों के द्वारा ,हमारे दिमाग का प्रतिक्रियात्मक हिस्सा बदतर हालातों में दर्द और बेहोशी के एहसास को दर्ज़ करता चलता है ।जिसकी वजह से खौफनाक एहसास (नाईट -मेयर्स ),मनोकायिक रोग भावी जीवन में प्रसूता को घेर सकतें हैं .
साइन -टो -लोजिस्ट्स के शब्दों में -इट इज बिलीव्द देट दी रिएक्टिव पार्ट ऑफ़ अवर माइंड रिकोर्ड्स दी पर्सेप्संस ड्यूरिंग एडवर्स कंडीशंस लाइक पैन एंड अन -कान -शश -नेस एंड कैन लीड टू नाईट -मेयर्स साइको -सोमाटीक इलनेस एंड फीयर्स लेटर इन लाइफ .(ज़ारी ...)

नार्वे को अर्द्ध रात्री के सूरज की सरज़मीं क्यों कहा जाता है ?

व्हाई इज नार्वे काल्ड लैंड ऑफ़ मिडनाईट सन ?
नार्वे जिस और जितने अक्षांश पर अवस्थित है उसी लेतिच्युद की वजह से दिन के प्रकाश में बड़े सीजनल(मौसम सम्बन्धी ) बदलाव देखने को मिलतें हैं .मई मॉस के आख़िरी सप्ताह से जुलाई मॉस के बाद के चरण तक सूरज पूरी तरह क्षितिज के नीचे नहीं डूबता है .खासकर उत्तरी ध्रुवीय वृत्त (आर्कटिक सर्किल )के उत्तर के इलाकों में ऐसा ही होता है .सूरज का प्रकाश बिखरा रहता है ,दिन में बीस घंटा ।
दूसरी तरफ नवम्बर के बाद के पखवाड़े से जनवरी के दूसरे पखवाड़े के आखिर तक ,सूरज कभी क्षितिज से ऊपर नहीं उगता .,खासकर उत्तर में ,इसीलिए दिन की अवधि दिन का प्रकाश कम अवधि तक ही रहता है .

कोमन फ़ूड बग्स से दिल को खतरा .

लिस्तेरिया मोनो -साइटों -जींस एक ऐसा आम फ़ूड बग है जो चीज़ ,कोल्ड मीट प्रोडक्ट्स ,मच्छी ,सलाद तथा अपास्तुरिकृत (अन -पेश्च्यु -रा -इड)मिल्क में आम पाया जाता है .इसी का एक वेरिएंट है जो दिल के लिए ख़तरा -ए -जान बन गंभीर किस्म के हृद रोगों के खतरे के वजन को बढाता है ।
इलिनॉय ,शिकागो विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने इसकी कुछ ऐसी मारक स्ट्रेंस का पता लगाया है जो उन लोगों के हार्ट टिश्यु पर धावा बोल देतें हैं जो पहले से ही हृद रोगों की चपेट में हैं .हार्ट वाल्व बदली करवा चुके लोग भी इन फ़ूड बग्स के निशाने पर आ जातें हैं ।
चूहों पर संपन्न आज़माइश से पता चला है लिस्तेरिया कि इन मारक स्ट्रेंस से रोग संक्रमित चूहों के हृदय में १५ गुना ज्यादा बेक्टीरिया पाया गया बरक्स उन चूहों के जिहें लिस्तेरिया से ही इन्फेक्ट (रोग संक्रमित )किया गया था ।
अध्ययन से इन स्ट्रेंस की शिनाख्त में मदद मिलेगी .नए तरीके हाथ आयेंगें ।
लिस्तेरिया -मोनो -साईं -टो -जींस सोइल (मिट्टी )और वनस्पति में व्याप्त रहता है .५%लोगों की आँतों में भी यह चुप चाप पड़ा रहता है .निम्न तापमान पर यह तेज़ी से ग्रो करता है .सोफ्ट चीज़ ,रा-वेजितेबिल्स ,कोल्ड मीट प्रोडक्ट्स ,फिश ,सलाद ,अपास्तुरिकृत दूध में यह डेरा डाले रहता है ।
बेशक लिस्तेरिया से होने वाला रोग संक्रमण फ्ल्यू जैसे लक्षण और अपसेट स्टमक तक ही सीमित नहीं रहता ब्लड और नर्वस सिस्टम से सम्बंधित गंभीर रोग भी इससे पैदा हो जातें हैं ।
लेकिन लिस्तेरिया स्ट्रेंस ने अपनी सतह की प्रोटीनों को संशोधित कर लिया है .यही दिल को निशाना बनातीं हैं ।
बेक्तीरिय्ल जेनेटिक मार्कर्स की मदद से साइंसदान रोग निदान की नै तरकीबें ढूंढ रहें हैं .

हृदय रोगों से बचाव के लिए .

सूखा आंवला और मिश्री बराबर बराबर मात्रा में रोजाना तीन ग्रेम मात्रा लेकर एक ग्लास पानी के साथ लेते रहने से हृदय रोगों से बचा जा सकता है ।
खून में घुली चर्बी (सीरम कोलेस्ट्रोल )को कम करने में सहायक :एक अध्ययन विश्लेषण में कुछ हृदय रोगियों को ये पचास ग्राम ताज़े हरे आंवले रोजाना खिलाये गये .एक माह के बाद इनका ब्लड कोलेस्ट्रोल जांचने पर पहले के बरक्स ३१ फीसद की कमी दर्ज़ की गई ।
मैथी दाना /मैथी के बीजों का काढ़ा :दो चम्मच मैथी दाना रात भर एक कप पानी में भीगा रहने दें.इसे कुल दो कप पानी में तब तक उबालें जब तक पानी आधा न रह जाए .थोड़ा ठंडा होने पर इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर पी जाएँ .दिन में फिर मैथी दाना भिगोकर रात को सोते वक्त फिर ऐसा ही करें ।
हृद -रोगों ,सीने की हर समय रहने वाली जलन ,दाहकता ,शूल आदि से भी छुटकारा मिल जाता है .ब्लड प्रेशर भी संतुलित /नियमित /काबू में रहता है ।
आंवला -मिश्री मिश्र हाई -पर -टेंशन में विशेष लाभदायक है ।
अलावा इसके उच्च एवं निम्न रक्तचाप में लाभदायक है लहसुन .iski rozaanaa teen chaar kaliyaan khaali pet paani se len .

मुखबास (बेड ब्रेथ )से राहत के लिए .

दुर्गन्ध सनी सांस से बचने के लिए खाना खाने के बाद लॉन्ग चूसें .मुखबास दूरहोगी .कारडामाम(दाल -चीनी) भी मुख को सुगंध से भर देती है .ताम्बूल का सेवन लोग लॉन्ग के साथ करते थे .पान में चूना अधिक हो जाने पर मुह फट जाता है ,लॉन्ग (क्लोव )चूसने से आराम आता है ।
कफ़ -दुर्गन्ध /स्वास कास से राहत के लिए :लवंग मुख में रखने से आराम आता है .कफ़ ढीला होकर निकलता है .दन्त शूल दूर होता है ,दांत मज़बूत होतें हैं .अम्ल -पित्त /अम्ल -शूल एसिडिटी दूर होती है .पाचन शक्ति में इजाफा होता है .गठिये की पीड़ा दूर होती है .मुह में वात के छाले मिटते हैं ।
यदि पाचन विकार के कारण मुखबास ,मुह से दुर्गन्ध आती है आधा चम्मच सौंफ मिश्री के साथ चबाने से दूर होती है .दोनों वक्त के भोजन के बाद इसे आजमायें .सूखी खांसी में राहत मिलती है बैठी हुई आवाज़ खुल जाती है .गवैये अकसर इसका स्तेमाल करतें हैं ।
एक ग्लास पानी सुबह नीम्बू निचोड़ कर २ सप्ताह तक लगातार रोजाना कुल्ला करने से मुख दुर्गन्ध दूर हो जाती है .

हेल्थ टिप्स .

दांतों की तकलीफ में राहत के लिए :
(१)पायरिया में राहत के लिए :
नमक महीन लीजिये ,अरु सरसों का तेल ,
नित्य मले रीसन मिटे ,छूट जाए सब मैल।
एक दम से बारीक सैंधा नमक लें ,क्रिस्टल्स न हों ,इसमें चार गुना सरसों का तेलमिलाकर ऊंगली के पौरों से मसूढ़ों की हलके हलके गोलाई में पौरों को घुमाकर मालिश करें .शेष बचे नमक- तेल- मिश्र को दांतों और दाढ़ों पर ऊँगली से हलका रगड़ रगड़कर गुनगुने या ताज़ा पानी से कुल्ला करलें ।
ठंडा -गर्म पेय लगना बंद होगा .दांतों में टार्टर,काली पपड़ी नहीं ज़मेगी ।
दांत में कीड़ा नहीं लगेगा .लगे हुए कीड़े नष्ट हो जायेंगें .मसूड़ों की सूजन ,खून के रिसाव में आराम आयेगा ।
उक्त प्रयोग में सैंधा नमक के स्थान पर हल्दी पाउडर भी ले सकतें हैं जो हर घर में होता है ।
(२)एकग्लास पानी में नमक मिलाकर रोजाना सोने से पहले कुल्ला करें .दांतों के रोगों की बचावी चिकित्सा है यह .(३)मल -मूत्र करते वक्त दांतों को कसके बंद रखें .दांत मज़बूत रहतें हैं ऐसा करने से ।
(४)दांतों में दर्द से राहत के लिए :अदरक के छोटे छोटे टुकड़े (छिला हुआ अदरक लें )दांतों के बीच दबाकर रस चूसें .एनल्जेसिक (दर्द -हर )का काम करेगा .

शनिवार, 29 जनवरी 2011

हेल्थ टिप्स .

गुणकारी अनार (पोमीग्रेनैत):
ब्लीडिंग गम्स /टीथ में राहत के लिए :अनार के फूल छाया में सुखाकर पाउडर बनालें .इससे दिन में दो बार दांत साफ़ करें .रक्त स्राव में राहत आएगी .हिल्तेहुए दांत मज़बूत हो जायेंगे ।
(२)जौन्दिश(पीलिया ,हेपेताईतिस -ए ,हिपे -टाई -टिस -सी )में राहत के लिए अनार का शरबत पीने से लाभ होगा लीवर पर जोर कम पड़ेगा ।
(३)टोंसिल फूल /सूज जाने /इन्फ्लेमैत हो जाने पर :टोंसिल बढजाने पर अनार की पांच पत्तियाँ ज़रा से नमक के साथ नित्य खाली पेट सेवन करने से ,चबाकर चूसने से लाभ होगा .रस ज़रा भी न थूकें ।
(४)दिसेंत्री /अतिसार होने पर:बच्चों को दस्त लगने पर अनार की छाल घिसकर पिलायें .बड़ों को दाड़िम के छाल का काढा बनाकर उसमे लॉन्ग (क्लोव )और सौंठ (द्राईद ज़िन्ज़र पाउडर )डालकर पिलायें ।
(५)बेड ओडर(मुखबास)से छुटकारे के लिए :अनार की छाल पानी में उबालकर ,पानी को थोड़ी देर ठंडा होने पर मुख में रखें .गरारे करें इसी पानी से मुख के छालों में भी लाभ मिलेगा ।
(६)सिर में जू होने पर :लाइस सिर मे होने पर अनार के सूखे छिलके पाउडर कर लें इसकी ६ चम्मच पानी से गूंथकर ऊंगली के पौरों से बालों की जड़ों मे लगाए .एक घंटा बाद सिर धौ लें .पानी आँख मे न जाए ।
(७)अनार की हरी पत्तियाँ पीसकर आँखों पर लेप करने से आँखें दुखना ठीक हो जाता है .

हेल्थ टिप्स .

गुणकारी मैथी और करेला :
(१)मैथी की भूजी/साग मधुमेह में लाभदायक है .मैथी दाना भी उतना ही असरकारी है जिसे अंकुरित करके भी खाया जाता है .पानी में रात भर भिगोकर सुबह उबालकर उसका पानी भी पीया जाता है छानकर या मिक्सी में ग्राउंड करके ।
(२)करेले में कीटाणु नाशक तत्व मौजूद हैं जो रक्त से अवांछित पदार्थ निकाल बाहर करतें हैं .इसमें विटामिन -सी की अतिरिक्त मौजूदगी (लोडिंग )मधुमेह में लाभदायक समझी गई है ।
(३)सबसे उत्तम है ताज़े करेले का रस जिसकी शुरुआअत नित्य सुबह एक चम्मच रस से कर सकतें हैं ।
(४)करेले को उबालकर इसका रस फ्रिज में शीशी में करके भंडारित कर सकतें हैं .एक दिन में आधा ग्लास रस काफी है .पेट भी साफ रहता है ,रक्त भी ,ब्लड सुगर के विनियमन में भी असरकारी है ।
(४)हरा करेला छोटे छोटे टुकड़े करके छाया में सुखालिया जाए .सूख जाने पर इन्हें ग्राउंड कर लिया जाए .बारीक कपडे में छानकर रख लें .एक चम्मच करेला पाउडर सुबह शाम खाने के बाद लें .(५)ऑफ़ सीज़न में भी काम आयेगा यह चूर्ण ।
(६)वायु और पित्त के रोग में भी लाभकारी है करेला .खुजली एवं इतर चर्मरोगों में भी मुफीद पाया गया है .रक्त से तोक्सिंस(विषाक्त अवांछित पदार्थ ) निकाल बाहर करता हैकरेला .

क्या है ग्लाइसेमिक इंडेक्स ?

किसी चीज़ को खाने से हमारे रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर कम और किसी और चीज़ की समान मात्रा खाने से ज्यादा बढ़ता है .मसलन १००ग्रेम अंगूर खाने के बाद रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर कुछ समय बाद वह नहीं होगा जो १०० ग्रेम एपिल(सेब )खाने के ठीक उतने ही समय बाद होगा .यहाँ हम अंगूर को फास्ट सुगर वाला खाद्य तथा सेब को लो -सुगर कह सकतें हैं .दूसरे शब्दों में अंगूर का ग्लाइसेमिक इंडेक्स सेब के ग्लाइसेमिक इंडेक्स से ज्यादा कहलायेगा .वास्तव में ग्लाइसेमिक इंडेक्स एक अंक है जिसकी गणना आसानी से की जा सकती है ।
आपको २५ ग्रेम ग्लूकोज़ दिया गया इसके कुछ समय बाद आपके रक्त में ग्लूकोज़ स्तर जांचा गया .अब जानना यह है कितने अंगूर आपको खिलाये जाएँ जो ठीक उतने ही समय बाद ब्लड ग्लूकोज़ उतना ही बढा देंल।
ग्लूकोज़ और अंगूर की अब इस मात्रा का अनुपात आप निकाल लें .
(ग्लूकोज़ की मात्रा )/(अंगूर यानी मात्रा )के भागफल को १०० से गुना ( जरब यानी मल्टीप्लाई )करने पर खाए हुए पदार्थ का ग्लैसेमिक इंडेक्स आजायेगा ।
यानी ग्लूकोस और खाए गये पदार्थ की वह मात्रा जिसके सेवन से रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर समान रूप से बढता है के अनुपात को १०० से मल्टीप्लाई करने पर उस पदार्थ का ग्लैक्सेमिक इंडेक्स प्राप्त हो जाता है ।
मधुमेह रोगी के लिए वह आहार उत्तम है जिसका ग्लैसेमिक इंडेक्स लो है .जिसे खाने के तुरंत बाद शक्कर खून में रश नहीं करती धीरे धीरे बढती है और कम बढती है .
कुछ खाद्य पदार्थों के ग्लासेमिक इंडेक्स इस प्रकार है :चपाती ७० ,पराठा ७० ,चावल ७२ डबलरोटी ७०,बाजरा ७१ खिचड़ी ५५ ,इडली ८० ,उपमा ७५ ,दूध ३३ ,दही ३३ ,ग्लूकोज़ १०० ,शहद ८७ ,सक्रोज़ ५९ ,माल्तोज़ १०५ ,फ्रक्तोज़ (ताज़े फल )२० ,छोले ६५ ,सोयाबीन ५६,राजमा २९ ,अंकुरित चने ६०, सेब३९ ,केला ६९ ,संतरा ४० ,संतरे का जुइस ४६ .

सौर मंडल के बाहर सबसे गर्म गृह का तापमान ३२०० सेल्सियस

अट ३२०० सेल्सियस ,दिस प्लेनेट इज होटेस्ट इन दी यूनिवर्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जनवरी २९ ,२०११ ,पृष्ठ २३ ,नै -दिल्ली ।).
खगोल विदों के अनुसार उन्होंने गत वर्ष जिस एक्जो -प्लेनेट (पार -सौरमंडल ग्रह )का पता लगाया था वह ३२०० सेल्सियस तापमान के साथ सृष्टि का सबसे गर्म ग्रह है अब तक ज्ञात ग्रहों की ज़मात में ।
इस एक्जो -प्लेनेट को 'डब्लू ए एस पी -३३बी '/एच डी १५०८२ कहा जाता है .इसके पेरेंट स्टार का तापमान भी ७१६० सेल्सियस है देवयानी तारामंडल (कोंस्तिलेशन ऑफ़ एनद्रोमीडा) में मौजूद यह तारा -परिवारहमसे ३८० प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं .अब तक मिल्की वे -गेलेक्सी का सबसे गर्म ग्रह डब्लू ए एस पी -१२ बी को समझा जाता था लेकिन डब्लू ए एस पी -३३ बी या एच डी १ ५०८२ इससे भी ९०० सेल्सियस ज्यादा गरम है .

आने वाले दिन गर्म भी होंगे तर भी ......

इट इज गोइंग टू बी होटर ,वेटर .साइंटिस्ट्स ग्रिम फोरकास्ट मीन्स क्रोप फेलियोर्स .२सेल्सियस राइज़ बाई मिडिल ऑफ़ सेंच्युरी एंड ३.५ बाई इट्स एंड .बेंड ऑफ़ हॉट डेज़ टू गेट लोंगर ,रिज़ल्ट इन मोर हीट -वेव देथ्स .ओन कंज़र्वेटिव एस्टीमेट ,क्रोप ईल्ड कुड रिड्यूस बाई २०%.८-१० %राइज़ इन मोंसून इन्तेंसिती इन्क्रीज़िज़ रिस्क ऑफ़ फ्लड्स एंड क्रोप लोस .मे -ओक्टूबर पीरियड कुड सी अपटू२०%राइज़ .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,लीड स्टोरी ,जनवरी २९ ,२०११ ,पृष्ठ मुख पृष्ठ ,नै -दिल्ली संकरण .).
शताब्दी के शेष बचे दिनों में भारत में तापमान गत १३० सालों का उच्चतम रिकोर्ड तोड़ देंगें .मानसून का मिजाज़ भी बदलेगा .ज्यादा बरसात गिरेगी .कहीं कम समय में बेहिसाब मूसला धार बरसात देखते ही देखते बाढ़ का मंज़र पैदा करेगी .फसल तो ऐसे में उस इलाके की बर्बाद होगी ही ।
इंडियन -इंस्टिट्यूट ऑफ़ ट्रोपिकल मिटीओरोलोजी ,पुणे के माहिर मौसम विद के ताज़ा अन्वेषण किसी अनहोनी की चेतावनी से देते प्रतीत होतें हैं .अनिष्ट की आशंका फ्रांस ,अमरीका ,टाई -लैंड के माहिरोंने भी व्यक्त की है .आशंका तापमानों के उच्चतर होते चले जाने की है ।
दिन के तापमान उच्चतर होने के अनुमान व्यक्त किये गए हैं .तापमानो से यूं राहत रात में भी नहीं मिलेगी .गर्म दिन लम्बे भी होन्गे रातों के बरक्स .आज के दिनों की अवधि के बरक्स ।
गरम दिनों की सौगात लू बन कर कहर बरपाएगी .हीट -वेव देथ्स में इजाफा होगा .फसलें चौपट होंगी सो अलग ।
२०५० तक भारत भर मेंसालाना औसत तापमानों में २ सेल्सियस की वृद्धि दर्ज़ हो सकती है .तथा शती के आखिरी चरण में यह बढ़ोतरी ३.५ सेल्सियस तक पहुँच सकती है ।
यह आकलन अनेक वैज्ञानिक और गणितीय फोर्मूलों पर आधारित है .जिनका आकलन में साथ- साथ इन -टेंदम स्तेमाल किया गया है .
ऐसे ही एक मोडल के अनुसार शताब्दी के आखिर तक ६ सेल्सियस तक की वृद्धि दर्ज़ हो सकती है .आसार अच्छे नहीं हैं .

शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

ग्रेट वाल ऑफ़ वियेतनाम का पता चला ...

ग्रेट वाल ऑफ़ वियेतनाम फाउंड(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नै -दिल्ली ,जनवरी २८ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
पुरातत्व विज्ञान के माहिरों ने वियेतनाम में एक १२७ किलोमीटर लम्बी दीवार का पता लगाया है .इसे ग्रेट वाल ऑफ़ वियेतनाम कहा जा रहा है .इसका पता पुरातत्वविदों की एक टीम ने एक केन्द्रीय वियेतनाम के दूरदराज़ के प्रांत में मौजूद माउंन -तेन फुट -हिल्स में लगाया है .यह एक पांच साला अन्वेषण का प्राप्य है ।
दक्षिण पूर्व एशिया का यह सबसे लंबा मोन्यूमेंट है .इतिहास कार 'पहन ही ले 'ऐसा ही मानते हैं .ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना से तो आप वाकिफ ही हैं .

`हबिल दूरबीन ने अति -प्राचीन गेलेक्सी का पता लगाया .

हबिल टेलिस्कोप स्पोट्स ओल्डेस्ट गेलेक्सी एवर सीन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नै दिल्ली ,जनवरी २८ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
अब तक की सबसे ज्यादा प्राचीन नीहारिका का पता खगोल विज्ञान के माहिरों ने हबिल दूरबीन की सहायता से लगाया है .समझा जाता है यह सृष्टि के निर्माण के आरम्भिक दौर में अब से १३ अरब बरस पहले ही बन गई थी .(सृष्टि अब से १३.७ अरब बरस पहले एक आदिम अनु में महाविस्फोट से बनी समझी जाती है जो सारा गोचर ,अगोचर पदार्थ -ऊर्जा अति उत्त्पत्त और सान्द्र अवस्था (हॉट एंड डेंस ) में समोए हुए था एक साथ सब जगह मौजूद था यह प्राईमिवल मोलिक्युल ,विद इन्फ़ाइनाइत डेंसिटी ,इन्फानाईट टेम्प्रेचर एंड लिट्टिल और नो साइज़ ।)
इस डिम ओब्जेक्त (मद्धिम रोशन अन्तरिक्ष पिंड से ) से निसृत प्रकाश की टोह बुढ़ाते हबिल टेलिस्कोप ने ली है .समझाजाता है यह पिंड बिग बेंग के मात्र ४८ करोड़ साल बाद ही बन गया था ।
नासा की एक टीम के मुताबिक़ यह नीहारिकाओं की अति -सक्रियता का दौर था .तेज़ी से बन रहीं थीं नीहारिकाएं (गेलेक्सीज़ ).इस दौर में .

इस भोजनालय में गंध खाते हैं लोग ....

ईट्री देट लेट्स यु स्मेल फ्लेवर्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नै -दिल्ली ,जनवरी २८ ,२०१११ ,पृष्ठ २१ ।).
एक जगह पढ़ा था कोफी की गंध जब नथुनों में भरतीहै तो दिमाग को उतना ही रिलेक्शेशन मिलता है जितना कोफ़ी पीने के बाद .रूप रस गंध स्वाद खाने का एंजाइम्स को उत्तेजित करता है इसीलिए अच्छी सलाद को देख कर मुह में पानी आजाता है ।
लेकिन इस एरोमा के पैसे नहीं लगते थे .लेकिन अब पेरिस में एक ऐसा रेस्त्रा खोला गया है जिसके मेन्यु में गंधों का ही ज़िक्र है .बस गंध सूंघिए और अपना रास्ता नापिए .यहाँ खाने को गंध ही मिलतीं हैं ।
चाहे तो इस सूंघने की प्रक्रिया को व्हाफ्फिंग कह सकतें हैं .यहाँ खाना खाया नहीं जाता ..एरोमा परोसा जाता है .हो सकता है भविष्य में लोग इन गंधों से ही पेट भर लें ।
एक हारवर्ड यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर के दिमाग की उपज है यह रेस्तरा .एरोसोल साइंसदान डेविड एडवर्ड्स ने भी इसमें सहयोग किया है .

यकसां है बायो -रिदम समुद्री एल्गी और मनुष्यों में ...

हमारे जीवन की बुनियादी इकाई कोशिका /कोशा /सेल से लेकर जीवन के प्राचीनतम स्वरूपों में बायो -रिदम यकसां है .एक भारतीय मूल के साइंसदान ने जो केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शोधरत है उस प्राविधि का पता लगाया है जो इस चौबीस घंटा के चक्र का विनियमन करती है .यह सर्कादिया रिदम /जैव घडी जो चुबीस घंटों की गतिविधियों का संचालन करती है क्या ह्यूमेन सेल और क्या मेरीन एल्गी दोनों में एक समान काम करती है ।

अखिलेश रेड्डी साहिब की यह रिसर्च उन स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों पर एक नै दृष्टि से देखने का रास्ता खोलती है जिनके मूल में इस जैव घडी का असंतुलित हो जाना है .विच्छिन्न हो जाना है काम के नित बदलते घंटों और दे -नाईट शिफ्ट की जल्दी जल्दी अदला बदली से .जिससे अकसर ही शिफ्ट वर्कर्स और पायलट्स दल के सदस्यों को दो चार होना पडता है .पृथ्वी पर जीवन के शुरूआती दौर से यही जैव घडी जीव रूपों की दैनिक गतिविधियों को चलाती आई है ।

न सिर्फ दैनिक और सीजनल (मौसमी )गतिविधियों के पैट्रंस का यहीं जैव घडी निर्धारण करती है ,स्लीप साइकिल (निद्रा से ) से लेकर बटरफ्लाई - माईग्रेशन तक

का यही जैव घडी निर्धारण करती है ।

एक अध्ययन में पहली मर्तबा ह्यूमेन रेड ब्लड सेल्स की २४ घंटा आंतरिक घडी की पड़ताल की गई है दूसरे में मेरीन एल्गी की इन्टरनल क्लोक का जायज़ा लिया गया है .दोनों में बला का साम्य है ।

सन्दर्भ -सामिग्री :बॉडी क्लोक इज सिमिलर इन ह्युमेंस ,एल्गी .(डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नै -दिल्ली ,जनवरी २८ ,२०१११ ,पृष्ठ २१ ).

डिप्रेशन का सामान है हाई -फैट डाइट.

हाई -फैट डाइट कैन ट्रिगर डिप्रेशन ,सेज स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जनवरी २८ ,२०११ ,पृष्ठ २१ ).
ट्रांस -फैट्स और संतृप्त वसाओं (सेच्युरेतिद फैट्स )से सना -भीगा भोजन डिप्रेशन को दावत देता है .यही लब्बोलुआब है एक स्पेनिश स्टडी का जो अमरीका में प्रकाशित हुआ है .पूर्व के अध्ययनों में जंक फ़ूड और डिप्रेशन में एक अंतर -सम्बन्ध की पुष्टि हो चुकी है ।
रिसर्चरों ने यह भी पता लगाया है स्वास्थ्यकर ओमेगा -९ फैटी एसिड्स से भरपूर ओलिव -आयल जैसे कुकिंग मीडियम मानसिक विकारों के खतरे के वजन को कम करतें हैं ।
६ साल के एक दीर्घावधि अध्ययन में साइंसदानों ने १२,००० स्वयंसेवियों के खानपान खुराक और जीवन शैली का अध्ययन और विश्लेषण किया है .इसमें 'नवर्रा तथा लॉस पाल्मास दे ग्रां केनारिया विश्वविद्यालय के साइंसदान शामिल रहें हैं ।
अध्ययन के शुरू में किसी भी प्रतिभागी को अवसाद (डिप्रेशन )डायग्नोज़ (रोग निदान )नहीं हुआ था .लेकिन अंत आते आते ६५७ को बाकायदा डिप्रेशन डायग्नोज़ हुआ ।
इनमे वही प्रतिभागी दिखलाई दिए जिनकी खुराक में ट्रांस -फैट्स खासी बड़ी जगह बनाए हुए थे ,पेस्ट्री और फास्ट फूड्स पर टूटते थे ये लोग.इनमे अवसाद के खतरे का वजन ४८ फीसद बढा हुआ मिला बरक्स उनके जिनकी खुराक में ये ट्रांस - फैट्स शामिल नहीं थे .

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

हेल्थ टिप्स :गुणकारी हींग .

हींग (असफ़ोएतिद):शुद्ध हींग की पहचान क्या है ?
माचिस से जलाने पर यह पूरा जल जायेगी .कुछ नहीं बचेगा .उपयोग देखिये हींग के -
(१)दांत दर्द में :हींग में ज़रा सा कपूर मिलाकर दर्द वाले स्थान पर लगाने से दांत दर्द बंद हो जाता है ।
(२)शक्ति वर्धक टोनिक के रूप में :भुनी हुई हींग , काली मिर्च ,पीपल काला नमक समान मात्रा में लेकर पीस लें .रोजाना चौथाई चम्मच यह चूर्ण गर्म पानी से सेवन करें ।
(३)जुकाम :एक ग्रेम हींग ,पीसी हुई दस काली मिर्च ,दस ग्राम गुड में सबको मिलाकर सुबह शाम खाएं .ऊपर से गर्म पानी पीयें .जुकाम में आराम आयेगा ।
(४)हैजा (कोलरा ):ज़रा सी हींग एक कप पानी में घोल कर पीने से हैज़ा के कीटाणु क्रियाशील नहीं होते .मख्खी मच्छर भगाने के लिए घर में आग पर हींग डालकर धुआँ करें ।
(५)दस्त :आम की गुठली सेक कर गिरी निकालकर ५० ग्रेम गिरी में ५ ग्रेम हींग सेक कर मिलाएं .स्वादानुसार सैंधा नमक मिलाकर पीस लें .यह चूर्ण चौथाई चम्मच तीन बार रोजाना ठन्डे पानी से फंकी लें .दस्त बंद हो जायेंगे ।
(६)उलटी :५ ग्रेम भुना हुआ हींग ,चार चम्मच अजवायन ,बीज सहित दस मुनक्का ,स्वादानुसार काला नमक सबको कूट पीसकर चौथाई चममच तीन बार नित्य लेने से ,उलटी होना ,जी मिचलाना ठीक हो जाता है ।
(७)बलगम ,कफ़:कफ़ निकालने के लिए हींग को घी में सेक कर ज़रा सा गर्म पानी से लें .कफ़ मल(एक्स्क्रीता ) के साथ निकल जायेगा .
(८)जुकाम ,गला बैठना ,गले का दर्द :अदरक की गाँठ में छेद करके इसमें ज़रा सा हींग डालकर काला नमक भर कर ,खाने वाले पान के पत्ते में लपेटकर धागा बाँध कर गीली मिटटी का लेप कर दें.इसे आग में डाल कर जला लें ,जल जाने पर पीसकर मूंग फली के दाने के बराबर आकार की गोलियां बना लें.एक एक गोली दिन में चार बार चूसें .गला खुल जायेगा .आवाज़ साफ निकलेगी .जुकाम से गला बैठना ,गले का दर्द शीघ्र ठीक हो जायेगा ।
(९)खांसी :हींग ५ ग्रेम ,मुलेठी और सौंठ दस दस ग्रेम सब पीसकर २० ग्रेम गुड मिलाकर गोलियां बना लें .एक एक गोली नित्य तीन बार चूसने से खांसी ठीक हो जायेगी ।
(१०)कब्ज़ :ज़रा सा हींग एवं मीठा सोडा*(बेकिंग पाउडर ) ,चार चम्मच सौंफ सबको बारीक पीस लें .एक चम्मच सुबह शाम गरम पानी से फंकी लें .कब्ज़ दूर हो जायेगी ।
(११)पेट दर्द :मूंग के बराबर हींग को गुड में लपेटकर गरम पानी से लें .गैस का पेट दर्द ठीक हो जायेगा .

मिल्क वीड से चमड़ी कैंसर का इलाज़ ...

कोमन गार्डन वीड कैन क्युओर स्किन कैंसर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जनवरी २७ ,२०११ ,पृष्ठ १३ )।
पेटी स्पर्ज़/मिल्क वीड नामक एक आम खर पतवार से ऑस्ट्रेलियाई साइंसदानों ने चमड़ी कैंसर का इलाज़ ढूंढ निकाला है .इस पादप के सैप से दूध जैसा लेटेक्स निकलता है .इसका वानस्पतिक नाम है 'युफोर्बिया पेप्लास '.
इस पादप का स्तेमाल एक औषधीय पौधे के रूप में परम्परा गत चिकिसा में वार्ट्स ,दमा (एस्मा )तथा कई किस्म के कैंसर इलाज़ में किया जाता रहा है ।
यह पहली मर्तबा है साइंसदानों ने इसके सैप को ३६ मरीजों पर आजमाया है .पंद्रह महीनों के इलाज़ के बाद ४८ में से दो तिहाई स्किन कैंसर लीश्जन ने कम्प्लीट रेस्पोंस दर्शाया है .कैंसर कोशाओं को मारने की ताकत रखता है यह सैप जिसे नॉन -मिलेनोमा स्किन कैंसर के खिलाफ कारगर पाया गया है .

कुश्ती में विजेता पहलवानों में तैस्ता -स्टे -रोन का स्तर बढ़ जाता है .

विनर्स हेव हायर टेस -टा -स्टे -रान (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जनवरी २७ ,२०११ ,नै -दिल्ली ,पृष्ठ १३ )।
एक नवीन अध्ययन से पता चला है कुश्ती में विजेता आये पहलवानों में टेस -टा -स्टे -रान का स्तर बढाहुआ पाया जाता है बरक्स प्रतियोगिता में हार जाने वाले पहलवानों के ।
मेल एनिमल्स में (नर पशुओं में )आक्रामक प्रतियोगिता के दरमियान भी टेस- टा- स्टे रान लेवल बढा हुआ पाया जाता है .अध्ययन से पहलवानों को अपने सामाजिक प्रभुत्व को बढाने में मदद मिल सकती है .इससे आगामी ,आइन्दा होने वाली प्रतियोगिताओं में भी जीत का रास्ता आसान हो सकता है .

मोटापे की एक और वजह कमतर सोना ....

'लेस स्लीप ट्रिगर्स ओबेसिटी'(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जनवरी २७ ,२०११ ,नै -दिल्ली ,पृष्ठ १३ ) .अमरीकी नौनिहालों पर संपन्न एक अध्ययन से पता चला है मोटापे की नौनिहालों में एक वजह कम घंटे सोना भी बन रहा है .अपने अध्ययन में रिसर्चरों ने ४-१० साला ३०० अमरीकी बच्चों की सोने की आदतों का एक सप्ताह तक अध्ययन किया .पता चला जो बच्चे प्रति सप्ताह कम घंटा नींद ले पाते थे वे अपने पतले हमजोलियों हमउम्रों के बरक्स मोटे थे .हर छटा अमरीकी बच्चा मोटापे से ग्रस्त है .

क्या आप जानते हैं ?

मनुष्य की शारीरिक बनावट मांसाहार के अनुकूल नहीं है क्योंकि -
हमारे दांत ,ज़बड़े पाचन तथा स्रावी तंत्र (इंडो -क्रा -इन सिस्टम ) मांसाहार के अनुरूप नहीं बनें हैं ।
मांस तथा समुद्री भोजन खाने के ४ घंटा बाद ही सड़ने लगता है .इसका बचा खुचा बिना पचा अंश हमारे पेरितोनियम (पेट की दीवार )तथा इन्तेस्ताइन्स (अंत-अडियों)से ३-४ दिन तक चिपके रहतें हैं .ऐसे में जिस व्यक्ति को कब्ज़ की शिकायत रहती है ये अवशेष सड़े गले और भी देर तक इन अंगों की दीवार से चस्पा रह सकतें हैं ।
मनुष्य की लार की प्रकृति एल्केलाइन है क्षारीय है जो मांस को गला पचा नहीं पाती .जबकि शिकारी पशुओं में लार की प्रकृति अम्लीय होती है जो मांस को गलाने पचाने में एहम भा -गीदारी करती है ।
सभी मांसाहारी पशु अपने भोजन को कच्चा ही खातें हैं .शेर अपने शिकार को पेट से फाड़ता है ,खून पी जाता है पोषक अंगों को पेट आंत आदि को खा जाता है .सर्व -भक्षी/सर्वाहारी भालू कच्ची सलमान मच्छी ही खाता है ।
जहां कच्चा और ख़ूनीमांस खाना मनुष्यों में घृणा पैदा करता है वहीँ यदि कोई जंगल में पशु को भूने तो मांसाहारी पशु उसे नहीं खायेगा .सर्कस का शेर भी कच्चा मांस ही खाता है .वन्य प्राणी विहार /जू आदि में भी शेर आदि को कच्चा मांस ही परोसा जाता है ।
मनुष्य के न तो तेज़ नाखून हैं न मांस को फाड़ने के लिए नुकीले अग्र दांत .मांसाहारियों के तेज़ाब से २० गुना कमज़ोर तेज़ाब है .मांसाहारी पशुओं की आंत की लम्बाई शरीर से सिर्फ तीन गुना लम्बी है ताकि खराब मांस जल्दी शरीर से बाहर निकल सके ।
मनुष्य की आँतों की लम्बाई शरीर से १०-१२ गुना ज्यादा है .क्षारीय लार है जिसमे ताईलीन एंजाइम है ताकि खाद्यान का पूर्ण पाचन हो सके ।
मांसाहारी पशुओं में लार अम्लीय होती .टाई -लींन एंजाइम नदारद रहता है ताकि खाद्य का पूर्व पाचन हो सके .
रेड मीट अनेक जीवन शैली रोगों का लगातार बड़ा करान बन रहा है जिनमे कैंसर भी शामिल है .

शाकाहारियों की किस्में ....

कितने किस्म के हैं शाकाहारी ?
शाकाहारी :शुद्ध शाकाहारी 'वीगन '(वी गन )भी कहलातें हैं .ये डैरी-उत्पादों (पशु -उत्पादों )से भी छितकतें हैं .दूध और इससे बने उत्पाद नहीं लेतें हैं .इनके भोजन में प्रमुखतया साग -सब्जियां ,फल ,लेग्युम्स यानी तमाम तरह की फलियाँ एवं मटर ,तमाम तरह के अनाज (खाद्यान्न )बीज तथा मेवे शामिल रहतें हैं ।

लेक्टो -ओवो -शाकाहारी :ऊपर की तमाम चीज़ों के अलावा अंडा भी ले लेतें हैं .दूध भी ।लेकिन मॉस -मच्छी से इनका कोई मतलब नहीं रहता .न पोर्क न बीफ और न कोई अन्य सामिष खाद्य ये लेतें हैं ।
कुछ शाकाहारी भोजन में शहद भी नहीं लेते .क्योंकि शहद प्राप्त करने की प्रक्रिया में काफी बड़ी तादाद में मधु -मख्खियाँ मारी जातीं हैं .इनका प्रकृति और पशु जीवों तमाम कीट पतंगों ,प्राणी -मात्र के प्रति प्रेम और प्रकृति- संरक्षण के प्रति अनुराग इन्हें ऐसा करने से रोकता है .
वीगन चीनी भी नहीं खाते जिसके परिष्करण में हड्डियों का चूरा स्तेमाल में लिया जाता है .ये जिलेटिन से भी बचते हैं क्योंकि यह पशुओं की हड्डी ,त्वचा एवं आबन्धी -ऊतकों (कनेक्तिव -टिश्यु )से बनता है ।
वीगन चमड़े से बनी चीज़ें नहीं स्तेमाल करते हैं .ऊन सिल्क आदि से बने वस्त्र भी नहीं .पृथ्वी के प्राकृतिक संशाधनों का ये संरक्षण चाहतें हैं ।
फ्रूट -ए -रियन :ये फलाहार पर ज़िंदा रहतें हैं .अलबत्ता वे चीज़ें जो फल और तरकारी (सब्जी )दोनोंवर्ग में आतीं हैं जैसे खीरा ,टमाटर ,आंवला (इंडियन गूज बेरी )भी इनके भोजन का हिस्सा बनतीं हैं .
कच्चा भोजन आहारी :फल ,सब्जी ,मेवों ,भीगे हुए तथा उगे हुए ,अंकुरित खाद्यान्न या लेग्युम्स को प्राकृत अवस्था में ही बिना पकाए खातें हैं ताकि उनके कुदरती गुण तथा एंजाइम्स (किण्वक )बरकरार रह सकें ।
केवल वाईट मीट ,मच्छी चिकिन कभी कभार खाने वालों को (बाकी समय शाकाहार लेने )वालों को अर्द्ध -शाकाहारी कहा जा सकता है ।
शाकाहारी भोजन को नैतिक मूल्यों /तत्वों से भी जोड़तें हैं .अहिंसा इनका मूल मन्त्र है .कहतें हैं जैसा अन्न वैसा मन ,जैसा पानी वैसी वाणी .

बुधवार, 26 जनवरी 2011

हेल्थ टिप्स .

आधा शीशी का दर्द (मीग्रैन) से राहत के लिए :
चने के बराबर डली वाला कपूर लें .देशी घी का गुड का हलवा बनाकर उसमे यह कपूर मिलाकर खा लें .यह प्रयोग रात में करना है ताकि बाद इसके मुख ढक कर सोया जा सके .
मीग्रैन एवं सर्दी खांसी में तात्कालिक लाभ के लिए :

(भीम -सैनी) कपूर को किसी महीएँ रुमाल में बांधकर और नाक से गहरी सांस खींचकर इसे सूंघें .मीग्रैन और सिर दर्द में इससे लाभ होता है .

हेल्थ टिप्स .

गैस और रक्त -चाप नाशक त्रिमित्र चूर्ण :
(१)जीरा -२५० ग्रेम (२)काली मिर्च -५० ग्रेम (३)देशी खांड -३०० ग्रेम
उपरोक्त तीनो को पीसकर बारीक चूर्ण बनाएं ।
चूर्ण त्रिमित्र बनाने कि विधि :पहले सफ़ेद जीरा लेकर मामूली सा भून लें .ताकि इससे सुगंध आने लगे और चूर्ण जल्दी बने .अब सभी चीज़ों को एक साथ चूर्ण करें ,ग्राउंड करें .इसे बारीक मैदे की छलनी से छानें .हाथ न लगायें चूर्ण को .छानने के बाद जो छानन निकले उसे दोबारा बारीक- बारीक पीसें.फिर फिर कर छानें और पीसें .आखिर में जीरा पत्तियाँ ,काडी तिनके दिखें ,फेंकें नहीं इस छानन को .चूर्ण में ही बारीक कर करके मिलातें रहें .इसे कांच की शीशी में संजोकर रख लें .
दो चम्मच एक बार में दिन में दो बार कभी भी ले सकतें हैं इस चूर्ण को ।
लाभ क्या है त्रिमित्र चूर्ण के ?
(१)उष्णता (हीट) कम . करता है .(२)पाचन शक्ति बढाता है .(३)आँतों को ताकत देता है (४)गैस एवं अम्ल पित्त (एसिडिटी )में आराम दिलवाता है .(५)ब्लड प्रेशर -दोनों -उच्च और निम्न रक्त चाप का नियंत्रण करता है ,विनियमन करता है ।
आबाल -वृद्धों ,गर्भ -वती महिलायें भी इसका सेवन कर सकतीं हैं .

हेल्थ टिप्स .

विजय सार का पानी :अस्थियों कि मजबूती के लिए .
विजय सार की लकड़ी के टुकड़े कर लें या बुरादा बना लें .एक ग्लास पानी में यह टुकड़े या थोड़ा बुरादा भिगोयें ,सुबह छानकर पी जाएँ .सूरज डूबने के बाद लकड़ी भिगोयें तथा सूरज निकलने से पहले इस पानी को पी जाएँ ।
इसी प्रकार सुबह भिगोई गई लकड़ी का पानी शाम ६ बजे तक पी लें .हर बार नै लकड़ी भिगोयें .इसके नियमित सेवन से जोड़ों की कड़- कड़ बंद होती है .अस्थियाँ मजबूत होती है .

हेल्थ टिप्स .

घुटनों का दर्द :
६ ग्रेम विजय सार की लकड़ी ,२५० ग्रेम दूध ,३७५ ग्रेम पानी ,दो चम्मच शक्कर डालकर मंदी आंच पर पकाएं .जब पक कर दूध एक कप रह जाए (लगभग २०० ग्रेम )इसे छानकर सोते वक्त पी जाएँ .इसके नियमित सेवन से घुटनों के दर्द में आराम आता है ।
घुटनों की हड्डियों का केल्शियम खुश्क होने की शिकायत दूर हो जाती है .विजय सार हड्डियों के केल्शियम को तर रखती है .पुरानी चोट के दर्द को दूर करती है .इसके प्रयोग से हड्डी टूट जाने पर शीघ्र जुड़ जाती है .लेकिन हड्डी को पहले सेट करवाने के बाद ज़रूरी प्लास्टर करवा लें .इससे कमर का दर्द भी दूर होता है ।
इसका सेवन करने वाले व्यक्ति की बुढापे में कभी गर्दन नहीं कांपेगी .हाथ नहीं कापेंगे .चोट लगने पर हाथ -पैरों एवं शरीर के अन्य अंगों कि हड्डियां सहज नहीं टूटेंगी .सर्दियों में इसका प्रयोग करना चाहिए .

हेल्थ टिप्स .

मधुमेह में राहत के लिए :
बेलपत्र का १०-४० ग्रेम रस रोजाना सेवन करने से ब्लड सुगर का खून में स्तर कम होता है ।
५ बेल के पत्ते (बेलपत्र ),२१ श्यामा तुलसी के पत्ते (बासिल विद ब्लेक लीव्ज़ )११ काली मिर्च ठीक से ग्राउंड कर लें पीस लें .इसे एक कटोरी/कप जल के साथ रोजाना लें .तीन किलोमीटर की नियमित टहल -कदमी /सैर करें .ब्लड सुगर काबू में रहेगी ।
बेल के ७ हरे पत्ते ,७ काली मिर्च ,७ बादाम गिरी (ओवर -नाईट पानी भिगोई हुई ) बारीक पीसकर १०० ग्रेम पानी में मिलाकर दिन में दो बार पीने से ब्लड सुगर धीरे धीरे कम होने लगती है ।
एक कांच के ग्लास में ५ बेल के पत्ते ,५ तुलसी के पत्ते ,५ नीम के पत्ते तथा ६ ग्रेम विजय सार की लकड़ी को रात में पानी में भिगो दें,सुबह इस पानी को छानकर पी जाएँ .रोजाना ऐसा ही करें .ब्लड सुगर कम होने लगती है इसके नियमित स्तेमाल से ।
विजय सार की लकड़ी का ग्लास खरीदिये .इसमें रात को पानी भरकर रख लीजिये .सुबह इस पानी को पी जाइए .मधु -मेह में लाभ होगा .नियमित ऐसा कीजिये .

हेल्थ टिप्स .

मधुमेह में तुलसी की पत्तियाँ(बासिल लीव्ज़ इन डायबिटीज़ ):
खाद्य एवं पोषण विभाग ,हैदराबाद की एक हालिया रिसर्च के अनुसार यदि तुलसी की पत्तियां नियमित रूप से सेवन की जाएँ तो ब्लड सुगर (रक्त शर्करा )कम हो जाती है .दीर्घावधि स्तेमाल एंटी -डायबेटिक दवाओं की मात्रा को भी कम करवा सकता है .तुलसी एक औषधीय पादप है जिसमे सर्व -रोग -नाशक ताकत मौजूद है .

हेल्थ टिप्स .

बल्गम खांसी में आराम के लिए :
सैंधा नमक (लाहौरी नमक )की एक सौ ग्रेम जितनी डली खरीद कर घर में रख लें .जब भी किसी को खांसी हो इस सैंधा नमक की डली चिमटे से पकड़ कर आग पर या गैस पर सेंक लें .जब यह डली लाल हो जाए तुरंत आधा कप पानी में डुबोकर डली को पानी से बाहर निकाल लें .इस पानी को एक ही बार में सारा पी जाएँ .ऐसा पानी सोते समय २-३ दिन तक पीने से खांसी खासकर बल्गम खांसी में आराम आयेगा .नमक की डली को सुखा कर रख लें .फिर काम आयेगा ज़रुरत पड़ने पर ।
१ ग्रेम सैंधा नमक और १२५ ग्रेम पानी गर्म तवे पर छमक दें.जब यह पानी आधा रह जाएँ .थोड़ा ठंडा होने पर पी जाएँ .सुबह शाम इसका सेवन करने से खांसी ठीक हो जायेगी .हाई -पर -टेंशन के मरीज़ को यह प्रयोग नहीं करना चाहिए .

हेल्थ टिप्स .

गले का कोवा (काग ,कौवा )बढा हुआ हो या लटक गया हो तो क्या करें ?
हल्दी पीसी हुई बारीक (हल्दी पाउडर ,हल्दी का बारीक चूर्ण ) दोगुना शहद में मिलालें .साफ़ अँगुली या फाये से कौवा या उसके आस पास जीभ और कंठ प्रदेश में इसे लगा लें .दिन में दो तीन बार ऐसा ही करें .सोते समय ऐसा ज़रूर करें .लटका हुआ काग अपनी सही स्थिति में आ जाएगा ।
काग लटकने की शिकायत अकसर छोटे बच्चों को हो जाया करती है जिससे काग लटक कर जीभ को छूने लगता है .ऐसे में बच्चे को सूखी खांसी उठती है जो इस प्रयोग से ठीक हो जाती है .टोंसिल में भी लाभ होता है .
टोंसिल की बढ़ी हुई अवस्था में एक चम्मच पीसी हुई हल्दी और आधा चम्मच पिसा हुआ नमक एक ग्लास पानी में उबाल कर इस पानी से दिन में तीन बार गरारे करें .इससे गले की खराश और दर्द में भी आराम आता ।
बलगम खांसी एवं हरा नजला में राहत के लिए :
अदरक का रस ,पान (नागरबेल ,पान का पत्ता )का रस और शहद तीनो बाराबर मात्रा में लेकर ठीक से मिला लें .सुबह शाम आधा -आधा चममच की मात्रा में इसे उंगली से चाटें .तीन चार दिन सेवन करें ,फिर नए सिरे से इसे तैयार कर प्रयोग करें ,आराम आयेगा बलगम खांसी और हरा नजला में ।
खांसी से पीड़ित व्यक्ति अदरक का छोटा टुकड़ा धीरे धीरे चबाकर यदि चूसता रहे तब भी खांसी में राहत मिलती है ।
तेज़ खुश्क खांसी से राहत के लिए :
५ तुलसी के पत्ते ,५ काली मिर्च, ५काला मुनक्का ,६ ग्रेम गेंहू का चोकर (छानन ,बूर )६ ग्रेम मुलहठी ,३ ग्रेम बनफशा के फूल लेकर २०० ग्रेम पानी में उबालें .जब आधा रह जाए छान कर पी जाएँ .फिर गरम करें और इसमें बताशे डालकर रात सोते समय गरम गरम पी जाएँ .कपड़ा ओढ़ कर सो जाएँ .हवा से बचें .तीन चार दिन इसका सेवन करें खुश्क खांसी ठीक हो जायेगी .

वेजिटेरियन शब्द का बुनियादी अर्थ ही है जीवन .

क्याहै वेजिटेरियन शब्द का शाब्दिक अर्थ ?लेटिन भाषा का एक शब्द है 'वेजिटास'जिसका अर्थ ही होता है स्वस्थ ,तरोताज़ा जीवन्त ,पूर्ण -तय स्वस्थ (जीवन ).वेजिटास से बना वेजिटेरियन ।
ब्रितानी शाकाहारी संघ के संस्थापकों ने १८४२ में सबसे पहले यह शब्द प्रयोग किया 'वेजिटेरियन '.जिसका बुनियादी अर्थऔर अर्थ के पीछे का बिम्ब बतलाया गया 'संतुलित ',दर्शनीय एवं जीवन का नैतिक मकसद जो सिर्फ फल फूल और तरकारियों के यानी शाकाहार के सेवन से कहीं अधिक है .अहिंसा और सत्य का अनुसंधान है शाकाहार .

डायबिटीज़ मेलाईतस (डी एम् )का आखिर अर्थ क्या है ?

क्योंकि मधुमेह के रोगियों के मूत्र में मिठास पाई जाती है इस लिए इसे डायबिटीज़ मेलाईतस अर्थात मीठा मूत्र भी कहा जाता है .जब रक्त में शक्कर कि मात्रा (ब्लड ग्लूकोज़ )१८० या उससे भी ज्यादा मिलिग्रेम प्रति डेसीलिटर हो जाता है तब हमारी किडनियां इसे हेन्दिल नहीं कर पातीं और इसे शरीर से बाहर करने लगतीं हैं बा -रास्ता मूत्र .जब शक्कर मूत्र में आ जाती है मूत्र मीठा हो जाता है ।पेशाब पर चींटियाँ तभी आतीं है जब पेशाब मीठा हो जाता है .
अलावा इसके डायबिटीज़ का अर्थ बहना या बहाव होता है तथा मेलाईतस का अर्थ मीठा होता है ।
जब रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा इससे (१८० मिलिग्रेम प्रति डेसीलिटर से कमतर )रहती है तब इसे डायबिटीज़ इन्सिपि -डस कहा जाता है .

सोमवार, 24 जनवरी 2011

हेल्थ टिप्स .

गले की सूजन ,खराश ,टोंसिल में राहत के लिए अमलतास :अमलताशकी फली लगभग चार इंच लम्बी को कुचल कर बीज निकाल लें और अन्दर के गूदे जो की काले रंग के सिक्के की तरह लकड़ी के साथ चिपका रहता है को लकड़ी सहित आधा किलो पानी में उबालें .जब पानी आधा रह जाए तो थोड़ा सा दूध मिलाकर इस अमलताश के गर्म काढ़े से गरारे करें .दूध न होने पर अमलताश के गर्म काढ़े से गरारे करें ।
दूध न होने पर अमलताश का गूदा १० ग्रेम २५० ग्रेम पानी डालकर उबाल लें और थोड़ा गर्म रहे तब गरारे करेंताकि गले की सिकाई सी हो जाए .तीन चार दिन तक गरारे करें और दिन में दो तीन बार करें ख़ास कर सोने से पहले अमलताश के काढ़े से गरारे करने से गले की पीड़ा और खराश में तुरंत लाभ होगा ।
इससे गले की सूजन और निगलने में की तकलीफ दूर होती है .डिप्थीरिया (कुकर खांसी /काली खांसी )में लाभ दायक है .गले की खराबी के कारण बुखार भी हो तो उसमे भी लाभ होता है .टांसिल बढ़ जाना ,टोंसिल में आवाज़ बंद हो जाना ,गला बैठ जाना आदि शिकायतें दूर हो जातीं हैं .खतरनाक खुन्नाक रोग में भी पूरी तरह आराम आजाता है .इसके साथ अमलताश के गूदे को पानी में पीसकर थोड़ा गर्म ही सूजन पर लेप करने से शीघ्र लाभ होता है ।
खुन्नाक में कंठ -शोथ (इन्फेक्शन ऑफ़ दी अपर रेस -पाय -रेक्त्री ट्रेक्ट )के साथ खाने -पीने तथा सांस लेने में कठिनाई होती है .काग भी गिर जाता है .और बार बार पीड़ा के साथ खांसी होती है .नजला जुकाम बिगड़ जाने पर भी कभी कभी यह भयानक रोग हो जाता है ।
अमलताश के गूदे का काढा बनाकर उसके गुनगुना रहने की अवस्था में गरारे करने से गले की खराश में लाभ होता है ।
अमलताश गुणों से भरपूर है इसका काला गूदा मृदु रेचक (लेक्सेतिव )शोथहर (एंटी -इन्फ्लेमेत्री ),पीड़ा शामक (एनाल्जेसिक ),रक्त -शोधक ,कफ निस्सारक (एक्स्पेक्तोरेंट ),दाह शामक,ज्वर का नाश करने वाला (एंटी -पाय्रेतिक )है ।
छाती और गले की तकलीफें ,नेत्र रोग ,गठिया रोग ,तथा आँतों के दर्द को दूरकरता है .पित्त ,चर्म- रोग (स्किन दीसीज़ )कुष्ठ और कफ रोग को हरने वाला है .हालाकि गूदा स्वाद में खराब और एक प्रकार की हीक लिए होता है परन्तु स्वाद को दुरुस्त करने वाला और रूचि वर्धक होता है .अमलताश कब्ज़ की बहुत ही निरापद औषधि है ,पर्गेतिव है .जिसे एक सप्ताह के बच्चे को भी बिना किसी आशंका के दिया जा सकता है ।
एक ग्लास दूध में अमलताश की फली का दो इंच लंबा टुकडा १० ग्रेम काट कर उबाल लें और फिर उससे गरारे करें .तोंसिल्स ,गले का दर्द और सूजन इसके नियमित प्रयोग से ठीक हो जाता है .तोंसिल्स के लिए यह एक बेहतरीन नुश्खा है .

रविवार, 23 जनवरी 2011

इलाज़ से बचाव ही सदा सर्वोत्तम है .

जब शरीर में सदा विद्यमान ये त्रि -धातु वात ,पित्त ,कफ तीनों उचितआहार विहार के कारण शरीर में आवश्यक अंश में रहकर ,समावस्था में रहतें हैं और शरीर का परिचालन ,संरक्षण तथा संवर्धन करतें हैं तथा इनके द्वारा शारीरिक क्रियाएं स्वाभाविक और नियमित रूप से होतीं हैं जिससे व्यक्ति स्वस्थ तथा दीर्घायु बनता है तब आरोग्यता की स्तिथि रहती है ।
इसके विपरीत स्वास्थ्य के नियमों का पालन न करने अनुचित और विरुद्ध आहार विहार करने ,ऋतु -चर्या ,दिनचर्या, रात्रि -चर्या ,व्यायाम आदि पर ध्यान न देने तथा विभिन्न प्रकार के भोग विलास और आधुनिक सुख सुविधाओं में अपने में और इन्द्रियों को आसक्त कर देने के परिणाम स्वरूप ये ही वात ,पित्त ,कफ ,प्रकुपित होकर जब विषम अवस्था में आ जातें हैं तब अस्वस्थता की स्थिति रहती है .प्रकुपित वात ,पित्त ,कफ रस ,रक्त आदि धातुओं को दूषित करतें हैं .यकृत ,फेफड़े ,गुर्दे आदि आशयों /अवयवों को विकृत करतें हैं ,उनकी क्रियाओं को अनियमित करतें हैं और बुखार ,दस्त आदि रोगों को जन्म देतें हैं जो गंभीर हो जाने पर जानलेवा भी हो सकतें हैं .इसीलिए अच्छा तो यही है कि रोग ही न हो .इलाज़ से बचाव सदा ही सर्वोत्तम है ।
सारांश यह है कि 'त्रिदोष सिद्धांत 'के अनुसार शरीर में वात ,पित्त ,कफ जब संतुलित या सम अवस्था में होतें हैं तब शरीर स्वस्थ रहता है .इसके विपरीत जब ये प्रकुपित होतें हैंअसंतुलित या विषम हो जातें हैं तो शरीर अस्वस्थ हो जाता है .

'रोगस्तु दोष वैषम्यं '

रोगस्तु दोष वैषम्यं अर्थात रोग हो जाने पर पुनः शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए त्रिदोष का संतुलन अथवा समावस्था में लाना पड़ता है .आयुर्वेद का मूलाधार है -'त्रिदोष सिद्धांत 'और ये तीन दोष हैं -वात ,पित्त ,कफ .त्रिदोष अर्थात वात ,पित्त और कफ़ की दो अवस्थाएं होतीं हैं -(१)समावस्था (न कम ,न अधिक ,न प्रकुपित ,यानी संतुलित ,स्वाभाविक ,प्राकृत .)(२)विषमावस्था(हीन ,अति ,प्रकुपित ,यानी दूषित ,बिगड़ी हुई ,असंतुलित ,विकृत .
वास्तव में वात ,पित्त ,कफ (समावस्था )में दोष नहीं है बल्कि धातुएं हैं जो शरीर को धारण करती हैं और उसे स्वस्थ रखतीं हैं .जब यही धातुएं दूषित या विषम होकर रोग पैदा करतीं हैं तभी ये दोष कहलाती हैं .इस प्रकार रोगों का कारण वात ,पित्त ,कफ का असंतुलन या दोषों की विषमता या प्रकुपित होना है .रोगस्तु दोष वैषम्यं .

हेल्थ टिप्स .

डिप्थीरिया से राहत के लिए :डिप्थीरिया या कुकर खांसी /घट सर्प के रोग में गले में 'चिकट कफ़' अटककर स्वास अवरुद्ध होकर दम घुटने से शिशु की मृत्यु हो जाती है .गले में घर्र घर्र की आवाज़ आती है .स्वांस लेने में बहुत कष्ट होता है .घट सर्प /कुकर खांसी में कफ इतना चिकना होता है कि चिमटी से पकड़ कर खींचा जाए तो लंबा तार की तरह निकलेगा जो टूटेगा नहीं .यही कफ घोघली में चिपटकर स्वांस नलिका को बंद कर देता है .और रोगी मर जाता है ।

डिप्थीरिया है या शंका होने पर यह मालूम होते ही तुरंत दूध में ५-६ बूँद आक (अकौना ,मदार ) का दूध डालकर रोगी को पिला दीजिये .एक दो मिनिट में ही गले का साराचिकटा (चिकट गाढा कफ ) घोघली के स्थान से छूटकर निकल जाएगा ।

डिप्थीरिया की बीमारी में आक का दूध ३-४ बूँद या ५-६ बूँद गाय के दूध में /भैंस के दूध में मिलाकर रोगी को पिलायें .यह विष नहीं है .और नुक्सान नहीं करता ।

आक के पत्ते से दूध निकालते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखें की आक का दूध किसी भी हालत में आँख में न लगे .अन्यथा आँख खराब होने का ख़तरा है ।

यह कफ एवं चिकट को फाड़ देता है .हरा नीला गाढा कफ उलटी द्वारा निकल जाता है .रोगी दो मिनिट में ठीक हो जाता है ।

जब रोगी को उलटी हो वहां कफ ,सर्दी से ग्रस्त कोई व्यक्ति न हो ,उसे भी छूत लग सकती है .इसका डिस्पोज़ल सावधानी पूर्वक करें .बेहतर हो मिटटी के पात्र में संजोकर इसे दफन करदें गहरा गड्ढा खोदकर .जला देन .आबाल्वृद्धों को मरीज़ की सांगत से बचाए रखें खास कर नौनिहालों और बुजुर्गों को .यह बीमारी अकसर शिशुओं को ही होती है लेकिन बड़ो को भी इसकी छूट लग सकती है .डिप्थीरिया का टीका टीका कार्य क्रम के अनुरूप नौनिहाल को ज़रूर लगवाएं बूस्टर डोज़ भी देवें .चिकट कफ कभी भी ख़तरा उत्पन्न कर सकता है .

हेल्थ टिप्स .

खांसी का सरल इलाज़ :थोड़ी सी पीसी हुई हल्दी (२ ग्रेम )०और थोड़ी सी चीनी को कटोरी में डालकर थोड़े से पानी में घोल कर गर्म करें .और खांसी के मरीज़ को पिला दें.खानी में लाभ होगा फ़ौरन ।
हल्दी चूर्ण और चीनी कि फंकी के रूप में भी थोड़े से गर्म पानी से ले सकतें हैं .सोते वक्त दो -तीन दिन लें .लाभ मिलेगा .

हेल्थ टिप्स .

मुख के छालों में गाय की दही से बनाई छाछ के गरारे (गार्गिल )दिन में दो बार करने से आराम आयेगा ।
मैथी के काढ़े के गरारे से गले के छाले ठीक :मैथी में सूजन उतारने के गुण हैं यह स्त्रेप्तो -कोकोई इन्फेक्सन से पैदा गले की सूजन में राहत दिलवा सकती है .बस एक किलो पानी में दो चम्मच भर मैथी दाना डाल कर उबालें .बर्तन को धीमी आंच पर रखकर आधा घंटा पानी को उबलने दें .जब काढा सुहाता सुहाता गर्म रहे तब स्वच्छ कपडे से किसी दूसरे बर्तन में छान लें .इस गर्म मैथी के काढ़े को मुख में भरके कई बार गरारे करें .गले के छाले दूर हो जायेंगें .टोंसिल्स में आई सूजन में भी राहत मिलेगी .खासकर जब टोंसिल पक जाएँ म्यूकस के ज़मा हो जाने से ठीक से काम न करें तो इस प्रकार मैथी का काढा बनाकर गरारे करने से ठीक हो जातें हैं ।
मसूढ़ों में खून आने पर :मैथी दाना उबाल कर पानी के कुल्ले करने से मसूढ़ों का खून निकलना बंद होकर वे स्वस्थ हो जातें हैं .

हेल्थ टिप्स .

हल्दी के चूर्ण से (पीसी हुई हल्दी से )दांत साफ़ करिए ,दांत स्वस्थ रहेंगें ।
हल्दी रस स्वाद कीदृष्टि से कैसेली एवं कडवी होने से दांत तथा मसूढ़ों पर हितकारी असर करती है .कैसेला रस हमेशा संकोचन करने वाला होने से सूजन दूर करता है .कैसेला रस जिसके संपर्क में आता है उसी अंग को मजबूत करता है .हल्दी में पाए जाने वाला कडवा रस ख़ास कर दन्त कृमि को उत्पन्न नहीं होने देता .और यदि उत्पन्न हो भी गएँ हों तो उनको नष्ट कर देता है .इसके प्रयोग से दांत या दाढ़ में केविटी नहीं बनती दांत खोखले नहीं होते छिद्रिल नहीं होते .हल्दी का रस भी कैसेले रस की तरह रक्त शुद्धि करने वाला है .मसूढ़ों का रक्त शुद्ध रहने से दांत मजबूत रहतें हैं .हल्दी रस में तीखी भी है जो कफ़ का नाश करती है .तथा कृमि और चिकनाई को दूर करती है ।
गले के ऊपर के अंगों में कफ जन्य रोग होने की संभावना अधिक रहती है .हल्दी कडवी कसैली और तीखी होने सेएवं गर्म होने से दांत और मसूढ़ों की कफ जन्य रोगों से रक्षा करती है .गुण में रुक्ष होने से मसूढ़ों एवं मुख की चिकनाई दूर करती है .हल्दी व्रणरोपण गुण के कारण दांत के क्षत ,व्रण आदि के घाव भर देती है .मसूढ़ों में जलन चीस और शूलो को अपने विविध -कर्म से मिटाती है . दांत -दाढ़ में केविटी ,छाले व्रण ,सदन आदि को हल्दी अपने कैसेला पन और कडवापन से रोक देती है .रक्त दोष के कारण होने वाला पायरिया जैसा रोग ठीक करने में सहायक है .पायरिया से आने वाली पस(मवाद )रक्त- स्राव (ब्लीडिंग )तथा दुर्गन्ध दूर करती है .कागा लटकने पर भी हल्दी का अंतर -बाहिय प्रयोग सर्वोत्तम है .

शनिवार, 22 जनवरी 2011

क्रीमें कोंगो हेमोरेजिक फीवर से बचाव के लिए ..(ज़ारी ..)

क्रीमें कोंगो हेमोरेजिक फीवर से बचाव और नियंत्रण के लिए निम्न उपाय आजमायें ।
(१)एवोइड टिक इन्फेस्तिद एरियाज़ यानी जहां जहां पिस्सुओं का प्रकोप है आतंक है जहां जहां पिस्सू हो सकतें हैं उधर का रुख न करें ।
(२)एग्जामिन क्लोथिंग एंड स्किन फॉर टिक्स एंड यूज़ रिपेलेंट्स .अपने कपड़ों को और चमड़ी को अपने पालतू पशु को गौर से देखिये कहीं पिस्सू तो वहां नहीं हैं उसके गिर्द ,उसकी चमड़ी से चस्पा ।
(३)यूज़ बेरिअर -नर्सिंग टेक्नीक्स फॉर सस्पेक्तिद एंड ओर कन्फर्म केसिज ऑफ़ क्रीमें कोंगो हेमोरेजिक फीवर केसिज ।
(४) सेफ्टी व्हाइल हेंडलिंग स्पेसिमेंस ऑफ़ ब्लड और टिश्यु टेकिन फॉर डायग्नोसिस /दाय्ग्नोस्तिक्स ।
(५)यूज़ प्रोपर डिस्पोज़ल ओर
डी -कंटामिनेशन प्रोसीज़र फॉर नीडिल एंड बॉडी वेस्ट्स .

क्या है 'क्रीमें कोंगो हेमोरेजिक फीवर '?

"ए जेनेटिक डिजीज कौज्द बाई 'बुनया - वाय्रासिस '/बुन्याविरुसेस देट हेज़ अकर्ड इन दी फोर्मर यु एस एस आर ,.दी मिडिल ईस्ट ,एंड एफ्रिका .इट कौजेज़ ,ब्लीडिंग इनटू दी इंटेस -टा -इन्स ,किद्नीज़ जेनीतल्स एंड माउथ विद अपटू ५५०% मोर्टेलिटी .दी वायरस इज स्प्रेड बाई वेरियस टाइप्स ऑफ़ टिक फ्रॉम वाइल्ड एनिमल्स एंड बर्ड्स टू डोमेस्टिक एनिमल्स (स्पेशियली गोट्स एंड केटिल) ईंद दस टू ह्युमेंस ।
यह एक विषाणुओं से पैदा होने वाला खतरनाक रोग हैं .विषाणु हैं :बुन्या -वाय्रासिस .पूर्व में यह रोग पूर्व सोवियत संघ ,मध्य पूर्व ,और अफ्रिका में फ़ैल चुका है ।
संक्मित व्यक्ति की इंतेस -टा -इन्स में ,अंत -डियों में ,गुर्दों और प्रजनन अंगों में तथा मुख में यह रक्त स्राव की वजह बनता है .इससे संक्रमित ५०%तक व्यक्तियों की मौत हो जाती है ।
इसके फैलाव की वजह पिस्सुओं (टिक्स )की विभिन प्रजातियाँ बनतीं हैं जो जंगली पशुओं पर पलने वाले परजीवी हैं .पक्षी ,मवेशी तथा पालतू पशुओं पर भी यह परजीवी पल्तें हैं .इनके प्रकोप से पशु -पक्षी और मानव दोनों को बचाया जाना टेढा काम साबित होता है .संक्रमित पिस्सू को खुद नहीं होता है यह रोग -संक्रमण ।

बचके रहिये हुज़ूर अपने लाडले पालतू पशु (पेट )से ....

क्रीमें कांगो हेमोरेजिक फीवर (सी सी एच ऍफ़ )एहमदाबाद के निकट तीन लोगों की जान ले चुका है .ख़तरा यह है जो लोग इस रोग संक्रमण के शिकार हो रहें हैं उनकी मौत हो जाने की संभावना कोई कमतर नहीं पूरे ३० %बनी हुई है .वह भी संक्रमित होने के दूसरे सप्ताह के अन्दर ।
जो लोग पेट्स के शौक़ीन हैं या फिर जिनकी रिहाइश ऐसे इलाकों में हैं जहां मवेशियों के रहवास हैं केटिल शेड्स हैं या फिर डैरी फार्म्स हैं unhen इस beemaari के parti maahir lagaataar chetaa rahen हैं .वह अपने पेट्स ko pissuon से bachaayen aur khud भी apni hifaazat rakhen .dekhen kahin unke लाडले pissu to नहीं paale huen हैं ।
"The threat of being infected by a potentially deadly strain of tick -borne virus इस reletively close to your home and should be treated with utmost care and concern ."-says experts ।
Anti -tick programmes and sprays guaranteed to kill ticks can arrest the spread of the dreaded fever at probable sources ।
पेट owners are advised to take anti -tick precautionary measures ,however the only consolation इस that not all tick populations are carriers of the virus causing CCHF .The disease has got a short incubation period and इस quite severe ।
The virus causing CCHF इस found in ticks ,which do not get infected by the virus .Infected ticks transmits the virus to humans through a bite and infected person can spread the virus to others through contact as the virus इस present in bodily fluids and can be transmited via the nasal passage ।
The virus does not die with the host tick in the event of fumigation of infested areas ,but lives on in the eggs of the host and on hatching will continue in the hatchlings .(cont....)

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

पेस्टी -साइड रेजिस -टेंट होतें हैं बेड बग्स .

बेड बग्स आर रेजिस -टेंट तू पेस्टी -साइड्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी २१ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्च -दानों ने पता लगाया है ,पेस्टी -साइड रोधी होतें हैं खटमल .अलबत्ता इनकी आनुवंशिक बनावट को बूझकर इनके खिलाफ नै रणनीति तैयार की जा सकती है ।
बेशक खटमलों (बेड बग्स )में ऐसे जींस (जीवन खण्डों ,जिअवन इकाइयों )की शिनाख्त की गई जो पेस्टी -साइड्स से बेअसर बने रहतें हैं .ऑन लाइन पब्लिक लाइब्रेरी में यह तमाम मालूमात (अन्वेषण )प्रकाशित हुए हैं .इस अध्ययन के को -ऑथर ओमप्रकाश मित्तापल्ली कीटविज्ञान विभाग में सहायक प्रोफ़ेसर के बतौर ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में काम कर रहें हैं .उन्हीं के शब्दों में -"पिन्पोइन्तिन्ग सच डिफेन्स मिकेनिज्म एंड दी असोशियेतिद जींस कुड लीड टू डेवलपमेंट ऑफ़ नोवेल मेथड्स ऑफ़ कंट्रोल देट आर मोर इफेक्टिव ''.

कहीं आप जीवन शैली रोग कि ज़द में तो नहीं आते जा रहें हैं ?(ज़ारी ...)

क्या है आपका 'लिपो -प्रोटीन -प्रो -फ़ाइल '?/ब्लड लिपिड प्रो -फ़ाइल?
क्या आपका टोटल कोलेस्ट्रोल लेविल (खून में मौजूद कुल चर्बी )२००- २३९ के बीच आ रहा है .(आदर्श पाठ नहीं है ये ,२०० से नीचे १८० तक सीमित रखिये इसे .).आपके हाथ में है बेशक खानदानी वजहों का भौगोलिक पूर्व -प्रवणता का आप कुछ नहीं कर सकते ।
कोलेस्ट्रोल धमनियों की अन्दर की दीवारों को खुरदरा /संकरा/कठोर कर देता है .प्लाक जमा होने से हार्डनिंग ऑफ़ आर्ट -
रीज टेक्स प्लेस .ऐसा हो जानेपर हृदय को तथा हृदय से पूरा रक्त आपूर्ति शरीर को नहीं हो पाती .दिल के लिए ख़तरा -ए -जान है आर्टी -रियो -स्केले -रोसिस .बेशक कोलेस्ट्रोल लेविल्स का सम्बन्ध उम्र ,लिंग तथा विरासत में मिली सौगात से भी होता है ।
लक्षण :हाई -कोलेस्ट्रोल के कोई बाहरी लक्षण प्रकट -तया नहीं हैं .यदि आप ओवर वेट हैं तो निम्न का ध्यान रखिये ।
(१`)क्या आप चिकनाई बहुल भोजन लेते रहें हैं ?मोटापा खानदानी है .?आपके लिए नियमित जांच करवाना ही बचावी चिकित्सा साबित हो सकता है .जांच होने से आप जीवन शैली में ज़रूरी बदलाव ला सकतें हैं ।
ज़रूरी उपाय :कम चिकनाई वाला भोजन ही लें .तला भुना डीप फ्राइड/लाईट फ्राइड दोनों से बचें .हैद्रोजिनेतिद वेजिटेबिल आयल (ट्रांसफैट्स,मर्गरिने ) से बेकरी से बचें ,बटर, बिस्किट्स केक नहीं ।
कूकिंग मीडियम में नारियल तेल से बचें .मूंगफली /राईस ब्रानआयल /सूरज मुखी आदि से प्राप्त तेल /सरसों तेल शामिल करें ।ज़रूरी नहीं है सफोला ही हो .
फुल्का सूखा /खुश्क ही भला .पराठा ,पूरी कचौड़ी ,पानी -पूरी नहीं .लो फैट मिल्क ,चीज़ लो फैट वाला ही लें ।
मोटापा अपने साथ हाई -कोलेस्ट्रोल चिपकाए रहता है .वजन कम करें .एल डी एल घटाएं .एच डी एल कोलेस्ट्रोल बढायें,सैर करने से' एल डी एल' ही' एच डी एल' में तब्दील होने लगता है .नियमित सैर को निकलें .एक घंटा रोजाना की सैर पर्याप्त रहेगी एक साथ या टुकडा टुकडा .कुल कोलेस्ट्रोल कम करें .

कहीं आप जीवन शैली रोगों की कगार पर तो नहीं पहुँच रहें हैं ?(ज़ारी ....)

प्री -हाई -पर -टेंसिव होने का मतलब ?
याद रहे विश्व्स्वास्थ्य संगठन द्वारा ज़ारी ताज़ा अनुदेशों के अनुसार ११०/७० सामान्य रक्त चाप के तहत आता है अब, न कि १२०/८० ।
यदि आपका ब्लड प्रेशर १२५-१४० (ऊपरी पाठ )आता है तो इसे बोर्डर लाइन केस ही माना जाएगा .१३० से ऊपर आप प्री -डायबेटिक माने जा सकतें हैं .(अमरीकी मानकों के अनुसार ).१६ साल कम कर सकता है हाई -पर -टेंसन आपका जीवन सौपान .इफ एस्कलेतिद टू हाई -ब्लड प्रेशर इट कैन काज ब्लाइंड -नेस ,हार्ट अटेक ,किडनी दीजीज़ एंड स्ट्रोक (ब्रेन अटेक /सेरिब्रो -वैस्क्युँल्र एक्सीडेंट )।
आनुवंशिक (खानदानी )वजहें भी हो सकती है हाई -ब्लड प्रेशर पूर्वा -परता ,प्री -दिस्पोज़ेशन ,वल्नारेबिलिति की ।
लक्षण :इसे सायलेंट किलर कहा जाता है .दबे पाँव आता है यह आपको खबर ही नहीं होती कब आप प्री -हाई -पर -टेंसिव और फिर हाई -पर -टेंसिव हो गए ।
नुक्सान होने के बाद ही शिनाख्त होती है इसकी कई मर्तबा .तब जब आपको दिल या दिमाग का दौरा पड़ जाता है अचानक .इट कैन टेक अवे एंड टार्गेट एनी वाइटल ओरगेन।
हाव एवर सम पीपुल एक्सपीरिएंस हॉट फ्लाशिज़ ,दिज़िनेस ,शोर्तनेस ऑफ़ ब्रेथ एंड ब्लर्ड विज़न ।
बचाव :कम चिकनाई वाले दुग्ध उत्पाद (दूध ,दही,paneer )tathaa tarkaariyaan hi stemaal karen .Veggies in plenty .भाई साहिब नियमित जांच को आगे आइये ब्लड प्रेशर का हिसाब रखिये .बे-हिसाब न बढ़ जाए यह .
Cut down on salt .
Increase intake of Calsium (low fat dairy ),Magnisium (green leafy vegitables),omega -3 fatty acids (oily fish /omega -3 supplements )and Potassium(fruits and vegetables).
Work out( moderate intensity ) for at least 30 mins a day .It improves blood circulation and reduces stress .Don't jump into a high intensity work out if you lead a sedentary lifestyle .(cont...)

लाइफ ऑन अर्थ बिगेन इन स्पेस .

अब यह सुनिश्चित तौर पर मान लिया गया है पृथ्वी पर जीवन अन्तरिक्ष से ही आयात हुआ था .फ्रेड होइल और उनके शिष्य कहते रहें हैं धूमकेतुओं (कोमेट्स ,जटाधारी तारों )से जीवन के लिए ज़रूरी कच्चा माल पृथ्वी पर पहुंचा था ।
अब अमरीकी अन्तरिक्ष संस्था नासा द्वारा संपन्न शोध कार्य इसी ओर इशारा कर रहा है .उल्काओं (मिटियो -रोइट्स ,याद रहे मीटियो -रोइट्स धूम केतु के ही टुकड़े होतें हैं )पर किये गये अध्ययन पुष्ट करतें हैं जीवन के लिए ज़रूरी जैविक कच्चा माल एस्तिरोइड रोक्स,लघु ग्रह पिंड ही पृथ्वी पर लायें हैं .एक नहीं अनेक लघु ग्रह विविधता से भरपूर हैं और तमाम तरह के अमीनो अम्ल (अमीनो एसिड )तैयार करतें हैं जिनका स्तेमाल यहाँ पृथ्वी पर होता है ।
'दी मोलिक्युल्स कम इन ,टू इमेज वेरायटीज़,नॉन एज लेफ्ट एंड राईट हेन्डिद .,बट ओनली लेफ्ट हेन्डिद अमीनो एसिड्स आर फाउंड इन नेचर .'

क्या आप जीवन शैली रोगों के करीब आ गए हैं ?

क्या आप जीवन शैली रोगों की कगार पर पहुच गएँ हैं जहां आपके लिए इनकी ज़द में आने का जोखिम लगातार बढ़ रहा है ?प्री -डायबेटिक,प्री -हाई -पर -टेंसिव ,परिहृद्य धमनी रोगों (कोरोनरी आर्टरी डी -जीज़िज़ ) की गिरिफ्त में तो नहीं आ रहें हैं .चेक कीजिये.क्या कहती है मेडिकल जांच ?
(१)डायबिटीज़ :यदि आपका फास्टिंग ग्लूकोज़ ११०-१२६ के बीच आ रहा है तब आप प्री -डायबेटिक हो सकतें हैं .याद रखिये डायबिटीज़ पूरे परिवार का रोग बन जाता है लापरवाही बरतने पर आँख किडनी दिल का रोग बन जाता है ।
लक्षण :थकान का बने रहना ,बेहद की प्यास का लगना ,भूख तेज़ लगना ,मूड स्विंग्स ,धुंधली बीनाई (ब्लर्ड विज़न),पेशाब की हाज़त ज्यादा बार होना ,पेशाब का ज्यादा आना भी ,घावों का देर से भरना ,यीस्ट इन्फेक्शन इसके आम लक्षण हैं .यीस्ट इन्फेक्सन इज एन इन्फेक्शस कंडीशन देट अफेक्ट्स दी वेजाईना इन वोमेन .इसे थ्रश /कन्दिदिअसिस भी कहा जाता है ।
बचाव :ब्लड सुगर को नोर्मल रखने के लिए सिदेंतरी लाइफ स्टाइल से बाहर निकल कर सैर को निकलिए।
रेशेदार भोजन कीजिये .खाद्य रेशे चिकनाई (वसा )और शक्कर के पाचन और अपचयन में मददगार रहतें हैं .फलों और ताज़ा हरी पकाई सब्जियों में भरपूर रेशा है .लेन्तिल्स और फलियाँ मौसमी बेहद उपयोगीं हैं .आमला (आंवला ,इंडियन गूजबेरी ,ब्ल्यू बेरी का ज़वाब नहीं ),करेला उम्दा है ,चाहे ज्यूस पियो चाहें खाओ .चने की रोटी लाज़वाब है .भुने हुए चने कहना ही क्या ।
जहाँ तक संभव हो संशाधित खाद्यों से बचिए घर का बना ताज़ा खाना hi sarvottam है ।
ताज़े फल और तरकारियाँ आपकी खुराक का आधा हिस्सा बननी चाहिए .सफ़ेद चीज़ें (सफ़ेद चावल ,चीनी ,ब्रेड ,रोटी मैदा युक्त ,नान, पिज्जा आदि ठीक नहीं हैं ।).
वाईट मीट (सी फ़ूड ,मच्छी आदि बेहतर हैं ) रेड मीट से .ग्रिल्ड या फिर बेक्ड मीट ही लें फ्राइड नहीं ।
सुपाच्य कार्बो -हाई -ड्रेट्स (कोम्प्लेक्स कार्बो -हाई -ड्रेट्स ) ही लें .२५ फीसद तक hi यह आपकी खुराक का हिस्सा हों.
Say good bye to pepsi and other aerated drinks ,packaged juices .Chech your blood sugar regularly .Cut sweets to once or twice a week . Cut your drinks wines included .(cont...)
Refrence material :Control +S.Your Medical report says you are on the verge of a life style disease .don't panic .You can arrest deteriorating health before it gets too bed .our experts tell you how./Mumbai Mirror,January21 ,2011 ,page 24 .

हेल्थ टिप्स .

एग्जीमा एंड सोरियासिस में राहत के लिए 'अवोकेडो आयल ':अवोकेडो इज ए फ्रूट विद ए ठीक ग्रीन ऑर डार्क पपील स्किन एंड हेज़ ए लार्ज सीड इन डी मिडिल ,आल्सो नॉन एज फैट फ्रूट बात इट्स फैट इज कन्द्युसिव टू हेल्थ ।
तो ज़नाब अवोकेडो का तेल एग्जीमा तथा सोरियासिस जैसे चर्म रोगों के इलाज़ में कारगर साबित होता है .इसका फल दिल के लिए अच्छा है ।
यदि आप कंप्यूटर पर काम कर रहें हैं तो आँखों को होने वाली नुकसानी को कमसे कम करने के लिए कंप्यूटर स्क्रीन कीब्राइटनेस को अपने माहौल के अनुरूप एडजस्ट करके रखिये .

गुरुवार, 20 जनवरी 2011

हेल्थ टिप्स .

सूखी खांसी से राहत के लिए क्या करें ?
(१)जब तक खांसी रहे सेब पर काली मिर्च और मिश्री डालकर खाते रहें .गले में खरखरी चलकर आने वाली खांसी एवं बार -बार उठने वाली खांसी में लाभ होगा ।
(२)नित्य पके हुए सेब खाते रहने से सूखी खांसी में लाभ होगा ।
(३)पके हुए सेब का रस एक ग्लास निकालकर मिश्री मिलाकर प्रात :पीते रहने से लाभ होगा ,पुरानी खांसी ठीक हो जायेगी ।(४)आधे नीम्बू के रस में दो चममच शहद मिलाकर चाटने से तेज़ खांसी और जुकाम में लाभ होता है ।
(५)आधा नीम्बू काटकर उसके अन्दर चीनी काला नमक और काली मिर्च भर कर चाटने चूसने से लाभ होता है .और खांसी का डर कम होता है ।
(६)अदरक का तीस ग्रेम रस इतने ही शहद में मिलाकर नित्य तीन बार दस दिन तक चाटने से दमा खांसी
के लिए उपयोगी सिद्ध होता है ।
गला बैठ जाए ,जुकाम हो जाए उसके लिए भी यह लाभदायक है ।
(७)१२ ग्रेम अदरक के टुकड़े करके एक पाँव पानी लें इसमें थोड़ा दूध और शक्कर मिलाकर चाय की तरह उबालकर पीने से खांसी जुकाम ठीक हो जाता है ।
(८)दस पत्ते तुलसी के तथा चार लॉन्ग लेकर एक ग्लास भर पानी में उबाल लें ,जब यह आधा रह जाए तब इसमें थोड़ा सा सैंधा नमक डालकर गरम गरम पीयें .यह काढा पीकर कुछ समय चादर ओढ़कर पसीना लें .काढा दिन में दो बार तीन दिन तक पीयें .

क्षणिका :बिना एहसास के मैं जी रहा हूँ .

क्षणिका :"बिना एहसास के मैं जी रहा हूँ "-नन्द मेहता वागीश ,वीरेंद्र शर्मा ।
बिना एहसास के मैं जी रहा हूँ ,
इसलिए कि जब कभी एहसास लौटें ,
तो ,खैरमकदमकर सकूँ .

व्हाट इज 'ट्रांस -पू -ज़न'?

ट्रांस -पू -ज़न :फाइटिंग बग्स विद अदर्स 'फीसीज़ गू -ई क्युओर :इन दी ट्रीटमेंट ,डोनर्स फीसीज़ इज ट्रांस -फर्द इनटू दी पेशेंट्स कोलन .(दीटाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी २० ,२०११ ,पृष्ठ २३ )।
ट्रांस -पू -ज़न /बेक्टीरियो -थिरेपी /स्टूल इन्फ्युज़ं थिरेपी क्या है ?
कितने ही लोग अस्पताल में इलाज़ के दौरान "दी क्लोस्त्रिदियम दिफ्फिसिले /दिफ्फी -साईल बग की चपेट में आजातें हैं .एंटी -बायोटिक्स इनपे बे -असर साबित होतें हैं ।
मरीज़ इसमें क्रोनिक डायरिया से ग्रस्त हो जातें हैं .दे डेस -परेट्ली नीड गुड बग्स .समाधान है 'स्टूल इन्फ्युज़ं थिरेपी 'यानी इस इलाज़ में होता क्या है .एक व्यक्ति का मल(बिष्टा ) दूसरे कि अंतड़ियों में रख देना ।इसी लिए इसे "पू' ट्रांस -प्लान्तेसन 'यानी
ट्रांस -पू -ज़न भी कहा जा रहा है . फीसीज़ ,इन्क्लुडिंग इम्पोर्टेंट बोवेल फ्लोरा ,इज ट्रांस -फर्ड फ्रॉम ए वोलंटियर डोनर -स्क्रीन्द टू लिमिट पोसिबिल अदर इन्फेक्संस -इनटू दी कोलन ऑफ़ दी इन्फेक्तिद पेशेंट .अमरीका योरोप ,दुनिया के कई और हिस्सों में भी 'सी दिफ्फी -साईल इन्फेक्सन के जान लेवा मामलों में वृद्धि देखी जा रही है .इलाज़ की आजमाइशें ज़ारी हैं .९० फीसद कामयाबी भी हाथ लगी है .

जमजात रोगों से निजात केलिए गर्भस्थ में स्टेम सेल प्रत्यारोप ...

मोम्स मोरो टू ट्रीट बेबीज़ इन वोम्ब .इन ए फस्ट ,एक्सपर्ट्स ट्रांसप्लांट स्टेम सेल्स इन फी -ट -सीज टू क्युओर ब्लड डी -
सीज़िज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी २०,२०११ ,पृष्ठ २३)।
यह पहला मौक़ाhai जब केलिफोर्निया विश्व -विद्यालय के साइंसदानों ने माँ की अस्थि -मज्जा से कलम कोशिकाएं लेकर उसके गर्भस्थ में प्रत्यारोपित की हैं ताकि उसे गंभीर खून की बीमारी से बचाया जा सके . अब ऐसा प्रतीत होता है जन्मजात स्टेम सेल डिस -ऑर्डर्स से गर्भस्थ को माँ के गर्भ में ही ठीक किया जासकेगा .रिसर्च से पता चला गर्भस्थ की १० फीसद स्टेम सेल्स उसे माँ से ही प्राप्त हुईं हैं यही वजह रही माँ की स्टेम सेल्स को गर्भस्थ के इम्यून सिस्टम ने अपना लिया रिजेक्ट नहीं किया विजातीय समझ कर न ही ट्रांसप्लांट के बाद उसे कोई दवा देने की नौबत आई ।
'मदर्स इम्यून रेस्पोंस प्रिवेंट्स फितासिज़ फ्रॉम एक्सेप्टिंग डोनर ब्लड स्टेम सेल्स .एज लॉन्ग एज डी ट्रांसप्लांट -ईद स्टेम सेल्स आर मेच्ड टू डी मदर ,इट डज़ नोट सीम टू मैटर इफ दे आर मेच्ड टू दी फीटस .ट्रांसप्लांट -इंग स्टेम सेल्स हार्वेस्तिद फ्रॉम दी मदर मेक्स सेन्स बिकोज़ दी मदर एंड हर डेवलपिंग फीटस आर प्री -वायर्ड टू टोलारेट ईच अदर ।
अब देखना बस यह बाकी है क्या प्रत्यारोपित कलम कोशिकाएं बेबीज़ में भी कामयाब होतीं हैं या नहीं ।
गर्भावस्था के पहले १२ हफ़्तों में कितनी ही आनुवंशिक बीमारियों का रोग निदान किया जा सकता है .स्टेम सेल ट्रांसप्लांट इन रोगों को जन्म पूर्व ही दुरुस्त कर सकता है .बिकोज़ दी इम्प्लान्तिद सेल्स कैन रिप्लेनिश दी बेबीज़ सप्लाई ऑफ़ ब्लड फोर्मिंग सेल्स .

कोलेस्ट्रोल कम करने वाली दवा सवालों के घेरे में ......

क्वाश्चंस ओवर स्टे -टीन्स बेनिफिट्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी ,२० ,२०११ ,पृष्ठ २३ )।
एक फैशन के बतौर भी लोग कोलेस्ट्रोल कम करने वाली दवाएं लेते देखे जातें हैं चाहें उन्हें दिल की बीमारियों का ख़तरा हो न हो या बिलकुल कम हो .ब्रितानी रिसर्च -दान ऐसा करना अकलमंदी नहीं मानते .अध्ययन बतलातें हैं जिन्हें दिल की बीमारी का ख़तरा कम रहता है उनके मामले में "स्टे -टीन्स 'की भूमिका इस खतरे को कम करने के मामले में बहुत उल्लेखनीय नहीं रही है .बहुत सी तो रिपोर्ट्स भी दोषपूर्ण रहीं हैं .ज्यादातर अध्ययन एक तरफ़ा फायदे गिनातें हैं स्टे -टीन्स के अवांछित अनचाहे पार्श्व प्रभावों की न तो पड़ताल करतें हैं न ज़िक्र .यही कहना है शाह इब्राहिम का जिनके नेत्रित्व में इस शोध को अंजाम तक पहुंचाया गया है .

हलके में न लें इस चेतावनी को -'इलेक्ट्रोनिक दिवाइसिज़ पोज़ देफ़िनितरिस्क टू प्लेन्स .'

इलेक्ट्रोनिक डिवाई -सीज पोज़ डेफिनित रिस्क टू प्लेन्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी २० ,२०११ ,पृष्ठ २३ )।
हवाई ज़हाज़ के हवाई पट्टी पर दौड़ने से पहले (टेक ऑफ़ )से ठीक पहले यह घोषणा होती है -यात्रियों से निवेदन है वह कृपया अपने मोबाईल फोन्स अन्य गेजेट्स आदि स्वीच ऑफ़ कर दें.टी वी शोज़ तथा संगीत समारोहों की प्रस्तुतियों से पूर्व भी यही घोषणा की जाती है .हमसे से कई इसे हल्कें में लेतें हैं ।
हवाई उड़ान के वक्त यह किसी बड़ी दुर्घटना का सबब भी बन सकती है .हवाईज़हाज़ दुर्घटना ग्रस्त भी हो सकता है .माहिरों के अनुसार -"दी ओपरेशन ऑफ़ सेल फोन्स एंड अदर पोर्टेबिल इलेक्ट्रोनिक दिवाईसिज़ कुड किर्येत ए 'परफेक्ट स्टोर्म 'ऑफ़ इंटर -फियारेंस विद सेंसटिव एयर -क्राफ्ट इन्स -ट्र्यु -मेंट टू काज ए क्रेश -एंड ओल्डरएयर क्राफ्ट्स आर स्पेशियली वल्नारेबिल "
जानतें हैं ऐसा क्यों होता है -आपके घर में जब रेडियो -ट्रांज़िस्टर चल रहा होता है और आप कोई लाईट स्विच ऑन या ऑफ़ करतें हैं तब रेडियो में नोइज़ पैदा होती है .एक विक्षोभ पैदा होता है .क्योंकि आपका रेडियो आवांछित सिग्नल्स (रेडियो वेव्स ,विद्युत् -चुम्ब- कीय तरंगें पकड़ने लगता है जो ऑन -ऑफ़ की प्रक्रिया से पैदा होतीं हैं .सभी इलेक्ट्रोनिक प्रणालियों में ऐसा ही होता है ,सेल फोन्स में भी .ऐसे में अवांछित सिग्नल्स हवाई ज़हाज़ के इलेक्ट्रोनिक सर्किट में विक्षोभ पैदा करतें हैं ,डिस्टर्बेंस पैदा करके एक खतरे को निमंत्रित कर सकतें हैं .इसलिए कृपया सावधान रहें .चेतावनी को हलके में न लें .पुराने पड़ चुके हवाई ज़हाजों में नै उम्र के गेजेट्स से पैदा सिग्नल्स से बचाव का कोई ज़रिया भी नहीं है .

मर्दों के लिए अच्छे हैं एंटी -ओक्सिदेंट्स लेकिन औरतों के लिए ....

एंटी -ओक्सिदेंट्स आर गुड फॉर मेन बट बेड फॉर वोमेन (मुंबई मिरर ,जनवरी २० ,२०११ ,पृष्ठ २४ )।
एंटी -ओक्सिदेंट्स मर्दों की मर्दानगी के लिए भी अच्छे हैं क्योंकि यह शुक्राणुओं स्पर्म सेल्स को होने वाली नुकसानी को कम करतें हैं एक प्रकार से लो स्पर्म काउंट का समाधान प्रस्तुत करतें हैं .संतान चाहने वाले मर्दों के लिए यह अच्छी खबर हो सकती है ।
वास्तव में हमारे शरीर में रसायनों का एक समूह रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीसीज कहलाता है .यही रसायन कोशिकाओं को खासकर स्पर्म सेल्स को नष्ट करतें हैं .इन्हें संक्षेप में "आर ओ एस" कह दिया जाता है .एंटी -ओक्सिदेंट्स 'आर ओएस 'से होने वाले स्पर्म सेल डेमेज को कम करतें हैं ।
लेकिन यही एंटी -ओक्सिडेंट औरतों के लिए प्रजनन सम्बन्धी बाधाएं खड़ी कर सकतें हैं .आइये देखे कैसे एक अध्ययन के झरोखे से ।
अपने एक प्रयोग में साइंसदानों ने जब फिमेल माइस की ओवरीज़ में एंटी -ओक्सिडेंट लगाया तब ओव्युलेसन लेविल (ओवम का बनना कम हो गया ,डिम्ब क्षरण कमतर हो गया ).ओवेरियन फोलिकिल्स (अंडाशय की अंड -वाहिनी नलिकाओं से )से कम एग्स रिलीज़ हुए .इनमे से कम ही फ़र्तिलाइज़ेसन की साईट तक पहुंचे .लेकिन अन -उपचारित फिमेल माइस के साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ।
ऐसा लगता है आर ओ एस रसायन ओव्युलेसन की प्रक्रिया को असर ग्रस्त करते हैं .ओव्युलेसन इन्ही के भरोसे रहता है जबकि एंटी -ओक्सी देंट्स इन रसायनों को ही नष्ट कर देता है या निष्क्रिय बना देता है .अभी और आजमाइशों की गुंजाइश है कुछ भी कहने निष्कर्ष निकालने से पहले .

हेल्थ टिप्स .

खांसी से राहत के लिए :पांच बताशे एक छुआरा तथा एक छोटी इलायची दो कप दूध में मंदी आंच पर उबालें जब आधा रह जाए इसे गरमागरम पी जाएँ ,शरीर में ऊर्जा भी आएगी खांसी जुकाम में आराम भी .

हेल्थ टिप्स .

खून साफ़ करने के लिए :सुबह सवेरे सवेरे खाली पेट अनार के सुखाये हुए छिलके का पाउडर एक चम्मच एक ग्लास पानी के साथ लेने से खून साफ़ होता है ।
खांसी से रहत के लिए :रात को सोने से पहले सौंफ ,अजवायन ,दालचीनी (कार्डामाम),एक लॉन्ग (क्लोव )तवे पर हल्का सा भून लें .अब इस सबको एक कप पानी में उबालकर जब यह काढा आधा रह जाए ऊपर से थोड़ा सा काली मिर्च पाउडर मिलाकर पी जाएँ .इसके बाद कुछ न खाएं .खांसी में आराम आयेगा ।
कीलमुहांसों(एकने ) से बचने का आसान उपाय :ऐसे किसी भी सौन्दर्य प्रशाधन का स्तेमाल न करें जिसमे कृत्रिम रसायनों तथा वानस्पतिक तेलों का स्तेमाल किया गया हो .

बुधवार, 19 जनवरी 2011

मौत को भी हँसते देखा है मैंने .

मौत को भी हँसते देखा है मैंने ,
एक तुम हो कि ज़िंदा भी रोतें हो । -रचनाकार

नन्द मेहता वागीश .१२१८ ,अर्बन एस्टेट गुडगाँव -१२१-001
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा .

बर्ड्स ऑफ़ ए फीदर ?योर जींस हेल्प यु सलेक्ट फ्रेंड्स (टीओए ).

बर्ड्स ऑफ़ ए फीदर ?योर जीन हेल्प यु सलेक्ट फ्रेंड्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १९ ,२०११ ,पृष्ठ २३ )।
" प्रोसीडिंग्स ऑफ़ दी नेशनल अकादेमी ऑफ़ साइंसिज़ "जर्नल में हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसका सम्बन्ध ऊपरलिखित शीर्षक से है .प्रस्तुत है इसी रिपोर्ट के कुछ अंशों पर आधारित एक सार :प्रस्तुति एक दम से मौलिक है .जो समझ पड़ा है वही लिखा है .वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )।
'नेचर और नर्चर '-विमर्श और राग पुराना है .पढ़ा था कभी ,गुना भी था -'यु आर नोट ओनली दी सम टोटल ऑफ़ योर जींस ,यु आर योर एन -वायरन -मेंट आल्सो 'यानी जीवन(व्यक्ति विशेष ) मात्र जीवन(व्यक्ति ) की बुनियादी ईंटों ,जीवन इकाइयों का जमा जोड़ मात्र नहीं उसका परिवेश भी है ।
अब अगता है इसमें एक आयाम और आ जुड़ा है .नेचर एंड फ्रेंडशिप यानी व्यक्ति मात्र रिप्रो -डक -टिव यूनियन का परिणाम मात्र नहीं है .दो व्यक्तियों के बीच की फ्रेंडशिप यूनियन का भी नतीजा है ।
ज़ाहिर है -संग का रंग चढ़ता है .राधा ऐसे ही नहीं गाती थी -श्याम रंग में रंगी चुनरिया अब रंग दूजो भावे न ,जिन नैनं में श्याम बसें हैं और दूसरो आवे न ।
यह निष्कर्ष सहज ही निकाला जा सकता है -जेनेटिक स्ट्रक्चर इन ह्यूमेन पोप्युलेसन मे रिज़ल्ट नोट ओनली फ्रॉम दी फोर्मेसन ऑफ़ रिप्रो -डक -टिव यूनियंस बट आल्सो फ्रॉम दी फोर्मेसन ऑफ़ फ्रेंडशिप यूनियंस विदीन ए पोप्युलेसन ।
ह्यूमेन इवोल्युसन मे तू सम एक्सटेंट हेव बीन शेप्ड बाई इन्तेरेक्संस बिटवीन जींस एंड फ्रेंडशिप चोइसिज़ ।
मानवीय विकासात्मक पर्यावरण उसके भौतिक और जैविक पर्यावरण तक ही सीमित नहीं है उसका सामाजिक परिवेश भी इस विकास में शामिल रहा है .

दोस्तों के चयन में बेशक आपके जींस आपकी मदद करतें हैं .

बर्ड्स ऑफ़ ए फीदर ?योर जींस हेल्प यु सलेक्ट फ्रेंड्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया,मुंबई ,जनवरी १९ ,२०११ ,पृष्ठ २३ )
कहतें हैं आदमी अपनी संगत से पहचाना जाता है .कहावत है 'चोर चोर मौसेरे भाई '.कबीर दास ने कहा है :अच्छों को अच्छे मिलें ,मिलें नीच को नीच
पानी से पानी मिले ,और मिले कीच से कीच ।
विज्ञान कहता है आपकी दोस्ती का आधार आपकी जीवन की बुनियादी ईंटें (जींस )तय करतीं हैं .दुर्गुण आदमी को खींचता है ,गुण छिट्कातें हैं .आदमी गंदगी की तरफ जल्दी जाता है .हमजोलियों में जीन साम्य देखा जा सकता है ।
आपकी खानदानी विरासत ,जीवन इकाइयों का समुच्चय ,कोम्बिनेशन कमो- बेश तय करता है आपकी दोस्ती किसके साथ होती है ,होनी है .अब ये और बात है ,दोस्ती गाढ़ी हो जाने के बाद दोस्त भी कोई कम प्रभाव नहीं छोड़ते ।
कई मर्तबा देखने में यह भी आयेगा -अपोज़िट्स अट्रेक्त.विपरीत प्रकृति स्वभाव के लोग एक दूसरे के निकट खींचे चले आते हैं .और कई दफा सम स्वाभावि सम -भावी बन जातें हैं .स्वभाव की समानता आधार बनती है आकर्षण का ।
दोस्ती के आनुवंशिक आधार की पड़ताल इधर केलिफोर्निया विश्व विद्यालय के रिसर्च दानों ने की है .उपर्युक्त सभी संभावनाओं को खंगाला गया है ।
इस एवज जेनेटिक मार्कर्स की ,जीनो -टाइप्स की (कोम्बिनेशन ऑफ़ जींस इन ए लिविंग पर्सन ) की ६ जीवन इकाइयों में पड़ताल की गई .पता लगाया गया कितनी बार यह दोस्तों में समान तौर पर,यकसां देखने को मिलतें हैं ।
दो उदाहरण साफ़ तौर पर उभर कर आये ।
(१)बर्ड्स ऑफ़ ए फीदर फ्लोक टुगेदर .यानी एक से स्वभाव वाले लोगों में दोस्ती होती है ।समान जीन मार्कर्स होतें हैं .
(२)अपोज़िट्स अट्रेक्त .यानी विपरीत स्वभाव के लोगों में परस्पर आकर्षण देखा जाता है ।
पहले में एक जीवन इकाई 'डी आर डी २ 'का एक वेरिएंट समान रूप से दोस्तों में देखने में आया .एल्कोहलिज्म का सम्बन्ध इसी जीन वेरिएंट से होता है .दोस्ती उनमे भी थी जिनमे यह मारकर मौजूद था या वे लोग आपस में दोस्त थे जिनमे यह नदारद था ।
एक जीवन इकाई होती है 'सी वाई पी २ ए ६ "इसी का एक संस्करण होता है जिसका सम्बन्ध 'ओपन 'पर्सनेलिटी लोगों से होता है .यानी एक दम से मुह फट ,खुली किताब ,पारदर्शी लोग .इसके मामले में उन लोगों में यारी देखी गई जिनमे से एक दोस्त में यह था दूसरे में नदारद था .यानी 'अपोजिट अशोशियेसन ।
प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल एकादेमिओफ़ साइंसिज़ में यह तमाम अन्वेषण दर्ज़ हैं प्रकाशित हैं ।
इसका मतलब यह हुआ आदमी के स्वभाव के विकास में जीवन इकाइयों के अलावा यार दोस्तों का भी हाथ होता है यानी नेचर एंड फ्रेंडशिप इवोल ए पर्सन .

खतरनाक भी हो सकता है केल्सियम ब्लोकर्स और एंटी -बायोटिक्स का संग साथ .

एंटी -बायोटिक्स का एक वर्ग है एर्य्थ्रोम्य्सिन,क्लारिथ्रो -माइसिन और एज़िथ्रो -माइसिन .देखा गया है कुछ ओल्डर एडल्ट्स में जो ब्लड प्रेशर के प्रबंधन के लिए केल्सियम चेनल ब्लोकर्स पर चल रहे होतें हैं इनमे से पहले दो का स्तेमाल एक दम से रक्त चाप में गिरावट ला देता है .ऐसे में इन्हें अस्पताल में भर्ती करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता है .आखिर ऐसा होता क्यों हैं ?आइये देखें ।
वास्तव में एरिथ्रो -माय्सीन तथा क्लारिथ्रो -माय्सिन केल्सियम चेनल के अपचयन (मेटाबोलिज्म )के लिए ज़रूरी एक एंजाइम को ऐसा करने से रोक्तें हैं इसे बे -असर कर देतें हैं .अजीथ्रो -माय्सिन के संग साथ ऐसा नहीं होता है .ऐसे में रक्त में केल्सियम चेनल ब्लोकर्स का स्तर यकायक ऊपर चला आता है ,बढ़ जाता है .यही कई मर्तबा एक दम से लो ब्लड प्रेशर की वजह बन जाता है .अजीथ्रो माय्सिन इस एंजाइम को ब्लोक नहीं करता है .इसलिए दिया जा सकता है केल्सियम चेनल ब्लोकर्स के साथ जो एक लॉन्ग टर्म मेदिकेसन समझा जाता है,ब्लड प्रेशर के प्रबंधन में ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-एंटी -बायोटिक्स ,ब्लड प्रेशर ड्रग्स कैन बी ए रिस्की मिक्स .(डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १९ ,२०११ ,पृष्ठ २३ ).

अपने ही शुक्राणु से कुछ को एलर्जी हो सकती है मैथुनोत्तर.

सीमेन एलर्जी बिहाइंड मिस्ट्री इलनेस आफ्टर सेक्स (डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १९ ,२०११ ,पृष्ठ २३ )।
साइंसदानों के पास ऐसे बहुत से लोग पहुंचे हैं जो साथी से सेक्स करने के बाद, .इजेक्युलेसन के फ़ौरन बाद कुछ ख़ास लक्षणों से ग्रस्त हो जातें हैं .पता चला है इन तमाम लोगों को अपने ही सीमेन (शुक्राणु ,स्पर -मेटा -ज़ोआं) से एलर्जी है ।
डच माहिरों की एक टीम ने इस अध्ययन को परवान चढ़ाया है .पता चला है साथी के साथ सम्भोग रत होने के फ़ौरन बाद कुछ लोग फ्ल्यू जैसे लक्षणों की चपेट में आ जातें हैं .फीवर ,रनिंग नोज़ ,थकान और आँखों की जलन इन्हें घेर लेती है .ये लक्षण एक सप्ताह तक बने रहतें हैं .

हैंग ओवर के समाधान के लिए कोफी .

कोफी कैन क्युओर हैंग ओवर :दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १९ ,२०११ ,पृष्ठ २३ )।
साइंसदानों ने पता लगाया है हैंग ओवर के समाधान के लिए हॉट कोफी मुफीद रहती है .बेशक पीने वालों को इसका बहुत समय से अंदाजा था ,इल्म था लेकिन वैज्ञानिक मान्यता इसे अब मिली है ।
एक अध्ययन के अनुसार शराब से सिर चढ़ी रात की खुमारी ,हैंगोवर को उतारने के लिए अगली सुबह एक कप गर्म कोफी एक एस्पिरिन की टिकिया के साथ लेने से हैंग ओवर के लक्षणों से बचाव होता है . कोफी में मौजूद केफीन तथा एस्पिरिन में मौजूद एंटी -इन्फ्लेमेत्री घटक दोनों मिलकर एल्कोहल का मुकाबला करतें हैं .इस परम्परा गत मोर्निंग बूस्ट को अब ओरगेनिक हनी और रा -एग से बेहतर बतलाया जा रहा है .

नाव ए रेसिपी फॉर रीग्रोइंग हेयर ....

ग्रो -योर हेयर बेक डाईट :४३ साला मारी कोर्रिगन तीन बच्चों की माँ हैं .आप एक होटल में मुख्य रसोइया रह चुकीं हैं .बालों के गंज पन (बाल्डी पेचिज़ )से आजिज़ आकर जब आप केश विज्ञान के एक माहिर के पास इलाज़ के लिए पहुंची तो उसने टका सा ज़वाब दिया -इसका कोई समाधान नहीं ।बाल्ड पेचिज़ विद रिमेन विद यु .
बस आपने घरेलू नुस्खों कि आज़माइश शुरू की .लम्बी खोज के बाद आप इस नतीजे पर पहुँच रहीं हैं :ए डाईट कंटेनिंग आयरन रिच फेयर सच एज कोकक्लेस ,वेनिसन एंड लीफी ग्रीन वेजितेबिल्स इज 'दी ग्रो योर हेयर बेक डाईट' ।
हम तो ज़नाब बरसों से कहतें रहें हैं खानपान से जुडी है बालों के पोषण की नव्ज़.घनी केश क्यारी /घने रेशमी बाल किसी तेल से नहीं बनते .वह सिर्फ विज्ञापन का मिथ है ।
वेनिसन :वेनिसन इज मीट फ्रॉम ए डीयर यूस्ड एस ए फ़ूड ।
कोकक्ले:इट इज ए मोलस्क विद हार्ट शेप्ड शेल .
कोकक्ले इज ए स्माल शेल फिश देट कैन बी ईटिंन ।
माल्स्क आप जानतें हैं जल में या भूमि में रहने वाले ऐसे मृदु कवच धारी जंतु हैं ,ऐसे कोमल और अखंड शरीर के जंतु हैं जो कठोर आवरण युक्त कोष (शेल )में रहतें हैं .शंख मीन इसी वर्ग में आएगी .

हेल्थ टिप्स .

हेल्दी स्किन के लिए :स्वस्थ चमड़ी के लिए चेहरे पर नारियल पानी लगाइए .नारियल पानी से रिंस करिए चेहरे को .चेहरे से धुल गर्दो -गुबार चिकनाई ,ग्रीज़ तेल आदि को हठाता है नारियलपानी (कोकोनट वाटर )।
कब्ज़ का आसान उपचार है बीजों समेत पके हुए अमरुद का सेवन .

टमाटर स्वाद भी पोषण भी ....(ज़ारी ....)

टमाटर को अकसर तरकारी /सब्जी /वेजिटेबिल के तहत रखा समझा जाता है लेकिन वनस्पति शाश्त्र के नज़रिए से देखा जाए तो इसे फल कहा जाएगा .फल और तरकारी दोनों का दर्जा इसे हासिल है .तमाम तरह के खनिजों ,विटामिनों और सेहत के लिए उपयोगी गुणकारी यागिकों की खानहै टमाटर ।
चाहे ताज़ा ताज़ा कच्चा या फिर पका कर खाएं हर हाल में स्वादऔर पुष्टिकर तत्वों से भरपूर है टमाटर .
सौस हो या तरी/गरवी ,सैन्विच हो या सलाद या फिर हरी सब्जियों का संग साथ टमाटर और आलू भारतीय रसोई का एक ज़रूरी हिस्सा है ।
बीनाई के लिए टमाटर :विटामिन -ए से युक्त टमाटर बीनाई (विज़न )के लिए बहुत अच्छा है ।
मधुमेह में उपयोगी :खनिज लवण क्रोमियम सेकुदरती तौर पर पुष्टिकृत टमाटर मधुमेह में ब्लड सुगर को काबू में रखने में सहयोगी है ।
एंटी -ओक्सिदेंट्स से भर -पूर है टमाटर :विटामिन -ए ,विटामिन -सी तथा बीटा -केरोटीन से युक्त टमाटर एक अच्छा एंटी -ओक्सिडेंट माना गया है .यह फ्री -रेडिकल्स से कोशिकाओं को होने वाली नुकसानी (वीयर एंड टीयर की दुरुस्ती )में सहायक है ।
कोलेस्ट्रोल लेविल तथा ब्लड प्रेशर के विनियमन में सहायक :टमाटर में विटामिन -बी तथा पोटेशियम लवण की मौजूदगी खून में घुलित चर्बी कोलेस्ट्रोल को कम करने तथा रक्त चाप को नियंत्रित रखने में मदद गार है ।
ब्रेन अटेक(स्ट्रोक ,सेरिब्रल वैस्क्युलर एक्सीडेंट )तथा परि -हृदय धमनी रोगों से बचाव में सहायक है टमाटर ।
कैंसर से बचाव में सहायक :इसमें मौजूद 'लाइकोपीन 'यौगिक कैंसर से बचाव में असरकारी है .शरीर में कैंसर कोशिकाओं के बनने को भी मुल्तवी रखता है यह यौगिक ।
मज़बूत हड्डियों के लिए :अश्थियों की मजबूती के लिए विटामिन -के तथा केल्सियम से युक्त टमाटर का नियमित सेवन कीजिये ।
धूम्र पान से शरीर को होने वाली नुकसानी को भी कम करता है टमाटर .'क्लोरोजेनिक 'तथा 'कुमारिक एसिड' की टमाटर में उपस्तिथि इसे धूम्रपान में मौजूद कैंसर पैदा करने वाले तत्वों के खिलाफ खडा कर देता है .बेहतर हो -सिगरेट की तलब होने पर आप एक लाल टमाटर खाएं .

टमाटर :स्वाद भी पोषण भी ....

व्हाई टुमेतोज़ आर गुड फॉर यु .....नो डाउट ,दे टेन्ट -लाइज टेस्ट बड्स ,बट दे आर हाई ऑन न्यूट्रीशन टू.स्मोकर्स रिजोईस !टोमेटोज़ हेल्प इन रिद्युसिंग दी डेमेज डन टू योर बॉडी .कुक्ड टोमेटोज़ आर सेड टू कन्टेन मोर लाइकोपीन देन रा वंस .सो हेव टोमेटो सूप रेग्युलरली .(ज़ारी ..)

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

सु -बुद्धि (सुबुद्ध )भी होतें हैं सुदर्शन .....

सुबुद्ध भी होतें हैं सुदर्शन कुमार और सुदर्शनायें. ब्यूटी एंड ब्रैनस :गुड -लुकिंग पीपुल आर मोर क्लेवर,सेज स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १८ ,२०११ ,पृष्ठ १९ )।
यह मात्र एक अध्ययन से निकला दृष्टिकोण मात्र है ,लोगों का आकलन करने का आधार आप इसे न बनाएं क्योंकि यह एक सांखिकीय निष्कर्ष है व्यक्ति विशेष से इसका कोई लेना देना नहीं है .चलिए अध्ययन की चर्चा की जाए ।
माहिरों की एक अंतर -राष्ट्रीय टीम ने पता लगाया है खूबसूरत दिखने समझे जाने माने जाने वाले लोग
सयाने भी ज्यादा होतें हैं औरों से जो नैन नक्श में औसत होतें हैं ।
सुदर्शन पुरुष बुद्धि कोशांक (आई- क्यु) में औसत १०० से १३.६ पॉइंट्स की बढ़त बनाए रहतें हैं जबकि सुदर्शनाएं ११.४ .लन्दन स्कूल ऑफ़ इक्नोमिक्स के नेत्रित्व में यह अध्ययन ब्रितानी और अमरीकी माहिरों के सांझा प्रयास का नतीजा है .इन सुदर्शन कुमार और सुदर्शनाओं की संतानें भी बुद्धिमानी की बुनियादी जीवन इकाइयां लेकर पैदा होतीं हैं ।
भौतिक आकार्षण का आमतौर पर बुद्धिमानी से नजदीकी रिश्ता है .दिस अशोशियेसन इज बोथ विद एंड विदाउट कंट्रोल्स फॉर सोसल क्लास ,बॉडी साइज़ एंड हेल्थ ।
मर्दों में यह समबन्ध औरतों की बनिस्पत ज्यादा सशक्त दिखलाई देता है ।
अमरीका और ब्रिटेन में ५२००० लोगों का अध्ययन करने के बाद यह निचोड़ निकाला गया है .इनकी शक्लो सूरत लुक्स ,अकादमिक उपलब्धियों और बुद्धिमानी का पूरा ब्योरा जुटाया गया है ।
"इफ मोर इंटेलिजेंट मेन आर मोर लाइकली टू अटैंन हायर स्टेटस ,एंड इफ मेन ऑफ़ हायर स्टेटस आर मोर लाइकली टू मैरी ब्यूटीफुल वोमेन ,देन गिविन इंटेलिजेंस एंड अत्रेक्तिव्नेस आर हेरिटेबिल ,देयर शुड बी ए पोजिटिव कोरिलेशन बिटवीन इंटेलिजेंस एंड फिजिकल अत्रेक्तिव्नेस इन दी चिल्ड्रन ."

ज़रूरी नहीं है ज़म्के नाश्ता करना आपका वजन कम ही करे नतीजा उलटा भी हो सकता है ....

वजन कम करने के लिए लोग तरह तरह के नुश्खे सुझातें हैं .कोई कहता है हेवी ब्रेकफास्ट /ए बिग ब्रेक फास्ट वजन कम करने में सहायक होता है .एक नवीन अध्ययन ने इस मिथ /भ्रम को तोड़ने का ही काम किया है .आइये देखतें हैं क्या है इस अध्ययन के नतीजे ।
जर्मन रिसर्च्दानों के अनुसार सुबह ज़मकर नाश्ता करना कुलमिलाकर आपका वजन बढाने वाला ही सिद्ध हो सकता है .महज़ भ्रम है ऐसा मानना कि ज़मकर नाश्ता करने से दिन में कुलमिलाकर ली जाने वाली फ़ूड केलोरीज़ में कमी आती है ।
बिग ब्रेक फास्ट के बाद लोग बिग लंच और बिग डिनर लेने से भी नहीं चूकते .मिड मोर्निंग स्नेक्स न लेने से भी ऐसे में कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सुबह के नाशेते में लोग ज़रुरत से बहुत ज्यादा केलोरीज़ उड़ा चुके होतें हैं .इससे कुल मिलाकर दिन भर में चार सौ किलो -केलोरीज़ का फर्क तो हर रोज़ आ ही जाता है क्योंकि बिग/हेवी ब्रेकफास्ट में लाईट /स्माल ब्रेकफास्ट से गालिबन ४०० किलो -केलोरीज़ तो ज्यादा होतीं हैं ही ।
तीन सौ लोगों के ऊपर संपन्न इस अध्ययन के नतीजे निकालने से पहले इन तमाम लोगों से अपना पूरा फ़ूड चार्ट लिखने के लिए कहा गया था .दिन भर में इन्होनें क्या -क्या खाया और कितना खाया ।
एल्से -क्रोनर -फ्रेसेनिउस सेंटर ऑफ़ न्युत्रिश्नल मेडिसन ,जर्मनी के रिसर्च दानों ने यह अध्ययन संपन्न किया है .इन लोगों के समूह में से कुछ ने हमेशा ही बिग ब्रेकफास्ट किया कुछ ने लाईट तथा कुछ ने ब्रेकफास्ट किया ही नहीं ।
असल बात यह निकल कर सामने आई लोगों ने लंच और डिनर उतना ही किया इसका ब्रेकफास्ट से कुछ लेना देना नहीं था ।
बाकी दिन में कम खाकर ही बिग ब्रेकफास्ट को काउंटर -एक्ट किया जा सकता है अन्यथा नहीं .न्यूट्रीशन जर्नल में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है .

सुपरबग की काट के लिए टीका .

सुपरबग नोट इंविंसिबिल ,ए जेब इज ऑन दी वे(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १८ ,२०११ ,पृष्ठ १९ )।
साइंसदानों ने दावा किया है जानलेवा रोग संक्रमण "एम् आर एस ए "इन्फेक्सन की काट के लिए टीका बनाने की दिशा में शुरूआती कदम रख दिए गएँ हैं .अमरीका भर में हर साल पांच लाख लोगों को अस्पताल में इस रोग संक्रमण के इलाज़ के लिए भर्ती होना पड़ता है जिनमे से १९,००० इलाज़ के बावजूद मर जातें हैं .ऐसा है एम् आर एस ए यानी मेथी -सिलिन-रेज़ीस्तेंट स्टेफी -लो -को -कास और इससे पैदा रोग संक्रमण .वास्तव में यह "स्टाफ" की ही एक ख़ास स्ट्रेन है जिसपर एंटी -बायोटिक बेअसर साबित हो रहा है इसीलिए इसे सुपर -बग कह दिया जाता है ।
बोन और जोइंट सर्जरी (अस्थि और जोड़ों की सर्जरी )के बाद अकसर लोग इस जीवाणु संक्रमण की चपेट में आ जातें हैं ।
पास्ट रिसर्चिज़ फॉर ए एमारएसए वेक्सीन हेव फेल्ड सो फार बिकोज़ ऑफ़ इनेबिलिती टू आई -डें -टी -फाई एन एजेंट देट कैन ब्रेक थ्रू दी डेडली बेक्टीरियाज यूनीक आर्मर।
यह पहली मर्तबा हुआ है अस्थि रोगों के माहिरों की एक पूरी टीम ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ रोचेस्टर medical सेंटर में जो इसपर काम को आगे बढा रही है इसके सुरक्षा कवच को एक प्रति -पिंड ,एंटी -बॉडी की मदद तोड़कर dikhlaayaa hai .This antibody reaches beyond the microbe,s surface and can stop it from growing ,at least in mice and in cell culture .

मासिक पूर्व संलक्षणों से राहत के लिए 'एंटी -पी एम् एस' 'पिल.

फॉर देट टाइम ऑफ़ मन्थ ,एंटी- पी एम् एस पिल .कोकटेल ऑफ़ फेटि एसिड्स एंड विटामिन -ई ईज़िज़ पैन ,कंट्रोल मूड स्विंग्स .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १८ ,२०११ ,पृष्ठ १९ )।
ब्राज़ील फेडरल यूनिवर्सिटी ,पेरानाम्बुको के साइंसदान एक ऐसी पिल बनाने के नज़दीक पहुँच गएँ हैं जो मासिक पूर्व के संलक्षणों की उग्रता और कष्ट को कमतर करवा सकेगी . इसे शरीर के लिए एक दम से ज़रूरी अमीनो -अम्लों (फेटि एसिड्स )से तैयार किया गया है ,जिसमे गामा लिनोलेनिक एसिड ,ओलिक एसिड तथा विटामिन -ई शामिल किये गएँ हैं ।
स्वयं सेवियों पर इस सप्लीमेंट की ६ माह की आजमाइशों के बाद पी एम् एस के संलक्षणों की उग्रता में खासी कमी दर्ज़ की गई है ।
स्वयंसेवियों में १६-४९ साला ऐसी महिलाओं को शरीक किया गया जो बेहद कष्टकर माहवारी झेलतीं आईं हैं .रिप्रो -डक -टिव हेल्थ जर्नल में इस अध्ययन के नतीजे प्रकाशित किये गयें हैं ।
प्रजनन क्षम उम्र की ८५ -९७ % महिलायें इन लक्षणों से हर माह आजिज़ आती देखी गईं हैं .लेट नाईट चोकलेट क्रेविंग्स से लेकर मूड स्विंग्स ,बेहद की चिड -चिड़ा -हट,एब्डोमिनल क्रेम्प्स ,एंठन ,डायरिया ,एंग्री आउट -बर्सट्स,ब्लोटिंग ,अफारा आदि इसके आम लक्षण हैं .मानसिक विकारों से लेकर आत्म ह्त्या तक के लिए महिलाओं को उद्यत देखा गया है इतना आजिज़ आजातीं हैं वे इन लक्षणों की उग्रता से .उम्मीद बंधती है इस फेटि एसिड केप्स्युल से ,एंटी -प्री -मैन्स -ट्र्युअल पिल से .

जल्दी सीखतें हैं कोमिक सेन्स शैली में लिखे अक्षर बच्चे .....

चित्र कथा शैली में कई मर्तबा अक्षरों को एक ख़ास शैली में लिखा जाता है जो अभिनव और पढने में थोड़ी मेहनत मांगती है .साइंसदानों ने पता लगाया है वह बच्चे जिन्हें अपना पाठ याद करने में दिक्कत होती है उन्हें 'कोमिक सान्स'शैली में लिखा पाठ याद रह सकता है .शायद ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सूचना (पाठ )संशाधन में दिमाग को ज्यादा काम करना पड़ता है और इसीलिए जो पाठ इतनी मशक्कत के बाद पढ़ा गया है वह याद रहने की संभावना बढ़ जाती है ।
इसे समझने के लिए बच्चा ज्यादा मशक्कत करता है . साइंसदान कहतें हैं 'फंकी फोंट्स हेल्प स्ट्यु -देंत्स लर्न बेटर'.फोंट्स या फिर टाइप फेस का स्टाइल जितना पढने में ज्यादा दिक्कत करेगा ,ज्यादा वक्त लेगा वह याद भी देर तक रहेगा .कोमिक सान्स में यही शैली अपनाई जाती है जो खासी मौखिक आलोचना का विषय बने रहें हैं .इससे नै सूचना को सीखने में मदद मिलती है .फॉण्ट प्रभाव जितना लेब आजमाइशों में कामयाब रहता है उतना ही क्लास रूम्स में .यही अंदाज़ छात्रों को ज्यादा मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है .

खगोल वज्ञान के माहिरों ने अब तक के सबसे गुरुतर ब्लेक होल का पता लगाया ....

खगोल विज्ञान के माहिरों ने एक भारीभरकम नीहारिका (गेलेक्सी )एम् -८७ के केंद्र में अब तक के सबसे ज्यादा गुरुतर ब्लेक होल का पता लगाया है जिसका द्रव्यमान सूरज से ६.८ अरब गुना ज्यादा है .एम् -८७ सुदूरतम ज्ञात गेलेक्सी है ,जिसमे मौजूद इस अंध कूप का इवेंट होराइज़न प्लूटो की कक्षा से तीन गुना बड़ा है .इवेंट होराइज़न (घटना क्षितिज )ब्लेक होल का एज होता है इसे छोड़कर कुछ भी बाहर नहीं जा सकता .यह हमारे पूरे सौर मंडल को निगल सकता है ।
अन्तरिक्ष की इस काल कोठरी का पता तब चला जब साइंसदान ८ -मीटर जेमिनी नोर्थ टेलिस्कोप ,हवाई तथा टेक्सास स्थित एक टेलिस्कोप से ब्लेक होल के गिर्द कुछ सितारों कि हलचल दर्ज़ कर रहे थे ।
हमारी मिल्की वे -गेलेक्सी के केंद्र में जो एक ब्लेक होल है वह एम् -८७ गेलेक्सी के केंद्र में मिले इस ब्लेक होल से १०००
गुना आकार में छोटा है .तथा हमसे ५ करोड़ प्रकाश वर्ष दूर है .

हेल्थ टिप्स .

दिल की हिफाज़त के लिए बस एक गाज़र :दिल कि सलामती के लिए हृद रोगों से बचाव के लिए बस एक गाज़र नियमित खाइए .इसमें मौजूद केरोतिनोइड्स दिल की बीमारियों के जोखिम को खासा कम कर देतें हैं ।
धूम्रपान से छिटकने के लिए जब भी तलब हो पहले एक ग्लास दूध पीलिजिए .इसके बाद सिगरेट बेस्वाद और कसैला ,कडवा लगेगा .

सोमवार, 17 जनवरी 2011

मुहब्बत ज़िंदा रहती है मुहब्बत मर नहीं सकती ...

मिथ बस्तिड:फॉर मेरिड कपल्स ,लव लास्ट्स फॉर ईयर्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १७ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
मिथ यही है हर सम्बन्ध का एक हनी मून पीरियड होता है पति -पत्नी हों या प्रेमी -प्रेमिका प्रेम का उफान थमता है उतरता है .अब पता चला है यह भ्रम है यथार्थ नहीं .यथार्थ यह है जहां प्रेम है तहे दिल से दिलोजान से वह वक्त के साथ छीजता नहीं है पल्लवित ही होता है .मुहब्बत ज़िंदा रहती है मुहब्बत मर नहीं सकती ।
साइंसदानों ने पता लगाया है -व्हाइल गेजिंग अट ए फोटो ऑफ़ देयर बिलाविड दी ब्रैनस ऑफ़ कपल्स मैरीड फॉर १० ईयर्स ऑर मोर वर फाउंड टू लाईट अप सिमिलारली टू स्केन्स ऑफ़ न्यूली इन -लव कपल्स ।
अध्ययन में शामिल १० औरतों और ७ मर्दों के फंक्शनल ब्रेन स्केन्स उस समय लिए गए जब उन्हें अपने प्रेम पात्र /नजदीकी /लंगोटिया यार ,लॉन्ग टर्म फ्रेंड ,तथा दीर्घावधि जान पहचान वालों के फोटो -ग्रेफ्स दिखलाए गए .दिमाग के दो हिस्से उस समय ख़ास तौर पर रोशन हुए जब उन्हें अपने जीवन साथी के चित्र दिखलाए गये ।
यह अध्ययन ऑन लाइन जर्नल 'सोसल कोगनिटिव एंड अफेक्तिव न्यूरो -साइंस में प्रकाशित हुआ है ।
दी १७ स्टडी पार्तिशिपेंट्स वर नोट जस्ट हेपिली मैरीड .दीज़ वर स्पाउसिज़ हू कुड नोट कीप देयर हेंड्स ऑफ़ ईच अदर इविन दो दे हेड बीन मैरीड फॉर मोर देन २१ ईयर्स ,ऑन अवरेज ."दे टोल्ड अस थिंग्स लाइक ,'वी ड्राइव अवर फ्रेंड्स क्रेजी .वी आर आल ओवर ईच अदर ,"-सेड अरों वन ऑफ़ दी ऑथर ऑफ़ दी स्टडी ,प्रोफ़ेसर ऑफ़ साइकोलोजी स्टोनी ब्रुक यूनिवर्सिटी ,न्यू -योर्क .

टोरं लिगामेंट की दुरुस्ती के लिए अब डोनर टिश्यु काम आ सकेगा .

लिगामेंट इंजरी (स्नायु अस्थि बंध) लिगामेंट के टोर्न हो जाने पर अब तक उसकी रिपेयर के लिए डोनर टिश्यु के स्तेमाल के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था इस एवज़ मरीज़ के ही या तो पटेल्लर टेंदोन (टेंडन)या फिर हम्स्त्रिंग टेंडन का ही प्रयोग हो सकता था .हम जानतें हैं पटेल्लर टेंडन नी केप से शिन बोन तक जाता है .शिन बोन को टिबिया भी कहा जाता है .टांग के नीचे की दो हड्डियों में से अन्दर की बड़ी हड्डी ,अंतर जन्घिका टिबिया कहलाती है .इसी का पर्यायवाची है शिन बोन .(फिब्युला )।
हेम्स्त्रिंग टेंडन को घुटनस भी कहा जाता है .घुटने के पीछे की नस जो टांग के ऊपर के हिस्से की मांसपेशियों को नीचे की हड्डियों से जोडती है .हेम्स्त्रिंग इज वन ऑफ़ दी फाइव स्ट्रोंग थिन तिश्यूज़ (टेंदंस ) बिहाइंड योर नी देट कनेक्ट दी मसल्स ऑफ़ योर अपर लेग टू दी बोनस ऑफ़ योर लोवर लेग्स ।
अब उस आदमी से भी डोनर टिश्यु लिए जा सकेंगें जिसकी अभी -अभी मृत्यु हुई है तथा इनका स्तेमाल क्षति ग्रस्त (टोर्न )अस्थि बंध (लिगामेंट्स )की मरम्मत के लिए किया जा सकेगा ।
हड्डियों की सर्जरी के एक ब्रितानी माहिर (ओर्थो -पिडिक सर्जन) सिमों मोयेस ने यह नै टेक्नीक ईजाद की है जिससे दाता ऊतकों को भी प्रत्यारोपित किया जा सकेगा .
मोयेस इसे ग्राउंड ब्रेकिंग सर्जरी बतला रहें हैं .अब इस शल्य के लिए मृत व्यक्ति से ऊतक लिए जा सकेंगें बशर्ते उसकी मृत्यु हुए अधिक समय न बीता हो .

ब्लड प्रेशर के जोखिम को १० फीसद कम करती है ब्लू -बेरीज़...

ईटिंग ब्लू -बेरीज हेल्प्स फाईट हाई बी पी .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १७ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
ईस्ट एंग्लिया तथा हारवर्ड विश्व -विद्यालय के साइंसदानों ने अपने एक अध्ययन से पता लगाया है ब्लूबेरीज़ के सेवन से काफी अंशों में उच्च रक्त चाप से बचा जा सकता है ।
ब्लूबेरीज़ (जामुन बेरी आदि में )कुछ बायो -एक्टिव-कंपाउंड्स (जैव -सक्रिय-यौगिक ) मौजूद रहतें हैं जो हाई -पर -टेंसन से बचाव करतें हैं .इन यौगिकों को "नथो -साय्निंस "(नथो -सिआनिंस ) कहा जाता है ।"एन टी एच ओ सी वाई ए एन आई एन एस "आर बायो -एक्टिव कंपाउंड्स इन बेरीज .
अध्ययन में जो सब्जेक्ट्स हफ्ते में कमसे कम एक सर्विंग ब्ल्यू बेरी की ले रहे थे उनके लिए हाई -पर टेंसन का जोखिम १० फीसद कम हुआ बरक्स उनके जो ब्लूबेरीज़ नहीं ले रहे थे .

यह मुंबई नहीं बम्बई का बुद्धिजीवी पौवा है .

"यह मुंबई नहीं बम्बई का बुद्धिजीवी पौवा है. "-नन्द मेहता वागीश ।
गेस्ट आइटम के बतौर प्रकाशित इस कविता में नन्द मेहता यह क्षेपक जोड़ना चाहतें हैं .कृपया इसे पूर्व प्रकाशित अंश के साथ भी पढ़ें -वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )।
इस शख्श के मन में नहीं कोई राष्ट्रीय अपमान का संताप ,
अलबत्ता आतंक के विरुद्ध उठाए गए सुरक्षात्मक क़दमों पर ,
इसे ज़रूर है मनस्ताप ,
क्योंकि नए साल का जश्न मनाने ,नहीं जा सकीं घर की बेटियाँ दोस्तों के साथ ,
मुंबई के प्रसिद्द कैफे हॉट रॉक ,
बस इतनी सी व्यक्ति गत बात है ,बाकी तो बम्बैया ठलुवे का प्रलाप है .

जीवन के बुनियादी तत्वों ईंटों को नष्ट करता है धूम्रपान ...

स्मोकिंग हार्म्स जींस इन मिनिट्स .जस्ट ए फ्यू सिगरेट पफ्स लीड टू फोर्मेसन ऑफ़ कैंसर काज़िंग 'ट्रेश डी एन ए ".ए कार्सिनोजन इन सिगरेट स्मोक 'फेनान्थ्रेने '/पोली -साइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रो -कार्बंस (पी ए एच एस ) इन -द्युसिज़ जेनेटिक म्युटेसन इन १५-३० मिनिट्स एंड रेज़िज़ लंग कैंसर रिस्क ,सेज ए न्यू स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १७ ,२०११ ,पृष्ठ २१).
क्या मज़े मज़े में पीयर प्रेशर के तहत फेशनेबिल दिखने के लिए सुट्टा लगाने की सोच रहें हैं ?यही सुट्टा आदत में तब्दील होकर क्या क्या गुल खिला सकता है इसका आपको जरा भी इल्म नहीं होगा ।
सिगरेट का धुआं हमारी आनुवंशिक बनावट ,जीवन की बुनियादी ईंटों के रचाव को बदल कर ' ट्रेश डी एन ए 'में तब्दील कर सकता है .एक नए अध्ययन के अनुसार यह सारी करामात सिगरेट में मौजूद एक कैंसर पैदा करने वाला तत्व कार्सिनोजन 'फीनान्थ्रिन 'करता है जिसे पोली -साइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रो -कार्बन भी कहा जाता है .संक्षिप रूप "पी ए एच एस " ।
सुट्टा लगाने के १५ -३० मिनिट के भीतर भीतर यह अपना काम कर जाता है .यह हमारे खून में एक टोक्सिन(विषाक्त पदार्थ ) बनाता है जिसे ट्रेश डी एन ए कहा जाता है .बस जीन म्युटेसन के लिए यही कुसूरवार है .यह हमारी खानदानी विरासत जीवन की मूल भूत इकाइयों में ही बदतर बदलाव ला देता है ।
'इट इज दी फस्ट स्टडी टू इनवेस्टिगेट ह्यूमेन मेटाबोलिज्म ऑफ़ ए "पी ए एच "स्पेसिफिकाली दिलीवर्ड बाई इन -हिलेसन इन सिगरेट स्मोक ,विद -आउट इंटर -फियारेंस बाई अदर सोर्सिज़ ऑफ़ एक्सपोज़र सच एज एयर पोल्युसन एंड दी डाईट.'-सेज रिसर्चर्स ।
आलमी स्तर पर रोजाना ३०० लोग लंग कैंसर से मर जातें हैं इनमे से ९० फीसद के पीछे स्मोकिंग का ही हाथ होता है .अलावा इसके सिगरेट स्मोक १८ और किस्म के कैंसर की वजह बनता है ।
पी ए एच ही कैंसर का असली कारण बन रहा है .'केमिकल रिसर्च इन टोक्सिकोलोजी 'में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है .

हेल्थ टिप्स .

फलों को काटकर चबा -चबा कर खाना ही भला .फलों से प्राप्त कुल रेशे न सिर्फ कोलेस्ट्रोल को कम करतें हैं ,पाचन को मजबूती प्रदान करतें हैं .मल विसर्जन को आसान बनातें हैं ।बेशक ज्यूस पीना आसान है .
दिमाग से रोजाना काम लीजिये .कुछ न कुछ नया करते सीखते रहिये .शरीर के साथ दिमाग भी जड़ हो जाता है काम करना बंद कर देता है स्मृति ह्रास की चपेट में आजाता है .समुन्दर कि तरह प्रणव बनिए नित नया करिए दिमागी क्षय रुकेगा .समंदर को देखिये रोज़ अपना आकार बदलता है नित नया रूप धरता है .

रविवार, 16 जनवरी 2011

कुकर खांसी ,सूखी खांसी ,हूपिंग कफ़ जानलेवा मत बनने दीजिये ...

पेर्टुस्सिस /कुकर /सूखी खांसी /हूपिंग कफ़ बच्चों को आमतौर पर शिशुओं को(०-२ वर्ष ) होने वाला गंभीर रोग है जिसमे जोर से खांसने के अलावा सांस लेने में भी कष्ट होता है .यह एक जीवाणु से पैदा होने वाला संक्रामक रोग है जो महामारी का रुख इख्तियार कर लेता है .जीवाणु 'बोर्देटेल्ला पेर्टुस्सिस इसकी वजह बनता है .यह रेस्पाय्रेत्री ट्रेक्ट का रोग संक्रमण है .इसका इन्क्यूबेशन पीरियड १-२ सप्ताह है .जिसके साथ अपर रेस्पाय्रेत्री ट्रेक्ट के इन्फेक्शन के लक्षण मुखर हो जातें हैं .इन दी केटार्रल स्टेज इन्फ्लेमेशन ऑफ़ दी म्यूकस मेम्ब्रेन टेक्स प्लेस काज़िंग एन इनक्रीज इन दी प्रोडक्सन ऑफ़ म्यूकस .बस कफिंग के दौरान ही इसका वायरस प्रसार पा जाता है एक दम से छुतहा है यह रोग .ड्यूरिंग कफिंग दी इन्फेक्तिद पेशेंट स्प्रेड दी वायरस थ्रू ड्रोप्लेट्स ।
६-८ सप्ताह तक रहता इस का प्रकोप .आरम्भ में इसके लक्षण फ्ल्यू, कोल्ड तथा फीवर जैसे हो होतें हैं.इसके बाद एक दम से उग्र और दीर्घावधि हमला होता है कफ़ का . हूप और वोमिटिंग (उलटी ,मिचली ) हो सकती है हालाकि एक साल से नीचे के शिशु में यह नदारद रहती है .२-६ सप्ताह तक रोग के तेज हमले के बाद १-२ सप्ताह में धीरे धीरे रोग की उग्रता घटने लगती है ।
सब -कंजक -टीवल हेमरेज (ब्लीडिंग ऑन दी वाईट पार्ट ऑफ़ दी आई) हूपिंग कफ़ का परिणाम बन सकती है .दूसरा लक्षण हर्निया का उभर सकता है .(पोपिंग आउट ऑफ़ दी इन्तेस्ताइन थ्रू दी स्किन नीयर दी ग्रोइन ).बर्स्तिंग ऑफ़ लंग्स कैन टेक प्लेस .इसे चिकित्सा शब्दावली में न्युमो -थोरेक्स कहा जाता है .ऐसे में नामूनिया के साथ साथ पुराना तपेदिक का रोग संक्रमण भी उभर सकता है .क्योंकि शरीर की रोग रोधी क्षमता कमतर रह जाती है .दिमाग भी असर ग्रस्त हो सकता है .दौरा पड़ सकता है .जोर दार एंठन, दौरा, कन्व्ल्संस घेर सकतें हैं ।
भूख मर जाने से वजन भी कम हो जाता है ।
बचाव :पहले ४-५ दिनों के दौरान मरीज़ को अलग थलग रखना चाहिए ,एंटी बायोटिक थिरेपी के साथ -साथ .तीमारदार को भी यही दवाएं(एंटी -बाय्तिक्स ) एहतियात के तौर पर दी जानी चाहिए ।
विशेष :ट्रिपिल वेक्सीन समय से देना न भूलें .बाकायदा इसका रिकार्ड शेड्यूल के मुताबिक़ रखें .दिफ्थीरिया -टेटनस -पर्तुस्सिस का टीका सुनिश्चित अवधि और अंतराल पर लगना चाहिए .पहली साल में एक माह के अंतर से तीन डोज़ ,१-१.५ बरस की उम्र में और फिर पांच बरस की उम्र में भी कुल मिलाकर दो बूस्टर दोज़िज़ कमोबेश इसके हमले से बचाए रह सकतीं हैं ।
नै वेक्सीन अपेक्षतया सुरक्षित और निरापद हैं .कम दर्द कम बुखार ।
इलाज़ :पर्याप्त पोषण के साथ ,शरीर का जलीकरण हाइद्रेसन(शरीर में पानी की तरल संतुलन की कमी न होने पाए ),बच्चा को ज्यादा रोने चिल्लाने न दें,बहलायें रखे ,आराम से रखें .डॉक्टर के परामर्श के मुताबिक़ एरिथ -रोमाइसिंन आदि दें .किसी किस्म का पेचीलापन न होने पाए इसका पूरा ध्यान रखें .

बर्ड फ्ल्यू से बचाव के लिए आनुवंशिक तौर पर संशोधित "जी एम् चिकिंस ".

नाव ,जी एम् चिकिंस टू फाईट बर्ड फ्ल्यू .साइंटिस्ट डेव- लप बर्ड्स देट डोंट स्प्रेड डिजीज ,प्रिवेंट एपिदेमिक्स .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १५ ,२०११ ,पृष्ठ २१ )।
ब्रितानी साइंसदानों ने आनुवंशिक तौर पर संशोधित चिकिंस की ऐसी प्रजाति तैयार की है जो परस्पर एक दूसरे को सक्रमित नहीं करेंगी .इससे बर्ड फ्ल्यू के पक्षियों से मनुष्यों को लगने वाले रोग संक्रमण का ख़तरा भी कम हो जाएगा .बेशक एच ५ एन १ बर्ड फ्यू से रोग संक्रमित होने पर ट्रांसजेनिक चिकिंस(पार जातीय चिकिन) बीमार भी होतें हैं मर भी जातें हैं लेकिन इनसे रोग संक्रमण अन्य बर्ड्स को नहीं लगेगा ।
एच ५ एन १ बर्ड फ्ल्यू एशिया और मिडिल ईस्ट में प्रसार पा रहा है बेशक कभी कभार यह योरोप में भी प्रसार पाता है. २००३ से अब तक यह लाखों बर्ड्स के रोग संक्रमण से मर जाने या फिर इन्हें मार दिए जाने कि वजह बना है .ताकि अन्य बर्ड्स को संक्रमित न होने दिया जाए ।
यह बिरले ही मानवीय संक्रमण की वजह बनता है .लेकिन जब भी ऐसा होता है उग्र रूप लिए होता है .विश्व -स्वास्थ्य संगठन ने २००३ से अब तक मनुष्यों में इसके इन्फेक्सन के ५१६ मामले दर्ज़ किये हैं जिनमे से ३१६ लोग मारे गएँ हैं ।
ख़तरा यह है यह विषाणु एक ऐसी किस्म में उद्भूत हो जाएगा इवोल्व कर लेगा अपने आपको जिससे लोग शीघ्र ही न सिर्फ संक्रमित हो जायेंगें औरों को भी कर देंगें .ऐसे में इसके विश्व -मारी (पेंदेमिक आलमी महा -मारी,भू -मंडलीय बीमारी ) बनने का वास्तविक ख़तरा पैदा हो जाता है .ऐसे में इससे होने वाली मौतें सहज अनुमेय हैं ।
दक्षिण पूर्व एशिया ,चीन और अफ्रिका के कुछ हिस्सों में यह एक बड़ा खाद्यएवं आर्थिक सुरक्षा मुद्दा बना रहा है .साउथ कोरिया पहले ही फुट एंड माउथ डिजीज से जूझ रहा है .पोल्ट्री फोर्म्स पर एच ५ एन १ बर्ड फ्ल्यू वायरस मिलने के बाद उसने पोल्ट्री फ़ार्म में एलर्ट लेविल बढा दिया है .खाद्य और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकता है जी एम् चिकिंस ।
जी एम् चिकिंस तैयार करने के लिए रिसर्चरों ने चिकिंस में एक नया जीन डाला है जो एक डिकाई मोलिक्युल बनाता है ।
"इट विल इनेवितेब्ली बी मोर एक्सपेंसिव बिकोज़ यु वुड हेव टू यूज़ डी प्रोडक्ट्स ऑफ़ ब्रीडिंग कम्पनीज टू स्टोक दी प्रोड्यूसर्स."बेशक टीकाकरण की ज़रुरत और मुर्गियों का झुण्ड के रूप में संक्रमित होना भी कम होगा .चीन इस सबके लिए राजी है .आखिर ग्रोथ भी तो कोई चीज़ है . जन कल्याण भी, और चीन एक जनकल्याणकारी राज्य है .

मुन्चौसे और मुन्चौसे सिंड्रोम क्या है ?

मुन्चौसे ?
यह एक ऐसी परिकथा फेंतेस्तिक स्टोरी ,विचित्र औरअविश्वश्नीय होती है जिसे बढा -चढ़ा -कर ,अतिश्योक्ति पूर्ण बनाकर प्रस्तुत किया जाता है .मकसद होता है लोगों को प्रभावित करना .एक बानगी देखिये -
"हनुमान की पूंछ में लगन न लागी आग ,सगरी लंका जर(जल ) गई ,गए पिशाचर(निशाचर ) भाग "
ऐसी किस्सा गोई करने कहने वाले को मुन्चौसें कहा जाता है .(आफ्टर दी एपोंय्मोउस/एपोनिमस हीरो ,बारां मुन्चौसें ,ऑफ़ ए बुक ऑफ़ इम्पोसिबिल एडवेंचर्स (१७८५ )रितिन इन इंग्लिश बाई दी जर्मन ऑथर रुडोल्फ एरिक रस्पे ।
मुन्चौसे सिंड्रोम ?
इट इज ए साइकोलोजिकल डिस -ऑर्डर इन व्हिच समबडी प्रीतेंड्स टू हेव ए सीरियस इलनेस इन ऑर्डर टू अंडरगो टेस्ट -इंग ऑर ट्रीटमेंट ऑर टू बी एडमितिद टू हॉस्पिटल .

व्हाट इज ए "मुन्चौसें बाई प्रोक्सी "?

व्हाट इज मुन्चौसें बाई प्रोक्सी ?(एमेस्बीपी )-एम् एस बी पी ?
यह एक मानसिक विकार से जुड़ा सिंड्रोम है जिसमे कोई व्यक्ति अदबदाकर किसी दूसरे व्यक्ति को आघात पहुंचाता है चोटिल कर देता है .वह उसका अपना बच्चा अपनी संतान भी हो सकती है जिसे ऐसा व्यक्ति चोट पहुंचा रहा है .मकसद होता है अपनी तरफ ध्यान आकृष्ठ करना या फिर कोई और लाभ हासिल करना.यह बाल उत्पीडन कीसबसे ज्यादा घिनौनी किस्म है जिससे ग्रस्त व्यक्ति दूसरों की सहानुभूति बटोरने के लिए खासकर डॉक्टरों और नर्सों की अपनों पर ही यह ज़ुल्म ढाता है .
एक तरह का अटेंशन सीकिंग विकृत व्यवहार है यह सिंड्रोम .इसे मुन्चौसे बाई प्रोक्सी सिंड्रोम कहा जाता है .

व्हाट इज ए फिश प्लेट इन रेल टर्मिनोलोजी एंड इन गरी कल्चर ?

एक लंबी ,चौड़ी ,और अपेक्षाकृत कम मोटाई वाली प्लेट का स्तेमाल रेल कि पटरियों के सिरों को परस्पर समायोजित करने जोड़े रखने के लिए किया जाता है .हम अकसर सुनतें हैं अमुक जगह फिश प्लेट निकली हुई मिली है .रेल एक्सिदेंट्स कई बार ऐसी नक्सली /आतंकी /और आन्दोलनकारी हरकतों का सबब बनतें हैं .हद तो यह है आरक्षण से जुड़े आन्दोलन कारी भी ऐसा धड़ल्ले से कर रहें हैं और सरकारें तमाशबीन बनी हुईं हैं ,आगे बढ़कर उनकी मांगें भी पूरी कर रहीं हैं ।
क्योंकि इस प्लेट कि आकृति मछली कि तरह होती है जो अपनी लम्बाई चौड़ाई के बरक्स कम मोटाई लिए होती है इसीलिए इसे फिशप्लेट कहा जाने लगा ।
यूनानी सभ्यता संस्कृति में (ग्रीस और साइप्रस )हेलेनिस्तिक काल में बर्तन भांडे इसी आकृति के बनाए जाते थे .ईसा से भी ५०० वर्ष पूर्व -फर्स्ट प्रोद्युज्द इन एन्थेंस इट वाज़ करेक्तराइज़्द बाई ए स्माल कप इन दी सेंटर व्हिच वाज़ यूस्ड फॉर होल्डिंग आयल ऑर फिश सौस .इट वाज़ युज्युअली देकोरेतिद विद पिक्चर्स ऑफ़ दी सी फ़ूड इट वाज़ इन्टेंदिद टू होल्ड ।
इन ग्रीक कल्चर ,ए फिश प्लेट इज ए टाइप ऑफ़ पोटरी यूनिक टू दी हेलेनिस्तिक पीरियड .

व्हाट इज ए लोकोपोर ?

लोकल और पौरके मेल से बना है शब्द -समुच्चय लोकोपौर .लोकोपौर एक ऐसे शख्श को कहा जाएगा जो स्थानीय तौर पर तैयार की गई वाइन ,फैनी या देशी शराब या बीयर ही ड्रिंक्स के बतौर लेता है .चाहे फिर वह महुआ से तैयार ड्रिंक्स हो या किसी वृक्ष की पत्तियों से .धीरे धीरे यह रिवाज़ एक आन्दोलन /अभियान की शक्ल लेने लगा है .कनाडा में यह लोक शगल बनता जा रहा है ।
इसी प्रकार 'लोकोवौर एक ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है जो स्थानीय तौर पर तैयार खाद्यों का ही सेवन करता है .

कविता :ठलुवा .

"ठलुवा "-नन्द मेहता वागीश ,१२१८ ,सेक्टर ४ ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव ।
ये मुंबई नहीं बम्बई का ठलुवा है ,प्रगति की आड़ में ,परम्परा के विरुद्ध नंगेपन का जलवा है ।
इसका अज़ीज़ रिश्तेदार भारत धर्मी समाज पर ,बे -बुनियाद इलज़ाम लगाता है ,
तो फट अनशन पर बैठकर भारतद्रोहियों का मनोबल बढाता है ।
कल को बहुत संभव है कि ,शह पाकर ,रिश्तेदार ऐसा कर दे एलान ,
कि बहुसंख्यक लोग उसे देखने देते नहीं उसके हिस्से का आसमान ।
तो बिना कुछ समझे समझाए ,ये शख्श अनशन पर बैठ जाएगा ,
भारत को बदनाम करने का मौक़ा ,हाथ से नहीं गँवाएगा ।
आदमी गज़ब का है लफ्फाज़ ,इसके पास है हर सवाल का ज़वाब ,
अपनी धृष्ट - ता को देता है दृढ़ता करार ,
आँखें फाड़कर बोलने की बे -अदबी को करता है अपने रुतबे में शुमार ,
ऐसा करने का फ़न इसे रास आता है ,यही रूतबा है बस इतना ही आता है ।
इसलिए पत्थर बाजों के हक़ में यह तर्क जुटाता है । ।
अब जबकि घाटी के पत्थर बाजों का असली राज प्रोअब्दुल गनी बट ने किया है पर्दा फ़ाश ,
to bambai vaale ye to dekhen ,ki is secular mahaabhatt me ,
baaki kuchh bachaa hai sharm shaari kaa maaddaa ,
yaa fir naye tark jutaane ki dhrishtaa kaa hai iraadaa


प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )