चेहरों को पहचानने पढने में संवेगों को भांपने में औरतें मर्दों से आगे रहतीं हैं .कहा समझा भी गया है -वोमेन हेव दा सिक्स्थ सेन्स ।
साइंसदान इसकी आनुवंशिक वजहें बतला रहें हैं .आखिर औरत को बच्चे के हाव भाव से ही कयास लगाना रहता है ,किस पल छिन बच्चे को क्या चाहिए .बच्चे की देखभाल का जिम्मा भी परम्परा से उसका ही रहा आया है ।
एक अध्धययन में १२० लोगों को पहले १०-२० अजनबी चेहरे को तस्वीरें दिखलाई गईं .केवल २० सेकिंड्स के लिए ..इन तस्वीरों को दिखलाने से पहले डिजिटली तब्दील कर दिया गया था ,दाग धब्बे ,तिल आदि मार्क्स साफ़ कर दिए गए ताकि कोई अलग से निशानी बाकी ना रहे .सिर्फ चेहरे के नाक नक्स ही याद रहें ।
अब इन्हें ३०-५० और तस्वीरों के ढेर में मिला दिया गया .अब पहले दिखलाए गए चेहरे अलग करने को कहा गया ।
योर्क यूनिवर्सिटी ,टोरोंटो के माहिरों के अनुसार औरतें मर्दों से चेहरे पहचानने के मामले में पांच अंक आगे रहीं ।
गे -मेंन स्ट्रेट -मैंन से आगे रहे .लेफ्तीज़ भी बाज़ी मार गए ।
मनो -विदों की राय में ऐसा प्रतीत होता है ,गेज़ और औरतें अपने दिमाग के दोनों अर्द्ध गोलों का स्तेमाल करतें हैं .
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1 टिप्पणी:
Bechare mard mar kha gye....
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