जब आप को सुईं लगाईं जाती है तब अक्सर चेहरे के हाव भाव बदल जातें हैं .कुछ के चेहरे पीड़ा की साफ़ झलक देने लगतें हैं ,तो कुछ एंठ जातें हैं ,विरूपित हो जातें हैं .ऐसा सिर्फ हमारे साथ ही नहीं 'बायो-मेडिकल रिसर्च 'की नींव बने लेबोरेट्री एनिमल्स के साथ भी होता है ।
सद्य -प्रकाशित एक रपट के मुताबिक़ साइंसदानों ने 'एक स्लाइडिंग स्केल ऑफ़ पैन 'तैयार कर लिया है .जो चेहरे की भाव भंगिमाओं ,चेहरे पर साफ़ झलकती पीड़ा पर आधारित रहेगा ।
तथाकथित 'माउस ग्रिमेस स्केल 'प्राणी मात्र के लिए ज्यादा असरकारी दर्द -हारी तैयार करने में एक एहम भूमिका निभाएगा .इससे ना सिर्फ हमें, लेबोरेट्री- एनिमल्स को भी राहत मिलेगी ।
अब तक यही समझा जाता था ,सुइंयाँ (इंजेक्शन )दी जाने पर सिर्फ हमारी मुख -मुद्राएँ बदलतीं हैं ,अब पता चला है दर्द पैदा करने वाली सुइंयाँ लगाने पर चूहों की भी भंगिमाएं बदलतीं हैं ।दर्द की खबर देता है उनका मासूम चेहरा .
साइंसदानों ने बेहद दर्द पैदा करने वाला एक इंजेक्शन लगाकर माइस(चूहों )की मुखाकृति में आये बदलाव दर्ज कियें हैं .पता चला है ,दर्द का एहसास गहराने पर ,गहराते जाने पर आँखें भिंच जाती हैं ,छोटी दिखने लगतीं हैं ,नाक के ब्रिज में उभार साफ़ दिखलाई देने लगता है .गाल फूल जातें हैं .मुख- मुच्छ बंच(गुच्छ ) बनाने लगता है .कान आगे पीछे होने लगते हैं ।
'जाके पैर ना फटी बिवाई ,वह क्या जाने पीर पराई .'अब जाकर साइंसदानों को एहसास हुआ है ,लेबोरेट्री एनिमल्स की पीड़ा और बदलती भाव मुद्राओं का .और इसी की मदद से बेहतर दर्द -नाशी (एनाल्जेसिक्स )बनाने की दिशा में एक कदम आगे बढा दिया गया है ।
अब ऐसे ही दर्द नाशी देकर मानव की सेवा में निशिदिन रत इन जीवों को भी दर्द के एहसास से थोड़ा मुक्त करवाया जा सकेगा ।
लेबोरेट्री परीक्षणों के दौरान भयंकर पीड़ा से गुजरतें हैं यह निर्वाक (मूक )जीव।
पशु - ओं की देखभाल और रोग प्रबंधन में भी मदद मिलेगी ,'स्लाइडिंग स्केल ऑफ़ पैन से .
आखिर दर्द के प्रति पशु जगत में भी उतनी संवेदना है ,दर्द का खुलासा (रेस्पोंस )है .चेहरे का विरूपण है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ए 'ग्रिमेस स्केल 'तू हेल्प फाइंड बेटर पैन्किलर्स(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे१० ,२०१० )
मंगलवार, 11 मई 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें