गुरुवार, 6 मई 2010

नींद से जुडी है दायाबीतीज़ की नव्ज़

बुजुर्गों की सीख रही है ,अच्छे स्वास्थ्य के लिए आठ घंटे की नींद ज़रूरी है .अब विज्ञानी ना सिर्फ इस अवधारणा पर अपनी मोहर लगा रहें हैं ,आगाह भी कर रहें हैं, केवल एक रात की अनिद्रा भी अपचयन (चय-अपचय यानी मेटाबोलिज्म )को गडबडा सकती है .रक्त में घुली शक्कर को इंसुलिन जलाकर ठिकाने नहीं लगा पाताहै .नतीज़न खून में घुली शक्कर की मात्रा बढी रहती है .
इनदिनों दायाबितीज़ के मामले दुनिया भर में बढ़ने की यह(बामुश्किल चार घंटा सो पाना ,भागम भाग भरी जिंदगी के रोज़ -नामचे में ) एक एहम वजह बनी हुई है .
गत दशक में पश्चिमी समाजों में एक तरफ नींद के घंटे कम होते गएँ हैं उसी अनुपात में शक्कर की बीमारी(मधुमेह )के मामले भी बढे हैं .इंसुलिन रेजिस्टेंस बढा है ,एडल्ट ओंन - सेट दायाबितीज़ के मामले बढे हैं .ज़वानी की देहलीज़ पर कदम रखते ही नवयुवक मधुमेह की चपेट में आ गए है .लेइदें यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर ,नीदरलैंड के साइंसदान अपने नवीनतम अध्धययन में इस सब की पड़ताल कर चुकें हैं .मेटा बोलिज्म के विनियमन में पर्याप्त नींद की भूमिका कितनी एहम है यह अब जाके विदित हुआ है .सद्य प्रकाशित अध्धय्यन से यह पहली मर्तबा स्पस्ट हुआ है .
आप जानतें हैं टाइप-२ या सेकेंडरी दायाबितीज़ हो जाने पर हमारा शरीर अग्नाशय (पैनक्रियाज़ )द्वारा तैयार हारमोन 'इंसुलिन 'का स्तेमाल भोजन के पाचन से बनी 'गुलुकोज़ शुगर '(खून में रिसी शक्कर )का ठीक से स्तेमाल नहीं कर पाता है .बढ़ी हुई शक्कर हमारी किदनीज़,आँखों, नर्व्स,हार्ट तथा मेजर आर्त्रीज़ को नस्ट कर सकती है .(दायाबीतिक न्यूरो -पैथी,दायाबेतिक रेतिनो -पैथी ,दायाबेतिक फुट,कोरोनरी आर्त्रीज़ डीज़ीज़ अब हमारी बोलचाल की भाषा में आ घुसे हैं .यह सब पूअर दायाबेतिक कंट्रोल,अनिद्रा का ही नतीज़ा नहीं तो और क्या है ?)।
पूअर डाईट दैनिकी में व्यायाम का अभाव सीधे सीधे ताल्लुक रखता है दायाबितीज़ से .इसी के चलते आज दुनिया भर में दायाबितीज़ के बाकायदा १८ करोड़ दाय्ग्नोज्द मामलें हैं .(भारत तो २०१५ तक दायाबितीज़ की राजधानी बनने का गौरव हासिल कर सकता है ।)
पूर्व में अध्धय्नों में कई दिनों की अनिद्रा को इंसुलिन स्तेमाल में खलल बतलाया गया था .यह पहली मर्तबा सामने आया है -इम्पैयर -मेंट ऑफ़ इंसुलिन यूज़ के लिए एक रात की अनिद्रा काफी है .इसके भी वही खतरनाक दुष -प्रभाव है .
नीदरलैंड के साइंस दानों ने संदर्भित अध्धययन के दौरान आठ तंदरुस्त (निरोगी काया वाले )लोगों की पड़ताल पहली मर्तबा इनके आठ घंटा की नींद लेने और दूसरी दफा केवल चार घंटा नींद लेने के बाद पड़ताल की .पता चला दूसरी दफा इंसुलिन सेंसिटिविटी (सम टाइप्स ऑफ़ इंसुलिन सेंसिटिविटी )१९ -२५ फीसद तक घट गई .इंसुलिन संवेद्यता स्वस्थ लोगों के लिए कोई नियत मान लिए नहीं रहती है .इसका सम्बन्ध इस बात से है 'कल रात आप कितना नींद ले पाए .जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल एंडो -क्राईनोलोजी एंड मेटाबोलिज्म में इस अध्धययन के नतीजे छपें हैं।
गत वर्ष एक अमरीकी अध्धय्यन ने निष्कर्ष निकाला था ,जो लोग बामुश्किल एक रात में ६ घंटा ही सो पातें हैं ,उनकी ब्लड शुगर रिदींग्स ६ सालों में ही असामान्य (एब्नोर्मल )हो जातीं हैं ।
बालिगों के लियें एक रात में ७-९ घंटा नींद लेना ज़रूरी बतलाया है साइंस दानों ने .क्या बुजुर्गों ने इसका औसत पहले ही निकाल लिया था -कमसे कम आठ घंटा घोड़े बेचकर सोने की हिदायत दी थी ।(यह भी नोट करें ,काल सेंटर की नौकरी प्री -दायाबेतिक मामलों मे इजाफा कर रही है तो उसकी वजह भी बेहूदा शिफ्ट चेंज ,अनिद्रा रही है .अध्धय्नों से यह पुष्ट हो चुका है .
सन्दर्भ -सामिग्री :-जस्ट वन स्लीप- लेस नाईट केन रीक हेवोक (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे६ ,२०१० )

कोई टिप्पणी नहीं: