किसी भी जीव- निकाय (जैविक प्रणाली ,बायलोजिकल -ओर्गेनिज्म )में किसी हानिकारक पदार्थ यथा रेडियो -सक्रीय पदार्थ ,हेवी -मेटल (पारा आदि )या फिर ओर्गेनो-क्लोरीन का कालानुक्रम में ज़माहो जाना जैव संचय कहा जाता है ।
शर्त यह है ,वह जैविक निकाय हमारी खाद्य -श्रृंखला (फ़ूड चेन )की एक कड़ी के रूप में मौजूद रहे .एक मिसाल पर गौर करतें हैं ,मान लीजिये एक बड़ी मछली कई छोटी मछलियों को अपना ग्रास रोज़ -बा -रोज़ बनाए रहती है ,कुछ ही बरसों में उसके शरीर में वह यौगिक घर बनालेंगें जो छोटी मछलियों में अल्पांश में ही मौजूद थे ।
डी डी टी एक ऐसा ही पेस्टीसा -इड है .इसके विषाक्त प्रभाव छोटी मछली में भले ही उजागर नहीं होते ,बड़ी में खतरनाक तरीके से ज़ाहिर होतें हैं ।
दुरभाग्य यह है ,ऐसे पदार्थ जैव निम्नीकृत होकर पुनर्चक्रण में शरीक नहीं हो पाते .हमारे पारिस्तिथि -पर्यावरण तंत्र में यूं ही बने रहतें हैं .हमारी हवा -पानी -मिटटी को गंधाते रहतें हैं .कालान्तर में हम भी इनका ग्रास बन जातें हैं .यह खाद्य -श्रृंखला में पैठ जातें हैं .यही है 'जैव -संचय 'या बायो -मेग्निफिकेशन ,बायो -एक्युमलेसन .
रविवार, 23 मई 2010
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