पृथ्वी पर जीवन है तो इसीलिए, यहाँ जीवन के अनुकूल तापमान, गुरुत्व आदि रहें हैं .नवीनतर रिसर्च के अनुसार यह स्थिति सैदेव ही नहीं रहने वाली है .क्लाइमेट चेंज आगामी तीन सौसालों में ही स्थिति को जीवन के प्रतिकूल बना सकती है .तापमानों में १२ सेल्सिअस तक की वृद्धि हो सकती है ।
औट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स विश्व -विद्यालय तथा अमरीका की पुरडुए(परड्यू )यूनिवर्सिटी के साइंसदानों ने अपने अध्ध्यनों से पता लगाया है बढ़ते हुए तापमान कई जगहों पर जीवन के बने रहने कायम रहने को दुस्कर बना देंगें ।
एक 'पेपर 'में साइंसदानों ने बतलाया है शुरुआत कुछ जगहों पर विश्व -तापमानों ,ग्लोबल वार्मिंग से पैदा गर्मी मेंऔसतन ७ सेल्सिअस की बढ़ोतरी से होगी ।
तापमानों के ११ -१२ सेल्सिअस बढ़ जाने पर ऐसे इलाके हर तरफ होंगें .आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा इसकी चपेट में आयेगा ।
बेशक बकौल रिसर्चर स्टेवें शेरवूड ऐसायानी तापमानों में ७ सेल्सिअस की वृद्धि इस शती में भले ही ना हो ,लेकिन वर्तमान दर पर जिस तरह जीवाश्म ईंधनों का सफाया हो रहा है उसके ज़ारी रहते ईस्वी सन २३०० तक इससे से भारी समस्या पेश आ सकती है ।
दीर्घावधि में ऐसा होने के आसार फिफ्टी फिफ्टी हैं ,बराबर हैं ।
यह निष्कर्ष दीर्घावधि तक फैले जलवायु परिवर्तनों का परीक्षण करने के बाद निकाले गएँ हैं .अब तक किसी और अध्धयन में ऐसे परीक्षण नहीं किये गए थे .
पहली मर्तबा हीट- स्ट्रेस का जायजा लिया गया है .इसके लिए बढ़ते तापमानों औरबढ़ी हुई आद्रता दोनों को आकलन में शामिल किया गया है ।
अब तक जलवायु परिवर्तन में एक दूर दृष्टि का अभाव रहा है .ग्रीन हाउस गैसोंसे पैदा गर्मी का दीर्घावधि अन्वेषण नहीं किया गया है ।
नवीन रिसर्च दूर तक जाती है .सुदूर अनागत तक विस्तृत है ।
बेशक आगामी दो दशकों में हम इस गर्मी को रोकने में कुछ ना कर पायें लेकिन दीर्घावधि परिवर्तनों को मुल्तवी रखने के लिए हम आज भी बहुत कुछ कर सकतें हैं ।
सन २१०० सौ में भी जलवायु परिवर्तन पर लगाम नहीं लगेगी ।
२३०० में स्थिति बेकाबू हो जायेगी .हकीकत यही है आज की ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-इन ३०० हंड्रेड ईयर्स ,अर्थ विल बी टू हाट फॉर ह्युमेंस
पीपल वोंट बी एबिल टु विद्स्तेंद दी राइजिंग तेम्परेचर्स त्रिगर्ड बाई वार्मिंग (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे१२ ,२०१० )
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1 टिप्पणी:
...प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!!
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