साइंसदानों ने चूहों में अस्थि -भंग की दुरुस्ती के लिए पहली मर्तबा सुइंयों (इन्जेक्संस )को आजमाया है .यदि यही तरकीब हम मनुष्यों पर भी कामयाबी पूर्वक आजमाई जा सकी तबप्रभावित अंग पर प्लास्टर(कास्ट चढाने ) की लम्बी और उबाऊ प्रक्रिया से बचा जा सकेगा .प्लास्टर चढ़े रहने के अपने पार्श्व -प्रभाव हैं .निष्क्रिय बना रहता है असरग्रस्त अंग एक लम्बी अवधी तक ।
स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी ,केलिफोर्निया के साइंस -दानों ने अपने एक प्रयोग में चूहों की पिंडली (शिन बोन )में पहले तो कई नन्ने -नन्ने सुराख किये ,इसके बाद एक ख़ास प्रोटीन (डब्लू -एन- टी )की सुइयां लगा दीं ।
पता चला 'स्टेम सेल्स 'कलम कोशिकाएं पहले से ज्यादा रफ्तार से विभाजित हो अपनी कुनबा -परस्ती (वंश -वृद्धि )करने लगीं हैं .
यह वृद्धि उन माइस के बरक्स तीन गुना ज्यादा थी जिन्हें इस प्रोटीन की जगह प्लेसिबो (छद्म इंजेक्सन )लगाया गया ।
यह तरीका नवीन स्टेम कोशिकाओं को इंजेक्ट करने से भी ज्यादा कारगर पाया गया .जो बेलगाम हो अनियंत्रित तरीके से विभाजित होती चली जातीं हैं ।
हम मनुष्यों में अस्थि -भंग की दुरुस्ती में यह 'डब्लू एन टी प्रोटीन एक लोक लुभावन (लुभाऊ )इलाज़ माना जा सकता है ।
इस प्रोटीन में गडबडी होने का सम्बन्ध 'ह्यूमेन बोन दिस -ओर्दार्स 'से जोड़ा जाता रहा है ।
सन्दर्भ- सामिग्री :-ए जेब तू मेंड ब्रोकिं बोन्स(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे ११ ,२०१० )
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