जब से क्रैग वेंटर की टीम ने कृत्रिम डी एन ए ,कृत्रिम क्रोमोज़ोम्स ,कृत्रिम बेक्तीरियम -सेल चंद रसायनों और कंप्यूटर प्रोग्रेम की मदद से लेब में गढ़ीहै ,साइंस -दानों में एक हंगामा बरपा है .इसके अवांछित परिणाम बढा चढ़ा कर प्रस्तुत किय्रे गए हैं .जबकि प्रकृति नटी के रहस्य जानने बूझने की दिशा में एक छोटा सा ही डग भरा गया है .प्रकृति के विपरीत कुछ हो ही नहीं सकता ।प्रकृति खुद अपनी हिफाज़त करती है .
कथा है ,विश्वामित्र ने "प्रति -सृष्टि "रचने की बात कही भर थी .चारों तरफ कोहराम मच गया .ईश्वरीय काम में दखल कहा गया .,इसे ।
कुछ ऐसा ही मंज़र आज है .जबकि क्रत्रिम जीवाणु कोशा से आगे निकल साइंस दान एक ऐसा जीवाणु तैयार कर सकतें हैं,जो 'जलवायु परिवर्तन 'को एक स्तर पर लगाम लगा सकता है .विश्व्यापी तापन को कम कर सकता है ,पर्यावरण से ग्रीन हाउस गैसों को बे दखल कर सकता है .जैव -ईंधन तैयार कर जीव-अवशेषी ईंधनों के विकल्प प्रस्तुत कर सकता है ।
क्रैग वेंटर इन्स्तित्युत की रिसर्च अभी शैशवा -स्था में ही है ।
हमारा दिमाग हमेशा उलटा पुल्टा ही क्यों सोचता है .दिमाग की निगेतिविती ही वायरस है .यह कंप्यूटर वायरस से ज्यादा विध्वश कारी है .इस नकारात्मक सोच पर लगाम लगे तो विकास का रथ आगे बढे ।
आप जानतें हैं इस खर -दिमाग का १० फीसद हिस्सा ही अभी तक बूझा -समझा गया है ,अगम -अगोचर बनी ९९ फीसद सृष्टि की तरह .डार्क मैटर ,डार्क एनर्जी आज भी कौतुक पैदा करतें हैं .तमाम सवाल अन -उत्तरित हैं और हम अपनी नाक से आगे नहीं देख पा रहें हैं .नेता वोट वायरस की भेंट एकपूरे मुल्क कोही चढ़ा रहें हैं।
जड़ और चेतन में बस गुणात्मक फर्क ही है .वगरना जो जड़ में है वही चेतन में भी है .मनीषी होता है साइंसदानों का मन .ऋषि -मन है यह जो सैदेव आगे ही आगेका देखता बूझता है ।
नारियल की हजामत बना दीजिये बाल साफ़ कर दीजिये फिर देखिये 'दो आँखें एक सिर 'यहाँ भी है .कहाँ से आया ?
रविवार, 23 मई 2010
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1 टिप्पणी:
राम राम भाई
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