१९वी शती में यह जन -विशवास जोर पकड़े था ,मुख -संक्रमण सारे शरीर के लिये जंजाल बन जाता है ,पूरी काया का ही रोग बन जाता है .इसी भय से लोग अपने सारे दांत बाहर निकलवा देते थे ।
फोकल सेप्सिस का सिद्धांत जोर पकड़े था ।
'फोकल सेप्सिस आर सिंड्रोम 'इज काज़्द बाई दी प्रिजेंस ऑफ़ माइक्रो -ओर्गेनिज्म आर देयर टोक्सिंस इन दी टिश्यु आर ब्लड -स्ट्रीम ।
इधर इस विस्वास को एक बार एक और दिशा से बल मिला है .साइंस -दानों ने पता लगाया है ,पुअर- हाइजीन के चलते जो लोग 'गम -डिजीज की चपेट में आजातें हैं उनमे मधु -मेह तथा हृद -रोग के खतरे का भी वजन बढ़ सकता है ।
मुख और जबड़े का संक्रमण खून की नालियों को प्लाक से अवरुद्ध कर सकता है .इसीलिए साइंसदानों ने दिन में दो मर्तबा दांत साफ़ करने की सिफारिश की है .इसका मतलब यह हुआ जो लोग दिन में दो मर्तबा ब्रश नहीं करतें हैं ,ओरल हाइजीन ठीक नहीं रखतेंहैं उनके लिये हृद -रोगों का ख़तरा भी बढ़ जाता है ।
उक्त निष्कर्ष ब्रितानी रिसर्चरों ने स्काट -लैंड के १२,००० बालिगों (एडल्ट्स ) की ओरल -हाइजीन की पड़ताल करने के बाद निकाले हैं .पता चला इनमे से जो लोग दिनमें दो बार ब्रश करते थे ,उनके लिये हृद रोगों का ख़तरा कम हो गया था जबकि पुअरओरल हाइजीन वालोंके लिये यह बढ़कर ७० फीसद हो गया था .जहां स्मोकर्स में यह १३५ फीसद बढ़ जाता है वहीं गम डिजीज में ७० फीसद ।
कुल मिलाकर ११,८६९ लोगों में से ५५५ को या तो दिल का दौरा पड़ा या फिर हृद -धमनी रोग के किसी पेचीलापन से दो चार होना पड़ा ।
बेशक स्मोकिंग और पुअर डा -ईट दिल के लिये बड़े खतरे हैं लेकिन रेग्युलर टी -थ ब्रशिंग के ओरल -गुड हाइजीन के अपने फायदें हैं .इसके महत्व को नजर -अंदाज़ नहीं किया जा सकता ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ब्रश टी -थ तवा -इस तूएवोइड हार्ट डिजीज (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २९ ,२०१० )
शनिवार, 29 मई 2010
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