यदि विज़न २०२० मात्र खाब नहीं तब भारत को भी चाहिए एक'उपग्रह -नौचालन -प्रणाली 'परस्पर लिंक्ड एक दूसरेके साथ मिलकर काम करने वाले उपग्रहों का नेटवर्क .यहाँ आये दिन २६ /११ घटते हैं .ट्रेने पटरीसे उतारी जाती हैं .सुरक्षा बल नक्सालियों का अचूक निशाना बनतेंहैं ।
इन हालात में हमें फ़ौरन एक उपग्रह निगरानी तंत्र चाहिए जो ढूंढ ढूंढ कर नक्सली ठिकानों को उडाये .महा -शक्ति बननातो दूर की कौड़ी है ,वर्तमान में तो हम अपनी जन -परिवहन की सबसे बड़ी प्रणाली रेलों को भी सुरक्षा नहीं मुहैया करवा पा रहें हैं ।
जब चीन ,योरोपीय युनियन ऐसा वर्ल्ड -वाइड-सेटेलाईट -नेविगेसन -तंत्र खड़ा करने का मंसूबा रखें हैं तोहम अपने लोक तंत्र की मजबूती के लिए ऐसा क्यों नहीं कर सकते .हमें तो २४घन -टा३६५ दिन सीमा पार से घुस पैंठरोकनी पडती है .अन्दर -बाहर हर तरफ शत्रु खड़ा है ।
रही बात खर्चे की ,फिल -वक्त भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा अरब -पति हैं .माया वती हैं .८०० मीट्रिक टन सोना हम सालाना स्वर्ण आभूषणों की भेंट चढ़ा देतें हैं .प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है यह देश जहां के नेता ही मिलकर एक 'नव -स्टार जी पी एस 'अमरीका सरीखा ग्लोबल -पोजिशनिंग -सेटेलाईट -सिस्टम 'खड़ा कर सकतें हैं .आप नेताओं के असेट्स माल -मत्ता देखिये .एक मुलायम या चौटाला ढूँढने निकलेंगे सौ मिलेंगे .पैसे का क्या रोना है .जहां चाह वहां राह .भारतीय जो ठान लेते हैं कर दिखाते हैं ।
एक भारतीय सेटेलाईट नेविगेसन प्रणाली आज की ही नहीं कल की भी ज़रुरत है .आज हमारे पास दूसरे देशों के उपग्रहों को वांछित कक्षा में स्थापित करने का तंत्र मौजूद है .स्पेस टेक्नोलोजी के लिए बेहतरीन दिमाग हैं .आखिर भारत कब तक एक सोफ्ट स्टेट सोफ्ट टार्गेट बना रहेगा 'बैंगन -मुल्कों' का ?और फिर इस तंत्र में निवेश करना तो लाभ का सौदा .इनपुट चंद सालों में निकल आयेगा .तमाम स्टेक -होल्डर्स को इत्तला भर करनी हैं ,इन तेंदमकाम करना है ,सेटेलाईट मैश की मानिंद .बस .तब देखेंगे कौन इधर बुरी नजर डालता है ,फिल वक्त तो गरीब की जोरू सारे गाँव की लुगाई वाला हाल है मेरे भारत का .
शुक्रवार, 28 मई 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें