रिसर्चरों ने पता लगाया है ,'बुद्दू बच्चे 'के प्रति सम्मोहित बच्चे ,टी वीज्यादा देखने वाले नौनिहाल ना सिर्फ मुटिया जातें हैं ,ओवर वेटभी हो जातें हैं ,बौद्धिक स्तर में भी पिछड़ जातें हैं .आर्काइव्स ऑफ़ पीडिया -ट्रिक्स एंड एडोलिसेंत मेडिसन में प्रकाशित एक अध्धययन में बतलाया गया था ,जो बच्चे जितना ज्यादा टी वी देखतें हैं उनके उसी अनुपात में अपेक्षाकृत ज्यादा जंक फ़ूड (बासा और कबाड़िया भोजन )खाने की संभावना बनी रहती है.गणित में यह बच्चे फिसड्डी रह जातें हैं ,बड़े होने पर अपने ही हमजोलियों से ज्यादा सताए जा सकतें हैं ऐसे बाल गोपाल ।
दो साला शिशुओं पर बुद्धू बक्से के निगेटिव असर बेहद खराब पडतें हैं ।
अपने इस अध्धयन में रिसर्चरों ने १३१४ बच्चों के माँ बाप से दो से ढाई और चार से साढ़े चार साला नौनिहालों का पूरा हिसाब किताब माँगा .कनाडा के राज्य कूबेक के इन बच्चों के लिए १९९७ -१९९८ के दौरान बुद्धू बक्से के सामने बिताया समय नोट किया गया .अब स्कूल टीचर्स ने इन तमाम बच्चों का दस साला हो जाने पर अकादमिक ,मनो -सामाजिक और सेहत सम्बन्धी जायजा लिया ।
पता चला दो से ढाई साला उन बच्चों की गणित में योग्यता (प्राप्तांक )६फ़ीसद कम रही जिहोनें सप्ताह मेंप्रति एक घंटा ज्यादा समय बुद्धू बच्चे के सामने बिताया .बुद्धू बक्से के सामने बिठाये गए हरेक एक्स्ट्रा घंटे के लिए प्राप्तांक इसी अनुपात में यानी ६ फीसदऔर घटते चले गए .क्लास रूम एंगेजमेंट में प्रति एक्स्ट्रा घंटा सात फीसद कमी दर्ज हुई ,प्रति घंटा अपने ही हमउम्रों के द्वारा इन्हें १० फीसद ज्यादा सताया गया विक्तिमाइज़ किया गया .हंसी मज़ाक उड़ाया गया इन वजनी बच्चों का ।
एक घंटा टी वी ज्यादा देखने वाले बच्चे जहां प्रति एक्स्ट्रा घंटा बिताये गए समय के हिसाब सेहरेक घंटे के लिए एक तरफ ९ फीसद कम व्यायाम कर रहे थे वहीँ दस फीसद ज्यादा स्नेक्स चट कर रहे थे .इनके बोडी मॉस इंडेक्स में पांच फीसद वृद्धि दर्ज की गई ।
उम्मीद की गई थी बचपन के ये दुष्प्रभाव निगेटिव इम्पेक्ट्स उम्र के साथ जाते रहेंगें लेकिन ये अवांछित प्रभाव बने रहे ।
मोंट्रियल यूनिवर्सिटी के साइंस दानों ने इस अध्धययन का नेत्रित्व किया है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-इट्स ऑफिशियल :ईडियट बॉक्स मेक्स किड्स फेट एंड डम्ब (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे४ ,२०१० )
मंगलवार, 4 मई 2010
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