खगोलज्ञों को पहली मतबा बर्फ और कार्बनिक यौगिकों का सुराग एक एस्टेरोइड (लघु -ग्रह )पर मिला है .एक साथ एक नहीं दो दो अध्धययन यही इतल्ला दे रहें हैं .मील का पत्थर साबित हो सकतें हैं दोनों ही अध्धयनों से निकाले गये निष्कर्ष ।
इन स्टडीज़ से उस सिद्धांत का पुनर बलंन हुआ है ,पृथ्वी पर जीवन का कच्चा माल जल और कार्बन आधारित अणु अबसे तकरीबन चार अरब बरस पहले उन धूमकेतुओं और और लघु ग्रहों से आयातित हुए जो पृथ्वी के गुरूत्व की जद में आकर पृथ्वी से आ टकराए थे .(फ्रेड होयल स्कूल इस सिद्धांत का प्रबल समर्थक है ।).
एक लघुग्रह 'फ्रोस्ट की पतली चादर 'ओढ़े प्रतीत होता है .इसकी शिनाख्त हवाई स्थित'नासा 'के इन्फ्रा रेड टेलिस्कोप ने की है ।
जमी हुई ओस ,तुषार या पाला भी कहा जाता है 'फ्रोस्ट 'को .सर्दियों में कई मर्तबा फसलों को पाला मार जाता है ।जमी हुई ओस में लिपटा -
'२४ ठेमिस 'नाम का यह लघु ग्रह मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच बना हुआ सूरज के गिर्द घूम रहा है .
खगोल विदों का मानना रहा है ,सौर मंडल के निर्माण के बाद बची हुई महा काय चट्टानों कीमलबे के रूप मे जो बरसात(बमबारी ) पृथ्वी पर हुई थी ,वह फ्रोज़ींन वाटर से संसिक्त थी .लेकिन इस धारणा की पुष्टि पक्के तौर पर बतौर सबूत पहली मर्तबा इन दोनों अध्धयनों से ही हो सकी है ।
इसके नतीजे विज्ञान पत्रिका 'नेचर 'में प्रकाशित हुए हैं ।
अब सवाल यह है ,यह सतही हिमजल लघु ग्रह के गिर्द के गर्म माहौल में अरबों साल तक कैसे बना रहा ,वास्पिकृत क्यों और कैसे नहीं हुआ .यह रहस्य आज भी बना हुआ है ।
क्या लघुग्रह के गर्भ प्रदेश में मौजूद जल सतही 'फ्रोस्ट 'का नवीकरण करता रहा है ?क्या इसका मतलब यह हुआ '२४ ठेमिस 'जिसका व्यास (डायमीटर )२०० किलोमीटर है ,जिन खनिजों से भरपूर है उनमे जल भी अथाह है ?
वर्तमान खोज सेऐसे राकी एस्टेरोइड और कोमेट्स जो सूरज के पास से उसकी परिक्रमा कर रहें हैं का अंतर मिट गया प्रतीत होता है .इसका मतलब यह हुआ कोमेट्स के अलावा २० -३० फीसद जल लघु -ग्रहों से भी पृथ्वी पर आयातित हुआ है .अभी तक इसका श्रेय धूम केतुओं को ही दिया जाता रहा है .पहली मतबा लघु ग्रह भी उसी पांत मे खड़े दिखलाई दिए हैं .
सन्दर्भ -सामिग्री :-आइस एस्टेरोइड फाउंड ,मे रिवील हाव वाटर कम तू एअर्थ ?(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ३० ,२०१० )
शनिवार, 1 मई 2010
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