सोमवार, 24 मई 2010

सौर केन्द्रीय प्रणाली के जनकको सम्मान .

गेलिलियो के गुरु खगोलविज्ञानी निकोलस कोपरनिकस को आखिर कार पोलैंड के बिशप चर्च ने मरणोप -रान्त उनकी कद काठी केअनुरूप पद प्रतिष्ठा प्रदान की ।
१६ वीं शती के इस तारा -विज्ञानी ने 'भू -केन्द्रीय प्रणाली यानी जिओ -सेंट्रिक सिस्टम 'को धकिया कर "हीलियो -सेंट्रिक सिस्टम 'यानी सौर केन्द्रित प्रणाली के बारे में गेलिल्यो को बतलाया था .बेशक चर्च को यह सब धर्म विरुद्ध लगा था .अफलातून (दार्शनिक प्लेटो )का घोर अपमान लगा था .इसी बिना पर गेलिलियो को जेल में ठूंस दिया गया था .हीलियो -सेंट्रिक प्रणाली की हिमायत करने पर गेलिलियो की आँखें फोड़ दी गईं थीं ।
ठीक ५०० साल केबाद उसी बिशप चर्च ने कोपरनिकस(१४७३ -१५४३ ) को उसी प्रधान गिरजा-घर के प्रांगन में एक बार फिर दफनाया है जहां वे कभी चर्च के एक विशेष अधिकारी (केनन )के बतौर कामकरते थे .उनके कब्र पर सौर -केन्द्रित प्रणाली का एक मोडिल भी उकेरा गया है ।
इतना ही नहीं कोपरनिकस के जीव अवशेषों को पवित्र जलसे संसिक्त कर पूरे सम्मान के साथ (आनर गार्ड के साथ )शीर्ष धर्मा धिकारियों ने एक बार फिर सुपुर्दे ख़ाक किया है .हमारे शत -शत प्रणाम इस खगोल शास्त्री को .जिसके शिष्य ने चर्च को ल- ल- कारा था .सच को तरजीह दी थी मरते दम तक यही बुदबुदाया था 'सच वही है जो मैं कहता हूँ 'पृथ्वी ही घूमती है सूरज के गिर्द ,वह सृष्ठी का केंद्र नहीं है .'

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