शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

कौज़िज़ ऑफ़ दिल्युज़ंन (ज़ारी...)

कौज़िज़ ऑफ़ दिल्युश्जन ?
भ्रांत धारणा यानी दिल्युश्जन के कारणों की पड़ताल करना उनकी व्याख्या करना एक चुनौती भरा काम रहा है .तीन सिद्धांत आम तौर पे प्रचलित रहें हैं :
(१)जेनेटिक और बायोलोजिकल थियरी :इस आनुवंशिक और जैविक मत के अनुसार दिल्युश्ज्नल डिस -ऑर्डर से ग्रस्त व्यक्तियों के निकट सम्बन्धियों के लिए दिल्युश्ज्नल ट्रेट्स का जोखिम बढ़ जाता है ।
(२)डिस -फंक्शनल कोगनिटिव थियरी :यानी बोध सम्बन्धी ,संज्ञानात्मक प्रकार्यों का गड़ -बडाना ठीक से काम न कर पाना .इस सिद्धांत के तहत भ्रांत धारणा की बुनियादी वजह असरग्रस्त व्यक्तियों का खुद के लिए दुनियावी चीज़ों जीवन के बारे में विकृत रूप प्रस्तुत करना ,गलत तरीके से समझाना खुद को जीवन और जगत के बारे में ।
(३)मोटी -वेटिद और और डिफेंसिव दिल्युश्जन :उन लोगों में जिनमे दिल्युश्जन पनपने की प्रवृत्ति पाई जाती है ,जीवन के उस वक्फे में उस दौर में उन लम्हात में जब जीवनकी स्थितियों के साथ तालमेल बिठा पाना मुश्किल हो जाता है ,हाई सेल्फ एस्टीम को बनाए रखना असंभव हो जाता है तब वह अपनी असफलताओं का ठीकरा दूसरे के सिर पे फोड़ देतें हैं ताकि उनकी वही इज्ज़त उनकी नजरों में बनी रहे .ऐसे में असर ग्रस्त या वल्नारेबिल व्यक्ति अपनी मुश्किलातों की वजह दूसरों को बतलाना शुरू कर देता है .उसे लगता है उसके साथ जो कुछ भी हो रहा है उसकी वजह वह खुद नहीं है दूसरे करा रहें हैं यह सब जो उसके अपने निकटतर सम्बन्धी हैं वही सब ,उन्हीं का किया धरा है जो वह असर ग्रस्त व्यक्ति भुगत रहा है .यह डिफेन्स मिकेनिज्म है उसके लिए अपने प्रति सकारात्मक नज़रिया ,पोजिटिव व्यू बनाए रखने का ।
लगातार बनी रहने वाली दवाबकारी स्थितियां ,ऑनगोइंग स्ट्रेसर्स,मसलन जीवन यापन का निचला स्तर (पद प्रतिष्ठा का अभाव ),लो सोशियो -इकोनोमिक स्टेटस ,इमिग्रेशन आदि इसी के तहत आयेंगें ,ये सभी कारक भी दिल्युजन की संभावना को बढा सकतें हैं ,वजह भी बनते देखे जातें हैं ।
फ्रन्टल लोब में चोट लगना ,अर्द्ध गोलार्द्ध का चोट ग्रस्त होना भी दिल्युश्जन और कई ब्रेन डिस -ऑर्डर में इक पैट्रन के रूप में देखा गया है .इन चोटों से ही बोध सम्बन्धी अभाव (कोगनिटिव देफिशित)पैदा होता है जिसकी क्षति पूर्ती लेफ्ट हेमी -स्फीयर करता है ,यही दवाब दिल्युश्जन की वजह बन जाता है ।
जिन बच्चों की बचपन में बहुत ज्यादा अवहेलना ,अनादर होता है ,टीजिंग होती है वह बचपन में भी और व्यस्क होने पर भी खासकर युवावस्था की देहरी पर पाँव रखते रखते साइकोसिस की चपेट में आ सकतें हैं इन्हीं में हेलुसिनेशन और दिल्युश्जन बचपन में भी ,युवावस्था में भी ज्यादा देखे जातें हैं ,ख़तरा बढा रहता है शिजोफ्रेनियाँ का भी .,खासकर उन बच्चों के लिए जिनके साथ ८-१० साल की उम्र में बहुत ज्यादा बदसलूकी हुई है ,बेहद बुलींग(बुल्लयिंग ) हुई है जिनकी .(ज़ारी ...)

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