भुलक्कड़ -पना (फोर्गेत्फुल्नेस )और थोड़ा सा भ्रमित होना रहना शुरूआती लक्षण हो सकतें हैं .धीरे धीरे समय के साथ इसकी मार याददाश्त पे ज्यादा पड़ती है ,बोलने और साफ़ साफ़ बात कहने की बात में तारतम्य होने दिखने की क्षमता भी प्रभावित होती है .आपका जजमेंट (कयास लगाना चीज़ों और स्थितियों का ),समस्याओं को हल करने की कूवत भी असर ग्रस्त हुए बिना नहीं रहती ।
बातों को याद रखना असर ग्रस्त व्यक्ति के लिए ,विचारों को संगठित रखना मुश्किल होने लगता है .इसका एहसास आपको हो भी सकता है नहीं भी लेकिन आपके साथ जो और लोग रह रहें हैं उन्हें इसका साफ़ साफ़ इल्म होने लगता है ,घर बाहर दोनों जगह पर ।
दिमाग में होने वाले बदलावों के बढ़ने के साथ साथ मुश्किलातें भी बढती ही जाती है .
जान पहचान के किसी आदमी का नाम कभी कभार भूल जाना ,चाबियाँ कहीं रखके भूल जाना इक आम बात है लेकिन यहाँ तो याददाश्त का क्षय इक मुकम्मिल फीचर बन जाता है ,बदतर होती चली जाती है याददाश्त ,याद रखने का सिलसिला टूटने लगता है ।
मरीज़ इक ही बात और सवाल को अनेक बार दोहरा सकता है ।
कल किसी के साथ हुई बात को भूल सकता है ,किसी के साथ तय किया गया भेंट का समय और घटनाओं को भूल सकता है ,बाद में भी यह सब याद नहीं आता है .(रीसेंट मेमोरी लोस जड़ ज़माने लगता है )।
चीज़ों को (ख़ास चीज़ों को )बहुत ही अजीब और अ-सुरक्षित जगह पर रख सकता है .
समय के साथ रोग के और उग्र होने पर परिवार के सदस्यों के ही मरीज़ नाम भूलने लगता है ,रोज़ काम आने वाली चीज़ों के भी .कपडे पहनना ,नहाना भी भूल सकता है ।
डिस -ओरिएंटेशन :आज तारीख कौन सी है साल का कौन सा महीना चल रहा है ,कौन सी ऋतु चल रही है ,कहाँ हूँ मैं इस समय और इन दिनों हालात कैसे चल रहें हैं मेरे ,इस सबका बिलकुल भी अंदाजा नहीं रहता है मरीज़ को ।
आप क्या देख रहें हैं इसे समझने में भी दिक्कत पेश आ सकती है ऐसेमें अपने आसपास क्या है वह कहाँ हैं मरीज़ कुछ भी नहीं जान समझ पाता,जाने पहचाने गली कूचे भी भूलने लागतें हैं .खो सकता है व्यक्ति ,अपने घर आसपास से भी नहीं लौट सकता ।ब्रेकफास्ट किया या नहीं उसे याद नहीं रहता ,ब्रेक फास्ट करने के बाद कोईघर के ही किसी और सदस्य को ब्रेकफास्ट करते हुए देख पूछ सकता है "मेरा ब्रेक फास्ट कहाँ है ,मुझे क्या खाना है "।
बोलने और पढने की क्षमता का भी वक्त के साथ ह्रास होने लगता है ,मसलन सामने कोई चीज़ रखी है लेकिन वह क्या है या जो है उसे बतलाने के लिए आपको सही शब्द नहीं मिल पाते ,अपने विचारों को दूसरे तक पहुंचा पाना बातचीत में शिरकत कर पाना मुमकिन नहीं रह जाता है ।
पढ़ना और लिखना दोनों भूलने लगता है रोगी ।
कुछ भी सोच पाने और कहीं भी ध्यान टिका पाने में दिक्कत पेश आती है ।
आपके पास जो पैसा है उसे गिन पाना पास बुक में ज़मा रकम का हिसाब देखना ,बिजली आदि के बिल देखके उन्हें सही समय पर भरना असंभव हो जाता है ,जबकि
पहले आप ये सब काम मज़े से कर लेते थे ।
धीरे - धीरे संख्याओं को पहचानने की क्षमता भी चुक जाती है ।
(ज़ारी ...).
सोमवार, 18 अप्रैल 2011
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