पार्किन्संज़ रोग में जटिलताएं :
(१)डिप्रेशन :आम तौर पर देखने को मिल जाता है अवसाद पार्किन्संज़ ग्रस्त लोगों में .बहर -सूरत अवसाद का इलाज़ साथ साथ मयस्सर होने पर पार्किन्संज़ रोग की दूसरी मुश्किलातों ,चेलेंज़िज़ से बेहतर तरीके से निपटा जा सकता है ,तालमेल बिठाए रखा जासकता है ।
(२)स्लीप प्रोब्लम्स :मरीज़ को न सिर्फगहरी नींद ले पाने में दिक्कत हो सकती है बार बार आँख खुल सकती है ,पूरी रात ऐसा होता रह सकता है . दिन में अचानक बैठे बैठे ही सो सकता है मरीज़ .(स्लीप अटेक्स हैं ये झोंकें नींद के )।
(३)डिफी -कल्टी च्युइंग एंड स्वेलोइंग :रोग की आखिरी चरणोंमे निगलने में काम आने वाले मसल्स (पेशियों के असर ग्रस्त होने से )कुछ भी खाना मुहाल हो जाता है (मुश्किल पड़ती है खाने में )।
(४)यूरिनरी प्रोब्लम्स :पेशाब का बंद (यूरिनरी रिटेंशन )भी लग सकता है ,और पेशाब पर काबू न रख पाना भी (यूरिनरी इन -कोन -टीनेंस ).पार्किन्संज़ के इलाज़ में प्रयुक्त होने वाली कुछ दवाएं भी मूत्र त्याग को मुश्किल बना देतीं हैं ।
(५)कोंस -टी -पेशन :कब्ज़ की शिकायत आम बनी रहती है क्योंकि पाचन क्षेत्र (डाई -जेस्तिव ट्रेक्ट )धीमे काम करने लगता है .इलाज़ में प्रयुक्त दवाएं भी कब्जी की वजह बन सकती है ,चबा -निगल न पाने का लक्षण भी .
(६)सेक्स्युअल डिस-फंक्शन :कुछ मरीजों की यौनेच्छा भी कम हो सकती है जिसका मरीज़ को खुद भी इल्म होने लगता है .इसके मनो -वैज्ञानिक और कायिक (फिजिकल )दोनों कारण हो सकतें हैं ,केवल कायिक वजहें भी इसकी हो सकतीं हैं ।
चिकित्सा (मेडिकेशन ) भी कई जटिलताएं प्रस्तुत कर देती है :नतीजा हो सकता है -
(१)हेलुसिनेशन .
(२)उनींदापन ।
(३)खड़े होते ही ब्लड प्रेशर का गिर जाना ।
(४)इन -वोलंटरी त्विचिंग /जर्किंग मूवमेंट्स ऑफ़ दी आर्म्स और लेग्स (झटके से हाथ पैरों का खुद बा खद हिलना झटकना ,पेशियों का आकस्मिक संकुचनजिस पर आपका कोई वश नहीं होता ).
शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011
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