मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

जो समझ न आये वो हिस्टीरिया ?

गत पोस्ट से आगे ......
"हिस्टीरिया हेज़ बीन ए डंपिंग ग्राउंड फॉर दी अन -एक्स -प्लेंड"।
हिस्टीरिया का नाम बदल कर "कन्वर्शन डिस -ऑर्डर " तो ज़रूर कर दिया गया लेकिन इसका निदान दुरूह बना रहा -दीर्घावधि तक यह एक समझ न आने वाला ,बेहद मुश्किल तंग करने वाला रोग निदान बना रहा .क्योंकि यह नकारात्मक सबूत पर आधारित था -मतलब यदि आपके साथ कोई और गडबड नहीं है (काय रोग नहीं है )तो हो सकता है आपको कन्वर्शन "डिस -ऑर्डर "हो ।
जो समझ न आता था उसे हिस्टीरिया कह दिया जाता था .इसी सोच के चलते एक समय था जब "एपिलेप्सी "तथा सिफिलिस (एक यौन सम्बन्धी रोग )को भी हिस्टीरिया के तहत रखा जाता था .समय के साथ इन बीमारियों के रोग निदान के नए टूल्स हमारे हाथ में आने से इनकी जैव -चिकित्सकीय व्याख्याएं सामने आईं.अब सभी जानतें हैं 'एपिलेप्सी "दिमाग के आकस्मिक इलेक्ट्रिकल डिस -चार्ज़िज़ का नतीजा होता है .और सिफलिस एक यौन -संचारी रोग है ।
बेशक अब हिस्टीरिया के रोग निदान में उतनी गफलत और त्रुटियाँ नहीं रह गईं हैं लेकिन संदेह होना रहना अभी बाकी है ।
अकसर १९६५ के उस अध्ययन का बाकायदा हवाला दिया जाता है ,जिसके अनुसार जिन मरीजों को रोग निदान के बाद कन्वर्शन डिस -ऑर्डर (हिस्टीरिया रोग) बतलाया गया था उनमे से आधे मामले बाद में न्युरोलोजिकल डिसीज़ के साबित हुए .लेकिन हालिया अध्ययन अब इस त्रुटी का होना बस ४-१० %मामलों में ही मानतें हैं .शेष मामले सही डायग्नोज़ हो जाते हैं ।
फंक्शनल इमेजिंग ने इस रोग निदान में बड़ी मदद की है .अब रोग निदान और इलाज़ में एक तारतम्य है ।
अब मरीज़ आपको आकर यह नहीं कहता "आई एम् आफ -रेड "बल्कि यह कहता है "आई एम् पेरेलाइज़्द"।
"फंक्शनल इमेजिंग हेड मेड दी ट्रीट -मेंट एंड डायग्नोसिस इन दी सेम लेंग्विज ".दी डॉ गोज़ टू दी पेशेंट विद बोडिली लेंग्विज ,इट हेल्प्स ,देयर इज नो कन्फ्यूज़न "।
यही भौतिक साक्ष्य चिकित्सकों की झिझक को भी कम करेंगें ,जो हिस्टीरिया के मरीजों से छिटक -तें रहें हैं .डॉ रोगी को बहाने बाज़ मानते रहें हैं उन्हें लगता रहा है यह बीमार नहीं है बीमारी का नाटक कर रहा है औरों से तवज्जो चाहने के लिए .क्योंकि इनमे न्युरोलोजिकल साइन दिखलाई ही नहीं देते थे .डॉ कहता -आप अपनी टांग हिला डुला सकतें हैं यह फालिज (लकवा या पेरेलिसिस नहीं है ,आपकी पेशियाँ और नाड़ियाँ दुरुस्त हैं ).
हकीकत यह है डॉ इन्हें ठीक भी नहीं कर पाते थे (रोग निदान ही कहाँ हो पाता था )।
(ज़ारी ...)

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