विआरों का एक पूरा समूह है सेरिब्रल पाल्ज़ी जो किसी व्यक्ति के हिलने डुलने गति बनाए रखने ,संतुलन और पोश्चर (मुद्रा )को प्रभावित करता है .
सेविंग ग्रेस यही है बस यह एक नॉन -प्रोग्रेसिव दिमागी असामान्यता है जो समय के साथ बढती नहीं है .हालाकि लक्षण ज्यों के त्यों नहीं रहतें हैं उम्र भर लेकिन विकार बढ़ता नहीं है अल जाई -मार्स जैसी प्रोग्रेसिव डिजीज की तरह केवल लक्षणों का स्वरूप बदल सकता है .
इस विकार में दिमाग का वह हिस्सा क्षति ग्रस्त हो जाता है जो "मसल टोन" को नियंत्रित करता है ।
मसल टोन एक पारिभाषिक शब्द है जिसका मतलब है :किसी भी पेशी में गति का प्रतिरोध कितना है -अमाउंट ऑफ़ रेजिस्टेंस टू मूवमेंट इन ए मसल इज काल्ड "मसल टोन ".
यह मसल टोन ही जिसके चलते आप एक मुद्रा में बैठे रहतें हैं आराम से अनायास बिना किसी प्रयास के .क्योंकि आपकी पेशियाँ समर्थ हैं .उनका संचालन करता दुरुस्त हैं ।
मसलन आप सीधे बैठे रहतें हैं सिर उठाए ,सही पोश्चर में इसी मसल टोन के चलते .मसल टोन में आने वाले समर्थ परिवर्तन ही आपको चलाते हैं ,चलने देतें हैं .
मसलन आप अपना हाथ मुंह तक लाना चाहतें हैं ये तभी मुमकिन होता है जब आपकी बाइसेप मसल की सामने के हिस्से की टोन तो बढे लेकिन साथ ही बाजू के पीछे वाले हिस्से की घटे .
सही सलामत निर- विरोध ,सहज तरीके से चलने के लिए पेशीय समूहों की टोन में संतुलन बने रहना ज़रूरी होता है .सीपी में यह संतुलन चरमरा के टूट जाता है ।
सीपी के चार प्रमुख प्रकार हैं :
(१)स्पास्टिक :जिन लोगों में यह विकार होता है उनमे मसल टोन बढ़ जाता है .नतीज़न पेशियाँ लोच खोके कठोर पड़ जाती हैं (.स्टीफ़ मसल्स ।)
इसीलिए चाल भदेस लगती है ,आक्वर्ड तरीके से ,बे -सलीका ,से चलते दिखेंगें ये लोग .७०-८०%लोगों में यही विकार होता है .(स्पास-टिसिती)।
इसकी भी आगे किस्मे हैं :
मसलन -
(१)स्पाज़ -टिक डाई -प्लीज़िया :इसमें दोनों टांगें असर ग्रस्त होतीं हैं .इसमें दोनों टांगों पर से नियंत्रण हट जाता है .(२)हेमी -प्लीज़िया :इसमें शरीर के एक तरफ हिस्सा ही सर ग्रस्त होता है ,एक तरफ के आंगिक संचालन पर से नियंत्रण हट जाता है .
गुरुवार, 28 अप्रैल 2011
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