गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

अप्रैल का महीना पार्किन्संज़ रोग के बारे में जागरूकता के लिए ...(ज़ारी ...)

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फिलीपिंस में ३०,००० पार्किन्संज़ के मरीज़ इलाज़ ढूंढ रहें हैं .गौर तलब यह भी है ७५ %ऐसी कोई कोशिश इसलिए नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें अपनी बामारी का इल्म ही नहीं रहता है ।
सेल्फ पे हेल्थ के -यर सिस्टम भी इसके लिए कुसूरवार है .(क्योंकि इलाज़ के लक्षणों में सुधार के लिए फिजियो -थिरेपी भी की जाती है जिसे हेल्थ इन्स्युरेंस कवर नहीं करता है )।
चिकित्सा साहित्य में पार्किन्संज़ रोग को नर्वस सिस्टम का एक ऐसा प्रोग्रेसिंग विकार (निरंतर बढ़ता नर्वस सिस्टम डिस -ऑर्डर )बतलाया गया है जो मोटर न्युरोंस को असर ग्रस्त करता है ,अंगों के संचालन(मूवमेंट ) को असर ग्रस्त करता है .
एक ही हाथ के मामूली से कम्पन(ट्रेमर ) से कई मर्तबा इसकी शुरुआत होती है जिसका असरग्रस्त व्यक्ति नोटिस ही नहीं ले पाता .
अलावा इसके चिकित्साविज्ञान की भाषा में" ब्रेडी- काई-नेज़िया" (स्लोनेस एंड दिफिकल्ती इन मूवमेंट्स ,)मसलन कुर्सी से न उठपाना फ्रीज़ होजाना कदम आगे न बढा पाना भी इसी रोग की वजह से होता है .प्रकट लक्षण है रोग का- स्लोइंग और फ्रीजिंग ऑफ़ मूवमेंट जो इसमें आम तौर पर मुखरित होता है साफ़ दिखलाई देता है ।
एक दम से वेकेंट फेस (भाव -शून्य ,निर -भाव -एनिमेटिड फेस ),एक पार्किन्संज़ मास्क्स सा (मुखौटा )जैसा दिखने लगता है .,असरग्रस्त व्यक्ति का चेहरा .
संभाषण फुस -फुसाहत (सोफ्ट एंड माम्ब्लिंग स्पीच सा )में तब्दील होने लगता है .जैसे -जैसे आगे बढ़ता है मरीज़ का हुलिया (ठवन )और भी बिगड़ने लगता है .कपडे पहनना ,मुह चलाना (मूवमेंट ऑफ़ जोज़ )भी मुहाल हो जाता है ।
ब्रेन -स्टेममें डोपामिन बनाने वाली कितनी ही नर्व सेल्स (न्युरोंस )में अप -विकास (दिजेंरेशन )की वजह इस रोग का कारण बनती है .लेकिन ये कोशायें मृत क्यों हो जाती है यह कोई नहीं जानता ।
अलबत्ता उस हिस्से से बाकी न्युरोंस का संपर्क टूट जाता है .दिमागी टेलीफोन एक्स -चेंज का वह हिस्सा बेकार हो जाता है, इससे संचालित अंग भी अपना काम बंद करने लगतें हैं ।
डोपामिन एक न्यूरो -ट्रांस -मीटर है जो इन मोटर -न्युरोंस (न्यू -रोंस व्हिच क्रियेट्स मोशन ))को उत्तेजना प्रदान करता है .यही वे नाड़ियाँ हैं नर्व सेल्स हैं जो पेशियों के संचालन का नियंत्रण करतीं हैं .
डोपामिन की कमीबेशी होने पर इसका उत्पादन कम या ठ़प होने पर "मोटर सिस्टम नर्व्ज़"अंग संचालन और गति - समन्वय का काम अंजाम तक नहीं ले जा पातीं .
पैर घिसट कर चलने लगता है मरीज़ .जब त़क रोग की शिनाख्त हो पाती है ८० %तक या उससे भी ज्यादा डोपामिन बनाने वाली सेल्स मर खप जातीं हैं इनका कोई नाम लेवा भी नहीं रहता ।
अलावा इसके पार्किन्संज़ रोग को कुछख़ास टोक्सिंस भी प्रेरित कर सकतीं हैं ,इनमे खासतौर से जीवाणु -नाशी पेस्टी-साइड्स ,कार्बन -मोनो -ऑक्साइड (पर्यावरण घटक ,थेंक्स टू ऑटो मोबाइल एग्जास्ट्स ),मेग्नीज़ और कार्बन -डाई -सल्फाइड को गिनाया जासकता है ।
"केफीन ,ग्रीन -टी ,पार्किन्संज़ के जोखिम को कम कर सकती है ,सिगरेट स्मोकिंग भी ,लेकिन सिगरेट की लत से तो आदमी और रोगों से ग्रस्त होकर और पहले ही मर जाएगा ।
पार्किन्संज़ के ७७%मरीज़ अवसाद ग्रस्त तथा ८०%किसी न किसी एन्ग्जायती प्रोब्लम की चपेट में भी आजातें हैं .(एक अधययन )।
बेशक इस रोग का कोई इलाज़ नहीं है लेकिन रोग का जल्दी से जल्दी निदान हो जाने पर बहुत कुछ किया जा सकता है ,फिजिकल थिरेपी (फिजियो -थिरेपी )मेडिकेशन के संग -साथ कितनो का ही भला करती है .कल्याण करती है ।
दवाओं का लक्ष्य -डोपामिन एक्टिविटी को बढ़ाना या फिर इसके प्रभावों की नकल करना रहता है ।
दवा निगम "जी एस के "ग्लेक्सो -स्मिथ -क्लाइन "ने एक" डोपामिन -एगो -निस्ट थिरेपी" ईजाद की है (ऐसी दवा जो असर में डोपामिन जैसा ही प्रभाव पैदा करती है उसकी नक़ल करती है ),"मोनो -थिरेपी" के रूप में इसकी एक टिकिया ही शुरूआती लक्षणों के शमन के लिए काफी बतलाई गई है ।
बेशक रोग की बढ़ी हुई अवस्था में ,निरंतर आगे के चरणों में इसे अन्य दवाओं,एजेंट्स के साथ भी दिया जा सकेगा .ऐसी उम्मीद बंधी है ।
(ज़ारी ...)।
विशेष :पुनर्वास चिकित्सा ,संगीत चिकित्सा ,ट्रीड- मिल- एक्सर -साइज़ (मानव चक्की पे चलना ,कसरत करना )तथा बेलेंस ट्रेनिंग बेहद महत्व की चीज़ें साबित हो रहीं हैं .(अध्ययन )।
जो पहले चल फिर नहीं पाता था अब वह हंसता गाता गुनगुनाता क्लिनिक में दाखिल होता है (एक अध्ययन ).-यही कहना है डॉ .रोसालेस का .

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