बेशक आज की तारख में इसका कोई इलाज़ नहीं है अलबत्ता दवाएं हैं जो लक्षणों में सुधार लाती हैं ,आराम पहुंचातीं हैं मरीज़ को .लाइलाज और आगे की और बदने , बढ़के बद से बदतर होने वाला रोग है पार्किन्संज़ .
दवाओं में लीवो -डोपा को कार्बी -डोपा के साथ ही दिया जाता है .कार्बी -डोपा की उपस्तिथि में लीवो -डोपा दिमाग में पहुँचने पर ही डोपामिन में तब्दील हो पाती है अकेले दिए जाने पर रास्तें में ही शरीर द्वारा ज़ज्ब हो जाती है दिमाग मेंपहुँचने से पहले ही ,ऐसे में दिमाग में डोपामिन जैसी एक्टिविटीज़ नहीं चल पातीं हैं .
कार्बी -डोपा की मुजूदगी में नर्व सेल्स (नाड़ियाँ दिमाग की ,न्युरोंस ,दिमागी कोशायें )डोपामिन तैयार करके डोपामिन के चुकते भंडारों की क्षति पूर्ती करने में समर्थ रहती है .लेकिन रोग के आगे के चरणों में ये दोनों दवाएं अपना असर खोके अवांच्छित प्रभाव दिखाने लगतीं हैं .बेशक लीवोडोपा ७५ %रोगियों पर अपना कामयाब असर दिखाती है ,लेकिन इससे बीमारी के सभी लक्षणों में सुधार नहीं आता है .ब्रेडी -काइनेज़िया(डिफी -कल्टी- इन इनिशियेतिंग मूवमेंट )तथा रिजी -डीटी में (हाथ -पैर आदि की ,पेशियों के अकडाव में )में ज़रूर सुधार आता है .जबकि कंप में (ट्रेमर्स)में मामूली सुधार ही आपाता है ।
संतुलन और (पेशियों के )अंग संचालन में समन्वयन में ज़रा भी फर्क नहीं पड़ता है ।
एंटी -कोली -नर्जिक्स :ये दवाएं ट्रेमर और रिजी -डीटी को नियंत्रण में रखने में मददगार रहतीं हैं ।
डोपामिन -एगोनिस्तिक्स :ब्रोमो -कृप -टीन,प्रमी -पेक्सोले ,रोपिनिरोल दिमाग में पहुंचकर डोपामिन को मिमिक करती है ,डोपामिन जैसे एक्टिविटी पैदा करतीं हैं .नतीज़न न्यूरोन वो सब आदेश लेने लगतें हैं जो डोपामिन की मौजूदगी में लेते .वैसे ही रिएक्ट करने लगतें हैंजैसे डोपामिन के साथ करते ।
एंटी -वायरल ड्रग : अमंतादिने (अमन -टा -डा -इन )भी लक्षणों में सुधार लाती है जो एक एंटी -वायरल ड्रग है .
२००६ में अमरीकी दवा संस्था ने एक दवा रासगिलिने को भी अपनी मंजूरी देदी जिसका स्तेमाल रोग की अग्रिम अवस्था में लीवोडोपा के तथा शुरूआती चरण में अकेले भी किया जाता है ।
जब दवा बे -सर हो जातीं हैं तब आखिरी उपाय के रूप में ही सर्जरी का सहारा लिया जाता है .डीप- ब्रेन -स्ति-म्यु -लेषण
इसके साथ ही एक तरफ लीवो -डोपा लेते रहने की ज़रुरत नहीं रह जाती है दूसरे उससे पैदा पार्श्व प्रभाव यथा इन -वोलंटरी मूवमेंट्स (डिस -काइनेज़िया )में भी सुधार आता है ।
लक्षणों में ठहराव आता है , ट्रेमर्स ,स्लोनेस ऑफ़ मूवमेंट्स ,तथा गैट सम्बन्धी (ठवन सम्बन्धी समस्याएँ )समस्याएँ भी कम हो जातीं हैं .लेकिन इसमें स्ति -म्युलेटर (पल्स -जेनरेटर )की प्रोग्रेमिंग एक दम से सटीक होनी चाहिए .
(ज़ारी...)
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