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ब्रेन इमेजिंग :
ब्रेन इमेजिंग टेकनीकों का स्तेमाल स्ट्रोक्स (ब्रेन अटेक),ट्रौमा या फिर दिमागी ट्यूमर आदि में मौजूद असामान्यताओं को रेखांकित करने पिन पॉइंट करने के लिय किया जाता है क्योंकि बोध (संज्ञान में लेने की प्रक्रिया )सम्बन्धी परिवर्तन इन स्थितियों में भी देखने को मिल सकतें हैं .इसलिए अल्ज़ाइमर्स को पुख्ता करने के लिए इन्हें रुल आउट करना होता है .
अलबत्ता कुछ नाम चीन मेडिकल सेंटर्स में न्यूइमेजिंग एप्लिकेसंस उपलब्ध हैं जिनके ज़रिये अल्ज़ाइमर्स और सिर्फ अल्ज़ाइमर्स से ही पैदा ख़ास दिमागी परिवर्तनों के बारे में पता चल सकता है ।
ब्रेन इमेजिंग तकनीकों में शामिल हैं :
(१)सीटी यानी कम्प्युट -राइज्द टोमोग्रेफ़ी:सीटी स्केनिंग के लिए आपको इक कम चौड़ी मेज पर लिटा दिया जाता है जो खिसकते हुए इक छोटे से कक्ष में दाखिल होजाती है यहाँ एक्स किरणे आपके शरीर पर विभिन्न कोणों से पड़ती हैं तथा इनका स्तेमाल कंप्यूटर आपके दिमाग की क्रोस सेक्शनल इमेजिज़ (त्री -आयामीय -अनु -प्रस्थ -काट छवियाँ उकेरने में करता है ),टुकडा टुकडा अलग अलग हिस्सों की पूरे विस्तार सहित छवियाँ प्रस्तुत करता है कंप्यूटर ।
यह परीक्षण बिना किसी पीड़ा - कष्ट के होता है जिसे संपन्न होने में पूरा बीस मिनिट लग जातें हैं . इसका स्तेमाल ट्यूमर्स ,स्ट्रोक्स और हेड इन्ज्रीज़ (सिर की खतरनाक चोट )को बर- तरफ करने रुल आउट करने के लिए किया जाता है .
(२)मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एम्. आर. आई. ):
इमेजिंग की इस नायाब तकनीक के तहत रेडियो वेव्ज़ और शक्तिशाली चुम्ब- कीय क्षेत्रों (स्ट्रोंग मेग्नेटिक फील्ड्स )का स्तेमाल किया जाता है ।
इस टेकनीक के तहत भी मरीज़ को एक संकरी मेज पर लिटा दिया जाता है जो एक ट्यूब की आकृति की एम् आर आई मशीन में खिसका दी जाती है .इमेज़िज़ तैयार करने के दौरान यह मशीन जोरदार तरीके से बैंगिंग करती है .पूरी प्रक्रिया में एक घंटा या और भी ज्यादा समय लग सकता है ।
यह एक पीड़ा रहित प्रोसीज़र है अलबत्ता कुछ लोगों को "क्लास्त्रोफोबिक "एहसास होता है ,इमेजिज बनने की प्रक्रिया से पैदा शोर भी परेशान करता है ।(अकेले बंद कमरे में घुट के रह जाने का भय है -क्लास्तो -फोबिया ).
फिलवक्त एम् आर आइज़ का स्तेमाल बोध सम्बन्धी ह्रास की दूसरी वजहों को रुल आउट करने के लिए किया जाता है ,निकट भविष्य में इनका स्तेमाल ब्रेन टिस्यू के वोल्यूम तथा दिमाग के उन हिस्सों में होने वाले श्रिंकेज का पता लगाने में किया जा सकेगा जिनमे दिमागी सिक्डाव होता है ,सिकुड़तें हैं जो ,अल्ज़ाइमर्स में .
(३)पोज़ित्रोंन एमिशन टोमोग्रेफ़ी ,"पी ई टी स्केन"-इस प्रोसीज़र को करने से पहले एक लो लेविल रेडिओ-ट्रेसर (रेडिओ -आइसो -टॉप का अल्पांश )शिरा के द्वारा मरीज़ को इंजेक्ट किया जाता है .मरीज़ को एक मेज पर लिटा दिया जाता है .एक ओवर हेड स्केनर ट्रेसर दिमाग में कहाँ कहाँ पहुंचा कितना पहुंचा रेडिओ -आइसो -टॉप , इसका जायजा लेता चलता है ।
यह एक विशिष्ट तरीके का ग्लूकोज़ भी हो सकता है जो दिमाग के विभिन्न हिस्सों को दर्शाता चलता है उनमे चलने वाली गतिविधियों को भी .यह भी पता चलता है ,दिमाग का कौन सा हिस्सा अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहा है .अब अभिनव "पेट तकनीकों "से पी ई टी स्केन्स से दिमागी प्लाक्स के स्तरों का भी पता चल सकेगा .जिसका अल्ज़ाइमर्स से ख़ास सम्बन्ध दिखता है .
(ज़ारी ॥)।
विशेष :आगे पढ़िए -"फ्यूचर डायग्नोस्टिक टूल्स ".
मंगलवार, 19 अप्रैल 2011
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