हिस्टीरिया :आम बोल चाल की भाषा में ,अन-औपचारिक बातचीत में ही बस ,अब हिस्टीरिया उन अतिरिक्त संवेगों के लिए प्रयुक्त होता है जो बे -काबू हो जातें हैं (अन -मेनेजिबिल -इमोशनल एक्सेसिज़ )।
जो लोग हिस्टेरिकल हो जातें हैं उनका खुद पर से ही नियंत्रण हट जाता है .उनके ऊपर बेहद का डर बरपा हो जाता है जो अतीत की उन अनेक घटनाओं से जिनके मूल में कोई गंभीर विरोधाभास रहा हो ,कोंफ्लिक्ट रहा हो ,अ -निर्णीत रही आई हो ये विचारों की ज़द्दोज़हद ,रस्साकशी .
ये भय शरीर के किसीएक हिस्से पर भी केन्द्रित हो सकता है ,उस हिस्से से ताल्लुक रखने वाले किसी कल्पित रोग से (काल्पनिक समस्या से उस अंग की )।भी .
आम शिकायतकाल्पनिक बीमारी की ही रहती है -वैसे यह बॉडी डिस -मोर्फिक डिस-ऑर्डर जैसा भ्रम भी हो सकता है जिसकी अति होजाती है ,मरीज़ यही सोचता रहता है उसके नैन नक्श ठीक नहीं हैं ,इस विकार में ।
रोग भ्रमी भी हो सकता है ऐसा व्यक्ति जिसे हाइपो -कोंद्रीयाक कह दिया जाता है ।
कह देतें हैं न बेकार का हिस्टीरिया पाले रखा है अमुक व्यक्ति ने ।
इसीलिए आधुनिक चिकित्सा अब एक रोग निदान के तहत आने वाले रोग के रूप में हिस्टीरिया का कोई ज़िक्र ही नहीं करती है .
अलबत्ता हिस्टीरिया का स्थानापन्न अब एक काया -विकार बन गया है जिसे -"सोमातिज़ेशन डिस -ऑर्डर "कह दिया जाता है ।
१९८० में अमरीकी मनो -रोग संघ ने औपचारिक तौर पर "हिस्टेरिकल न्युरोसिस ,कन्वर्शन टाइप"के रोग निदान (डायग्नोसिस )को "कन्वर्शन डिस -ऑर्डर "के बतौर डायग्नोज़ करना शुरू कर दिया था ।
(ज़ारी...).
सोमवार, 25 अप्रैल 2011
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