शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

डायग्नोसिस ऑफ़ दिल्युज़न.

डायग्नोसिस ऑफ़ दिल्युज़न (दिल्युज़नल पर्स्नालेती डिस -ऑर्डर )यानी खामखयाली भ्रांत धारणा ग्रस्त व्यक्तित्व विकार का रोग निदान कैसे किया जाता है ?)
सबसे पहले तो संभावित असरग्रस्त व्यक्ति के साथ लम्बी बातचीत उसकी लाइफ सिच्युएशन्स पूर्व वृत्तांत का सामान्य जीवन कालेखाजोखा जुटाया जाता है .पहचान शिनाख्त की जाती है दिल्युज्नल डिस -ऑर्डर की .क्लाइंट (संभावित दिल्युज्नल पर्स्नालेती )की अनुमति के बाद ही उसका पूर्व चिकित्सा वृत्तांत जानने की पहल की जाती है इस एवज़ उसके नज़दीक -तर पारिवारिक सदस्यों से भी जानकारी जुटाई जाती है हर तरह की व्यवहार सम्बन्धी और दूसरी प्रवृत्तियों के बाबत .इससे दिल्युश्ज्न्स के होने न होने के बारे में निश्चय ही बड़ी मदद मिलती है ।
क्लिनिशियन(क्लिनिकल साइको -लोजिस्ट )"मेंटल स्टेटस एग्जामिनेशन "के लिए इक साक्षात्कार का सहारा लेता है इस इंटर -व्यू को ही "सेमी स्ट्रक्चर्ड इंटर -व्यू "कहा जाता है .इससे मरीज़ के कंसेन्ट्रेशन स्पान (ध्यान के एक जगह टिकने की अवधि ),याददाश्त ,तार्किक सोच तथा उसके वर्तमान हालात का सुराग मिलता है .विचार श्रृखला कैसे दौड़ती है मरीज़ में (टिपिकल थोट प्रोसिस )इसका भी इल्म होता है ।
पीटर्स दिल्युज़न इन्वेंटरी(पी डी आई ) :यह एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण है जो मरीज़ की दिल्युज्नल थिंकिंग पर ही केन्द्रित रहता है ,उसे बूझने में मदद करता है .बेशक इसका स्तेमाल और व्यावहारिक उपयोगिता रिसर्च (शोध कार्य )में ज्यादा है रोग निदान में कम ।
उपर्युक्त ही "डी एस एम् -४ -टी आर "क्राई-टेरिया है .अलबत्ता दिल्युश्ज्नल डिस -ऑर्डर का क्लासिफिकेशन (वर्गीकरण )अपेक्षा -कृत विषयी गत (रिलेतिवली सब्जेक्टिव )ही रहता है .
कई रिसर्चर दिल्युश्ज्नल डिस -ऑर्डर को साइकोटिक न मानकर डिप्रेशन का ही एक बदला हुआ स्वरूप मानतें हैं ,बकौल उनके ऐसा मरीज़ एंटी -डिप्रेसेंट्स तथा डिप्रेशन से संगत चिकित्सा के प्रति बेहतर रेस्पोंस दर्शा सकता है .
(ज़ारी...)

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