पार्किन्संज़ डिजीज एक विहंगावलोकन :
पार्किन्सन डिजीज ,पार्किन्संज़ ,इडियोपैथिक -पार्किन -सनिज्म ,प्रा -ए -मैरी-पार्किन्सोनिज्म ,पीडी ,या फिर "पेरेलेसिस एजी -टांस" सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम (केन्द्रीय स्नायु तंत्र )का एक अप -विकासात्मक विकार है ,डी -जेंरेटिव-डिस -ऑर्डर है जिसे न्यूरो -डी -जेंरेटिव डिजीज भी कहा जाता है .
ऊपर प्रयुक्त ,शब्द प्रयोग "इडियो -पैथिक "का अर्थ होता है -जिसकी वजह अज्ञात हो ,मालूम न हो जिसका कारण ,ए डिजीज विद नो नॉन काज इज इडियो -पैथिक ।
मिड -ब्रेन का एक हिस्सा होता है "सब्स -टेंशिया-निग्रा",यहाँ मौजूद कुछ डोपामिन तैयार करने वाली कोशिकाओं की मौत ही "पीडी "की वजह बनती है ,लेकिन ये कोशायें (डोपामिन कंटेनिंग सेल्स )आखिर मृत क्यों हो जाती है यह ज्ञात नहीं है ।
बीमारी के शुरूआती लक्षण सिर्फ एक हाथ के मामूली से कम्पन से शुरू होतें हैं अकसर .ये तमाम लक्षण गति से ही ताल्लुक रखतें हैं ,हाथ पैरों का जड़ हो जाना ,पैरों का ज़मीन से चिपक कर रह जाना ,उठ न पाना डग भरने के लिए ,घिसटना ,चलने पर हाथ का सामान्य दोलन न होना ,फ्रीज़ होजाना इस एक्शन का ,डिफी- कल्टी इन इनिशियेतिंग ए मूवमेंट मसलन कुर्सी पर बैठे हैं तो वहां से न उठ पाना .सब मोटर -न्युरोंस की मौत का नतीजा होतें हैं .जब तक रोग की शिनाख्त होती है (रोग निदान ,डायग्नोसिस हो पाती है )८०%तक या और भी ज्यादा मोटर न्युरोंस मर चुके होतें हैं ।
चलने में दिक्कत तो होती ही है ठवन (गैट)भी बिगड़ जाता है ,आगे की ओरकमर के बल झुका झुका ही घिसटता है मरीज़ ,चलना -फिरना कहाँ हो पाता है ठीक से .
मर्ज के बढ़ जाने पर (एडवांस्ड स्टे- जीज़ ,बाद के चरणों में )बोध सम्बन्धी ज्ञान ,कोगनिटिव डिक्लाइन ,बौद्धिक क्षमताओं का ह्रास होने लगता है ।
नींद न आना, आना तो खुद करवट न ले पाना ,ज़ब -ड़ों का जड़ हो जाना ,मुह न चला पाना कब्ज़ की समस्या पैदा कर देता है ।
अकसर पचास की उम्र के आने पर इस रोग का ख़तरा शुरू होजाता है पचास के ऊपर के ही लोगों में यह रोगज्यादातर देखा समझा गया है .
पार्किन-सोनिज्म या पार्किन्सो -नियन सिंड्रोम :मुख्य गति सम्बन्धी (जिसका सम्बन्ध मोटर न्युरोंस )लक्षणों को ही पार्किन- सोनी -यन-सिंड्रोम कह दिया जाता है .(मोटर न्युरोंस का मतलब है न्युरोंस देट काज़िज़ मोशन )।
क्योंकि इसका कोई ज्ञात कारण नहीं है इसीलिए इसे "इडियो -पैथिक -पार्किन्सोनिज्म "या पार्किन -सोनी -यन सिंड्रोम भी कह दिया जाता है ।
हालाकि रोग के कुछ" ए -टिपिकल" मामलों का आनुवंशिक आधार भी हो सकता है लेकिन ये मामले एक्स्पेक्तिद पैट्रन से हटके होतें हैं ,अन -युज्युअल होतें हैं ।
रोग के जोखिम से जुड़े कई कारणों का इस दरमियान पता चला है जिनमे कुछ पेस्टी-साइड्स भी शामिल हैं पर्यावरणी -टोक्सिंस और भी हैं मसलन कार्बन मोनो -ऑक्साइड ,मेग्नीज़ ,तथा कार्बन -डाई -सल्फाइड .केफीन और ग्रीन- टी रोग के जोखिम को कम रख सकतें हैं ,निकोटिन भी लेकिन निकोटिन के अपने खतरे हैं अन्य मेडिकल कंडीशन की चपेट में आकर स्मोकर उम्र से पहले भी मर सकता है .
पैथोलोजी ऑफ़ पार्किन्संज़ डिजीज :रोग वैज्ञानिक कारणों पर गौर करने पर पता चला है ,एक प्रोटीन का न्युरोंस में ज़माव होने लगता है -"एल्फा -सिनुक्लें"एक्युमुलेट्स इनटू इन्क्ल्युसंज़ काल्ड "लेवी बॉडीज "इन न्युरोंस ।
अलावा इसके मध्य मस्तिष्क के एक हिस्से में कुछ नाड़ियों की (न्यूरोन की )डोपामिन तैयार करने की क्षमता घट जाती है .नतीज़न डोपामिन की सक्रियता भी घट जाती है .गति संचालन के लिए ज़रूरी निर्देश -आदेश यही न्यूरो -ट्रांस -मीटर देता है इसी- लिए अंग संचालन जड़ होने लगता है शरीर के चुनिन्दा हिस्सों का .संपर्क टूट जाने से आदेश वहां तक पहुँच ही नहीं पाते .मोटर न्युरोंस क्या करें ऐसे में ?दिमागी टेलीफोन एक्सचेंज का एक हिस्सा ठ़प जो हो गया .
(ज़ारी ...)
गुरुवार, 21 अप्रैल 2011
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