चिठ्ठाकशी चिठ्ठाकारी या ब्लोगिंग कुछ के लिए एक ला -इलाज़ रोग बनके रह गया है .माहिरों ने इसे एक नाम दिया है -"ब्लोग्सेसिव कम्पल्सिव डिस-ऑर्डर "।
चिठ्ठा -लिखना ,लिखते रहना ,लिखते रहने की दुर्दम्य मजबूरी इसका पीछा करती है .यह पुरानी धुरानी रचनाओं को संभाल के रखता है ,कटे हुए नाखूनों को भी यह चिठ्ठा कह और समझ सकता है ।
इसके लक्षणों में शामिल है -
सुबह उठते ही चिठ्ठा चेक करना ,उसपे कोई चिठ्ठाड़ी,चिठ्ठाकार ,ब्लोगर आया या नहीं .दिन में बारहा इसी क्रम को दोहराना ,चिठ्ठा खोलना बंद करना इसकी मजबूरी बन जाता है जिससे यह चाहकर भी पिंड नहीं छूता पाता है .मजेदार बात यह है यह यथार्थ को जानता पहचानता और मानता भी है जो कुछ यह करता है दोहराता उसकी निरर्थकता से वाकिफ रहता है लेकिन एक रिच्युअल की तरह दोहराने से इसका तनाव कम हो जाता है .लेकिन ऐसा कुछ देर के लिए ही हो पाता है .चिठ्ठा खोल कर उसे दोबारा पढने का विचार इसे पहले से भी ज्यदा आवेग से घेर लेता है ।
इलाज़ आसान हैं "
चिठ्ठा- रोधी दवाएं ,व्यवहार चिकित्सा जिसमे चिठ्ठे की निरर्थकता से इसे रु -बा -रु करवाया जाता है .इलाज़ न होने पर इसके व्यक्तिगत ,सामाजिक ,कामकाजी सम्बन्ध भी असर ग्रस्त होतें हैं ।
ऐसा नहीं है ये प्राणि रचना धर्मी या रचनात्मक ,क्रिएटिव नहीं होता -
मौलिक ख़याल ही होते हैं इसके लेकिन होते सब चिठ्ठा सम्बन्धी ही हैं ,मसलन :
(१)बेस्ट चिठ्ठा अवार्ड ऑफ़ दी ईयर :इसके तहत चिठ्ठा -वीर ,चिठ्ठा सिंह ,चिठ्ठा शिरोमणि देने की सिफारिश यह अपने चिठ्ठे पर कई बार कर चुका है ।
(२)एक अखिल -विश्व चिठ्ठा पार्टी बनाके "मान्यवर श्री उड़न तस्तरी "को उसका आजीवन मुखिया बनाने की सिफारिश यह कई बार दूसरो के चिठ्ठे पे भी जाकर कर चुका है ।
(३)बकौल इसके चिठ्ठों का वार्षिक विवरण दिया जानका चाहिए प्रत्येक ब्लोगिये के द्वारा ।
(ज़ारी ...)
शनिवार, 30 अप्रैल 2011
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4 टिप्पणियां:
आदरणीय भाई साहेब , ब्लाग जगत को आपके सुझावों को मानना ही चाहिए |और आपने मुझे इतना मान देकर शायद एक गलती की है क्योंकि में इस लायक नहीं हूँ |शुभकामनायें
Bhaaisahib heere ki kadr jauhri hi jaantaa hai -
"bade badaai na karen ,bade na bolen bol ,
rahman heeraa kab kahe laakh takaa meraa mol ".
shukriyaa sunila kumarji -
"jo jis sammaan kaa adhikaari hai vah use milnaa chaahiye hi "ise hi angreji me kahaa gyaa hai -GIVE THE DEVIL HIS DUE.aur fir ek din "GHURE KE BHI DIN FIRTEN hAIN "-ise angreji vaale kahten hain -EVERY DOG HAS HIS DAY .
main dono baaton se sahmat hoon .
iti aadar aur nehaa se -veerubhai .
एक स्टुडेंन्ट को पी एच डी इन ब्लागिंग के लिए लेगें क्या ?
Uske liye pahle mujhe "Blogaachaarya "bannaa pdegaa .Mujhse varsishthh log baithhen hain .Main to nau -seekhiyaan hoon bhai sahib !
Ravi ratlamiji se miliye .
veerubhai .
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