गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

व्हाट आर दिलुज़ंस ?

डिलू -ज़न क्या है ?
एकऐसा अटल विश्वाश है जो या तो भ्रान्तिमूलक है (भ्रांत धारणा पर आधारित है ,वास्तव में तो भ्रांत धारणा ही है )या फिर फेंसिफुल है ,स्वप्निल और काल्पनिक जिसकी उत्पत्ति डिसेप्शन से हुई है .
यह एक रोग वैज्ञानिक विश्वाश है ,पैथोलोजिकल बिलीफ है ,जो किसी बीमारी(भौतिक ,न्यूरो -लोजिकल ,या मनोरोग ) का नतीजा है .इस धारणा ,विचार के खिलाफ सारे साक्ष्य रहते हैं ,फिर भी व्यक्ति इस पर कायम रहता है .
यह उस विश्वाश और धारणा से अलग है जो आधी अधूरी सूचना पर आधारित होता है ,किसी सिद्धांत या मूर्खता पर आधारित होता है ,कमज़ोर याददाश्त पर आधारित होता है ,इल्यूज़न से अलग है ये ,जो देखाजा रहा है उसके प्रभावों से भी परे और अलग है .
साइकोटिक डिस -ऑर्डर्स के रोग निदान में इनका बड़ा रोल है .खासकर शिजोफ्रेनिया ,पैराफ्रिनिया ,बाई -पोलर इलनेस के मेनिक चरण में (मेनिक एपिसोड्स में ),साइकोटिक डिस -ऑर्डर्स में ।
बेशक दिल्युज़ंस आर पैथोलोजिकल बिलीफ्स बट हाव डू दे कम अबाउट ?क्या अनोखे बिरले अनुभवों के बाद लोग ये भ्रांत धारणाएं बना लेतें हैं ,एक अनुक्रिया के रेस्पोंस के रूप में ?या फिर तार्किक शक्ति के अभाव से ये पैदा हो जातें हैं .पहले क्या आता है ?अजीबो -गरीब तजुर्बा या दिल्युज़न ?
क्या दिल्युज़ंस ऐसे अटल और दृढ विश्वाश हैं जो किसी का दुनिया जीवन और जगत इस सारी कायनात को देखने का ही नज़रिया बदल देतें हैं .या फिर ये ऐसी परिकल्पनाएं हैं ,हाइपो -थीसिस हैं जो कुछ असामान्य अनुभवों के बाद गढ़ी गईं हैं ?और फिर व्यक्ति उनको अटल विश्वाश अंतिम सत्य की तरह ग्रहण कर लेता है ?
दिल्युज़न इस लिए रोगात्मक (रोग विज्ञान सम्बद्ध )हैं क्योंकि ये जिस रूप में प्रकट होतें हैं वो ये वास्तव में हैं कहाँ ,नहीं हैं न ।
विश्वाश से लगते हैं लेकिन विश्वाश हैं नहीं ,एक दम से गैर -तार्किक हैं ।
दिल्युज़न सिर्फ इस वजह से पैथोलोजिकल नहीं है ,वह व्यक्ति के अनुभवों का गलत ब्योरा देतें हैं ,बल्कि इसलिए कि इनसे ग्रस्त व्यक्ति गल्प कथा के नज़दीक वास्तविकता से न सिर्फ दूर रहता है बुनियादी धारणाओं और रीति-रिवाजों से उसका संपर्क टूटा रहता है .(ज़ारी ...)

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