ट्रीट -मेंट्स फॉर दिल्युश्जंस ?
नै पीढ़ी की कुछ ऐसी एंटी -साइकोटिक दवाएं हैं जो दिल्युश्ज्नल डिस -ऑर्डर के इलाज़ में असरकारी सिद्ध हो सकतीं हैं ।
रिस्पेरी -डोन(रिस -पर -डाल),क्वेटा -पाइन (सीरो-क्वेल ),ओलेंज़ा -पाइन (ज़िप्रेक्सा ) नोवेल एंटी -साईं-कोटिक मेडिकेसंस हैं .
एजिटेशन को थामने के लिए कई अलग अलग एंटी -साइकोटिक दवाओं का एक साथ स्तेमाल लाभदायक सिद्ध होता है .ऐसी उत्तेजना और क्रोधावेग की अवस्था में मरीज़ न सिर्फ खुद को औरों को भी नुकसान पहुंचा सकता है आहत कर सकता है .
अति उग्र स्थिति में लोराज़ेपाम (अटिवान/एतीवान)के साथ एन्ग्जायती और आवेग को कम करने के लिए हेलो -पेरिडोल का इंजेक्शन भी दिया जाता है .भ्रांत धारणाओं से रु -बा -रु होने पर ही यह स्थिति मरीज़ की आती है .कई मर्तबा मरीज़ को (बेहूदा ,इन -एप्रो -प्रिएट )हरकतें करने से रोकने पर भी यह अति -उत्तेजना की अवस्था पैदा हो जाती है ।
बेशक अकसर खाने की गोलियां (ओरल एंटी -साईं -कोटिक ड्रग्स )ही मरीज़ को नियमित दी जातीं हैं दिल्युजन के साथ तालमेल बिठाने के लिए लेकिन रेस्पोंस दवा की "रुल ऑफ़ थर्ड्स "का पालन करती दिखलाई पडती है जिसमे एक तिहाई मरीज़ सकारात्मक अनुक्रिया करतें हैं (रेस्पोंड सम -व्हाट पोज़ितिव्ली ),एक तिहाई की हालत में मामूली बदलाव दिखलाई पड़ता है ,एक तिहाई की हालत और बिगड़ जाती है या फिर वे दवा ही नियमित नहीं खातें हैं ।
कोगनिटिव थिय्रेपी :आश्वस्त करती है यह चिकित्सा कमोबेश असर भी दिखाती है जिसके तहत चिकित्सक मरीज़ के भ्रात धारणाओं के प्रति व्यक्त किये गए संदेहों का दोहन और शोषण करता है .एक वैकल्पिक व्याख्या प्रस्तुत करता है दिल्युजंस की ताकि मरीज़ खुद साक्ष्य को एविडेंस को खुद देख परख सके .
तदानुभूति(इम्पैथी ) का भी इसमें स्तेमाल किया जाता है मरीज़ से काल्पनिक सवाल पूछे जातें हैं "इन ए फॉर्म ऑफ़" थिरापेतिक सोक्रेटिक डायलोग "-ए प्रोसिस देट फोलोज़ ए बेसिक क्वश्चन एंड आंसर फोर्मेट ।
कम्बाइनिंग फार्मा -कोथिरेपी विद कोगनिटिव थिरेपी इन्तिग्रेट्स बोथ ट्रीट -इंग दी पोसिबिल अंडर -लाइंग बायोलोजिकल प्रोब्लेम्स एंड दिक्रीज़िंग दी सिम्टम्स विद साइको -थिरेपी .(ज़ारी...).
शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011
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