दी डायग्नोसिस ऑफ़ ऑटिज्म स्पेक -ट्राम डिस -ऑर्डर्स :
बेशकछोटे बच्चेखासकर शिशु को लेकर आदमी ज्यादा चिंता शील हो उठता है लेकिन जितनी जल्दी रोग की, इन विकारों की पहचान हो जाती है उतना ही जल्दी सकारात्मक इंटर वेंशन शुरू हो जाता है .वन कैन नोट सस्टेन एंड एफोर्ड टू लिव इन ए मोड एंड मूड ऑफ़ डिनायल ।
गत पिछले १५ सालों में जुटाए गए साक्ष्य बतलातें हैं ,व्यापक और अर्ली इंटर -वेंशन इन ओपटी -मल एज्युकेशनल सेटिंग्स फॉर एट लिस्ट २ ईयर्स ड्यूरिंग दी प्री -स्कूल ईयर्स रिज़ल्ट्स इन इम्प्रूव्ड आउट कम्स इन मोस्ट यंग चिल्ड्रन विद ऑटिज्म स्पेक्तार्म डिस -ऑर्डर्स .
स्ट्रक्चर्ड एज्युकेशन असरकारी सिद्ध होती है ,जितना जल्दी ये मिले उतना बेहतर रहता है ।
रोग निदान का मूल्यांकन करने के लिए क्लिनिशीयन व्यवहार सम्बन्धी करेक्टर स्टिक्स (लाक्षणिक विशेषताओं )पर भरोसा रखता है ।
इनमे से कुछ लक्षण जन्म के बाद के शुरूआती महीनों में ही साफ़ हो जातें हैं ,प्रारम्भिक वर्षों में कभी भी जग ज़ाहिर हो जातें हैं ।
अलबत्ता रोग निदान के पुख्ता होने के लिए कमसे कम कम्युनिकेशन परस्पर कनेक्ट होने के लिए ज़रूरी चीज़ों में से एक मेंमुश्किलात ,सामाजिकरण (सोसलाईज़ेशन )में परेशानी , बहुत ही सीमित व्यावहार होना दिखलाई देना चाहिए .वह भी पहले तीन सालों में ।
रोग निदान दो चरणों की एक प्रक्रिया रहती है .पहली प्रक्रिया डेव -लप -मेंट स्क्रीनिंग से ताल्लुक रखती है (जिसमे "वेळ चाइल्ड" चेक अप का पूरा वृत्तांत देखा परखा जाता है दूसरी में माहिरों की एक अंतर -अनुशाशन टीम जिसमे तमाम माहिर (न्यूरोलोजिस्ट ,साईं -किआट -रिस्ट ,क्लिनिशियांस ,स्पेसल एजुकेशन के माहिर आदि शामिल रहतें हैं )अलग अलग क्षेत्रों के रहतें हैं व्यापक पड़ताल और मूल्यांकन करतें हैं असर ग्रस्त बच्चे की संभावित विकारों के लिए "ए एस डी "के होने न होने के लिए .माँ -बाप की सहायता तो ली ही जाती है हर चरण में .(ज़ारी...)
रविवार, 10 अप्रैल 2011
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