सेंसरी प्रोब्लम्स :
जब बच्चों का नजरिया शुद्ध और सटीक होता है तब वे बाहरी संवेदनों ,सेंसरी पर्सेप्शंस को ठीक तरह से समझ -बूझ सकतें हैं .जो कुछ वे महसूस कर रहें हैं ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त ज्ञान के बाद सुनतें है देखतें हैं उस सब से सीख सकतें हैं लेकिन नज़रिया (सेंसरी परसेप्शन )दोषपूर्ण होने पर उन्हें अपना पूरा परिवेश भ्रमित किये रहता है ।
कुछ आत्म विमोस से ग्रस्त बच्चे कुछ गंधों ,आवाजों स्वाद और टेक्स्चर्स के प्रति अतिरिक्त रूपसे संवेदी होतें हैं ,अनोखी प्रतिक्रया करतें हैं इनके प्रति ।
कुछ को जो कपडे पहने हुए हैं उनकी छूँ -अन भी बर्दाश्त नहीं होती ,काटती है.कुछ को घरों में स्तेमाल होने वाले वेक्यूम क्लीनर्स ,टेलीफोन की घंटी ,झंझा -तूफ़ान की आवाज़ यहाँ तक की समुद्र तट पर लहरों का आलोडन भी शोर लगता है इतना ज्यादा और खौफनाक की वे कानों को हथेलियों से ढककर चीखने चिल्लाने कराहने लगतें हैं .ऐसा अनोखा है इनका संसार ।
ज़ाहिर है इनका दिमाग सेंसरी परसेप्शन की ठीक से व्याख्या नहीं कर पाता ,सेंसिज़ में संतुलन नहीं बनाए रख पाता है .इसे कुछ जींस (जीवन इकाइयों ,जीवन की बुनियादी ईंटों )की गड़बड़ी कह लो या न्यूरल सर्किट्स का विकासात्मक विकार ,कुछ न्यूरल नेट वर्क का नष्ट हो जाना ,कुछ को गर्मी में गर्मी नहीं लगती कुछ को सर्दी में सर्दी नहीं लगती है .एक तरफ हड्डी भी टूट जाने पर यह पीड़ा से नहीं कराह्येंगे ,दीवार पर सिर पटकते रहेंगे दर्द की लकीर इनके चेहरे पर नहीं उभरेगी दूसरी तरफ किसी की छूवन हलके स्नेहिल स्पर्श से ये कराहने लगेंगे . (ज़ारी...)
रविवार, 10 अप्रैल 2011
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