रविवार, 10 अप्रैल 2011

रेपितिटिव बिहेवियर इन औतिस्तिक चिल्ड्रन .

पर्हेप्स ऑर्डर एंड सेम्नेस लेंड सम स्टेबिलिटी इन ए वर्ल्ड ऑफ़ कन्फ्यूज़न अराउंड डेम ।
क्योंकि ज्ञानेन्द्रियों का संचालन करने वाले कुछ न्यूरल सर्किट आत्म -विमोहि में नष्ट हो जाने की वजह से वह बाहरी दुनिया के साथ तालमेल नहीं बिठा पाता इसीलिए अपने बिखरे उलझे संसार में कुछ व्यवस्था लाने के क्रम में शायद वह सब कुछ एक जैसा (कल जैसा )पसंद करता है .मसलन एक ही रास्ते सेएक ही समय पर रोजाना स्कूल जाना ,एक ही समय पर नहाना ,ड्रेस अप होना ,खाना ,वही चीज़ बार बार खाना ,वह पसंद करता है ज़रा सी भी रद्दो बदल उसे खासी पीड़ा पहुंचाती है वह इसका पुरजोर प्रति -रोध करता है ।वही खिलौनेमसलन कार और रेलगाड़ियाँ,हवाईजहाज उसे चाहिए जिन्हें वह एक ही क्रम में बे -तरतीब पंक्तिबद्ध करता है रोज़ -बा -रोज़ ,ज़रा सी भी फेरबदल नहीं मिलेगी आपको इस अजीबोगरीब क्रम में .इनके साथ प्रिटेंड प्ले वह नहीं कर सकता .न वह जहाज उड़ाने का ड्रामा कर सकता है न रेलगाड़ी की नकली छुकछुक .....

कई मर्तबा दिमागमें किसी एक चीज़ की जानकारी ज्यादा से ज्यादा जानने की मजबूरी इन्हें उसी चीज़ के बारे में और ज्यादा जानने के लिए मजबूर करती है चाहे वह दिलचस्पी वेक्यूम क्लीनर्स में पैदा हो जाए या फिर रेलवे टाइम टेबिल्स में .या फिर लाईट -हाउसिज़ में .
बेशक भौतिक तौर पर ,फिजिकली ये आत्मविमोह ग्रस्त बच्चे सामान्य दिखतें हैं ,मसल कंट्रोल भी इनका अच्छा होता है लेकिन लिम्ब्स की अजीबो गरीब गति बार -बार दोहराते करते रहना इन्हें और बच्चों से अलग करदेता है .कई मर्तबा ये ओड बिहेवियार्स अति की हदों तक चले जातें हैं कई मर्तबा बड़े सूक्ष्म रूप में ज़ाहिर होतें हैं .मसलन कुछ बच्चे पंजों के बल चलते ही चले जायेंगे .कुछ एक ही मुद्रा बनाए खड़े रहतें हैं .एक हाथ ऊपर उठा रखा है तो उठा ही रहेगा देर तक .(ज़ारी...).

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