कुछ आत्म विमोह ग्रस्त बच्चे जो कुछ आप उसके सामने बोलतें हैं सिर्फ वही का वही दोहरा देतें हैं जैसे आप कहें- "ऐसे नहीं ऐसे बोल" तो बच्चा भी कहेगा :ऐसे नहीं ऐसे बोल ।
इसे कहतें है इको- लैलिया(एको -ललिया ).कई सामान्य बच्चे भी बेशक ऐसा करतें हैं लेकिन तीन साल का होने तक , यह आदत अपने आप छूट जाती है .।
कुछ बच्चे जिनमे आत्म विमोह का गंभीर रूप दिखलाई नहीं देता है थोड़ा देर से भाषा सीखतें हैं ,इनकी भाषा भी उम्र के अनुरूप न होकर उससे बढ़ चढ़ कर अति -संवर्धित रहती है शब्द कोष भी रिच (संवर्धित )रहता है लेकिन बातचीत कायम रखने में इन्हें काफी दिक्कत पेश आती है इस असाधारण प्रतिभा के बावजूद ।
दो तरफ़ा बात चीत इनके लिए बनाए रखना खासा मुश्किल सिद्ध होता है अलबत्ता ये अपनी अपनी कहते रहतें हैं एक ही विषय पर लगातार बोलते रह सकतें हैं .संभाषण कर रहें हो जैसे ,या फिर जैसे किसी नाटक में कोई पात्र लम्बे डायलोग बोल रहा हो ।
किसी दूसरे को टिपण्णी करने का मौक़ा भी नहीं देतें हैं धारावाहिक बोलते चले जातें हैं ।
दूसरी बड़ी दिक्कत यह इनको पेश आती है कम्युनिकेशन में -ये सामने वाले की बॉडी लेंग्विज ,मुख और कायिक मुद्रा नहीं समझ बूझ पाते ,बोलने के लहजे से ये पता नहीं लगा पाते सामने वाले के स्वर में आक्रोश या नाराजी है या एप्रिशियेशन .शब्द शक्ति का इन्हें बोध ही नहीं हो पाता-कोई ताना -कशी कर रहा है व्यंग्य बाण छोड़ रहा है या सच- मुच में इनकी प्रशंशा कर रहा है .
जहां तक इनके संभाषण करने बोलने का एक्सप्रेशन का ताल्लुक है एक तो यह ही मुश्किल से पता चल पाता है ये क्या कह रहें हैं ,इनकी बॉडी लेंग्विज और भी मिस -लीडिंग होती है समझ नहीं सकते आप इनका आशय ,कायिक भाषा ,मुखी मुद्राएँ ।
चेहरे के हाव भाव ,मूवमेंट्स और मुद्राओं से जरा भी इल्म नहीं होता ,जो कहा जा रहा है उससे संगतिनहीं बैठती है .कहने का अंदाज़ ,टोन ऑफ़ वोईस भी बात को स्पष्ट नहीं कर पाती ,खुलासा नहीं हो पाता उस बात जो ये कह रहे होतें हैं .भाव और भाषा में ,आशय में परस्पर कोई तालमेल नहीं रहता है .हाई -पिच "सिंग सोंग "शैली या फिर निर -भाव रोबो सी आवाज़ ही सुनाई देती है .
कुछ और बच्चे जो भाषा प्रवीण होतें हैं "लिटिल एडल्ट्स "की तरह संभाषण करते हैं अपने हम उम्रों की तरह नहीं सारगर्भित इशारों ,मुख मुद्राओं और जेस्चर्स ,तथा सटीक भाषा के अभाव में कई मर्तबा क्या ,अकसरही यह पता ही नहीं चलता ये चाहते क्या है क्या मांग रहें हैं किस पल जिसकाइन्हें नुकसान उठाना पड़ता है इनकी ज़रुरियात पता ही नहीं लग पाती ।
नतीजा यह होता है जो इन्हें चाहिए होता है यह उसे आकर हथिया लेते हैं यस फिर नाहक चिल्लातें हैं जिसका मतलब औरों को पता नहीं लग पाता ।इन्हें जब तक सिखलाया नहीं जाता स्ट्रक्चर्ड एज्युकेशन नहीं दी जाती सब कुछ ऐसे ही चलता .ऐसे में ये कुछ भी कर सकतें हैं आप तक पहुँचने अपनी बात समझाने के लिए अपने तरीके से (ज़ारी ....)।
रविवार, 10 अप्रैल 2011
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