रविवार, 10 अप्रैल 2011

कम्युनिकेशन दिफिकल्तीज़ इन ऑटिज्म .

तीन साल का होते न होते हर बालक कुछ न कुछ भाषा सीख ही जाता है .और कुछ नहीं तो बेब्लिंग तो सीख ही जाता है .मामा ,पापा ,बाबा ,पहली वर्ष गांठ आते आते उसके शब्द कोष में आ ही जातें हैं .उसका नाम पुकारे जाने पर वह मुड़ कर देखता है ,अग्तर उसे कोई खिलाओना पसंद आता है ,वह अपनी पसंदगी साफ़ साफ़ ज़ाहिर करता है ,अलावा इसके जब उसे कोई ऐसी चीज़ डी जाती है जो उसे पसंद नहीं है तो उसका स्पष्ट उत्तर होता है "नहीं "/ना .और कुछ नहीं तो वह सिर हिलादेगा जिसका मतलब ना होता है ।
लेकिन कुछ बच्चे जिन्हें ऑटिज्म डायग्नोज़ किया जाता है ता -उम्र "म्यूट "बने रहतें हैं .गूंगे के गुड सी बनी रहती है उनकी अनुभूति और अभिव्यक्ति ।
कुछ शिशु जिनमे आगे चल कर औतिज़्म स्पेक्ट्रम डिस -ऑर्डर्स(ऑटिज्म ,एसपर्जर सिंड्रोम ,पर्वेसिव डेव -लप्मेंट डिस -ऑर्डर नोट अदर -वाइज़ स्पेसी -फाइड यानी पी डी डी -एन ओ एस )के लक्ष्ण प्रकट भो जातें हैं ,जन्म के बाद के शुरूआती चंद महीनों में बेशक कबूतर सी गुटर गू यानी "कू "करते हैं बेबिल भी (शिशुओं की अपनी भाषा बड़ -बड़)लेकिन कुछ समय बड़ ही ये सब भी ठप्प हो जाता है ।
कुछ दूसरे औतिस्तिक बच्चे ५-९ साल की उम्र में लेदेकर कुछबोल चाल के शब्द और भाषा सीख पातें हैं ..कुछ और बच्चे कम्युनिकेशन सिस्टम्स जैसे पिक्चर्स और साइन लेंग्विज (संकेतों की भाषा )सीख सकतें है ।
लेकिन जो कुछ भी ये बोलतें हैं कुछ अलग हठ्के अलग तरीके से ही बोल पातें हैं .शब्दों को ऐसे अर्थ नहीं दे पातेऐसे वाक्य नहीं बना पाते जिनका कोई सार्थक अर्थ भी निकलता हो ।
कुछ केवल एकल (केवल एक ,एक ही )शब्द ही बोल पातें हैं ,कुछेक और एक ही वाक्य बार बार दोहरातें हैं .सम कैन पेरत योर स्पीच ओनली .

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