क्या है ओब्सेसिव कम्पल्सिव डिस -ऑर्डर ?
कई मर्तबा ऐसा होना सामान्य और आम बात है आप इलेक्ट्रिक आयरन से कपडे प्रेस करके उठ गए हैं और इक ख़याल के तहत दोबारा चेक करने चले जातें हैं सोचते हुए "सोकिट से प्लग निकाला था या नहीं" या कार लोक की है या नहीं यह भी मुडके देखलेतें हैं ।
लेकिन "ओ सी डी"में ऐसा दोहराव इतना ज्यादा होने लगता है की आदमी और कुछ नहीं कर पाताइन्हीं दोहरावों में लगा रहता है ,दैनिक कामों में मुश्किल पेश आने लगती है .पिंड छोड़ के नहीं देते ये ख़याल ।इन्हीं में अटका रहता है .
यदि आपको या आपके किसी प्रियजन को यह विकार है तब आप अपने को अलग थलग देखने पाने लगतें हैं ,अ-सहाय भी ,लेकिन मदद है ,इलाज़ भी हैं ,सेल्फ हेल्प (खुद की मदद के लिए )रणनीतियां भी हैं .जो इसके लक्षणों का शमन कर सकतीं हैं ।
है, क्या ओ बी सी आइये गौर करें :
यह इक "एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर" है ,औतुस्क्य विकार है ,जिसमे दुर्दमनीय और अवांच्छित ख़याल ,अनहोनी की आशंका ,इक व्यवहार का दोहराव बारहा करते रहने की मजबूरी आपको इक दम से लाचार बना देती है ,आपका पिंड छोडके नहीं देती ये खामखयाली .निराधार विचार ,व्यवहार .आपको इन्हें करना ही पड़ता है जैसे इनके करने से तनाव और घबराहट चली जायेगी ,जाती है लेकिन फिर लौट आती है फिर फिर के वही होने लगता है और व्यक्ति इक लाचारी में फंस जाता है ।
जैसे किसी पुराने रिकार्ड पे सुईं अटककेरह गई हो ,ऐसी दिमाग में कोई इक चीज़ घर बनालेती है ,कोई विचार समा जाता है .गैस स्टोव को ही आप बारहा चेक कर रहें हैं हाथ धौ रहें हैं तो धोते ही चले जा रहें हैं ,गाडी चला रहें हैं तो चलाये ही जा रहें हैं सोचते हुए वो धम्म की आवाज़ आखिर क्या थी क्या मैंने किसी के ऊपर गाडी चढ़ा दी थी वह आवाज़ आखिर थी क्या ?
अंडर -स्टेंडिंग ओब्सेसंस एंड कम्पल्संस :
बेलगाम ख्यालात हैं ओब्सेसंस ,परवश हैं आप इनके, बॉस बन जातें हैं ये आपके ,आपसे आप इन्वोलान्तरी दिमाग में जगह बना लेतें हैं ,आवेग हैं ,कुछ परछाइयां हैं इमेजिज़ हैं जो आपके पीछे पड़ी हैं ,बारहा वही बातें वही बिम्ब .ऐसा नहीं है आप रिएलिटी से वाकिफ नहीं हैं आपजानतें हैं फ़िज़ूल की हैं ये बातें फिर भी इन्हें दिमाग में आने से न रोक पातें हैं न बे-दखल करपातें हैं .ये आपको परेशां किये रहतें हैं आपका ध्यान भंग करते रहतें हैं ,बटाए रहतें हैं .
इनके पीछे चलने की मजबूरी ,व्यवहार इनके अनुरूप ,कुछ धत कर्म (निरर्थक काम ),रिच्युँल्स वैसे के वैसे हर बार कम्पल्संस हैं .आपको ऐसा लगता है इन के करने से ये विचार चले जायेंगें कुछ आराम आजायेगा ।
मसलन आपको गंदगी का डर है संदूषण से आप डरे हुएँ हैं आपको लगता है हाथों पे ज़रासीम है ,पैथोजांस हैं (रोगाणु हैं )बस आप हाथ ही धोते चले जायेंगें .बार बार लगातार .वहम कम नहीं होता संक्रमण लगने का ,आपका ऐसा करने पर भी और बढ़ जाता है डर और आशंका रोग संक्रमण की डर्ट से जर्म्स से .पहले से ज्यादा और हावी हो जाता वही ख़याल कंटा -मिनेसन का . औतुस्क्य बढा जातें हैं ये ख़याल ओब्सेसंस इसीलिए तो इन्हें एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर कहा जाता है ।
इस विकार से ग्रस्त लोगों को आम तौर पर निम्न श्रेड़ियों में रखा जा सकता है :
(१)वाशर्स(हाथ धोते रहने वाले ,नहाते दांत साफ़ करते रहतें हैं ये लोग )कंटा -मिनेसन के डर से ।
(२)चेकर्स :बंद दरवाजों ,तालों ,लोकर्सको ,स्विचिज़ ,नोब्स को ये बंद करते चेक करते रहतें हैं लौट लौट के .इक ही दरवाज़े से बार बार आते जाते रहेंगें इन्हें इन्ही चीज़ों से डर लगा रहता है कुछ अनिष्ट का ।
(३)डाऊ -टार्स एंड सिनर्स:वहम और अपराध बोध से ये ग्रस्त रहतें हैं :परफेक्शन तलाश ते रहतें हैं ये लोग अगर हरेक चीज़ इक दम सही तरीके से नहीं की गई तो कुछ बड़ा अनर्थ हो जाएगा यही ख़याल और वहम बरपा रहता है इनपर .कोई इन्हें सजा देगा .कोई इनके अपनों को भारी नुकसान पहुँचादेगा .
(४)का -उन -टार्स एंड अरेंजर्स :इन्हें ऑर्डर और सिमिट्री से प्यार है .हरेक चीज़ यथावत निर्धारित स्थान पर रखी होनी चाहिए .ज़रा भी सममिति भंग नहीं होनी चाहिए ,परफेक्ट ऑर्डर में होनी चाहिए चीज़ें रोज़ -बा -रोज़ .
कुछ संख्याएं ,रंग और अरेंजमेंट्स इनके हिसाब से शुभ रहतें हैं इनके भंग होने से अन -अभि- प्रेत ,अनिष्ट भी हो सकता है ।
(५)होर्दर्स:गैर ज़रूरी पुरानी धुरानी बेकार चीज़ों का संचय किये रहतें हैं ये लोग , काटे हुए नाखून भी इन चीज़ों में हो सकतें हैं .पुराने अखबार ,रद्दी भी .ये चीज़ों को संभाल के रखतें हैं इस आशंका से फैक दिया तो कोई अनहोनी हो जायेगी ।
विशेष :आपको महज़ ओबेसेसिव थोट्स आतें हैं ,कुछ चीज़ें आप ज़रूर करतें हैं किये बगैर रह नहीं सकतें हैं इसका मतलब ज़रूरी तौर पर यह नहीं है आप ओ .सी . डी .से ग्रस्त हैं .माइल्ड ओब्सेसन और कम्पल्सन कईयों को होता फिर भी इनका जीवन बिना खलल चलता है ।मसलन मे बिना लोकप्रिय विज्ञान लिखे रह नहीं सकता ,लेकिन बाकी भी बहुत कुछ करता हूँ सेवानिवृत्त होने के बाद भी ,खाना भी बना लेता हूँ ,बनाता हूँ शौकिया ,संगीत भी सुनता हूँ .कुछ गर्दिश (गर्दी )आवारा भी कर लेता हूँ .
लेकिन जब आप इनके चलते और कुछ कर ही न पायें बाकी सब कुछ विच्छिन्न होकर बिखर जाए ,आप की एन्ग्जायती बढ़ी रहे तब यह रोग बन जाता है ,तब जब रोज़ मर्रा के घर दफ्तर के कामों में ये ओब्सेसन आड़े आने लगें ,संबंधों पर इनकी छाया पड़ने लगे ।
(ज़ारी..).
"अगली किश्त मे पढ़िए ओब्सेसन के लक्षण और शिनाख्त ,साइन ".
रविवार, 17 अप्रैल 2011
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