हाव इज ओसीडी ट्रीट -टिड ?
ओसीडी के प्रबंधन के लिए -
(१)बिहेविअर थिरेपी के संग संग -
(२)मेडिकेशन (चिकित्सा ,दवाओं का भी स्तेमाल किया जाता है )।
दवाएं कोई अलग से नहीं है वहीँ हैं तकरीबन जो अवसाद के प्रबंधन में स्तेमाल की जा रहीं हैं .इनमे से -
(१)क्लोमिप्रमिन (२)फल्युक्सितीन(३)सर -ट्रा -लिन(४)परोक्सितीन(५)फ्ल्यू -वोक्सा -मिन आदि का नाम लिया जासकता है जिनका स्तेमाल युनिपोलर डिप्रेशन में भी किया जा रहा है ।
इनके पार्श्व /अवांच्छित प्रभावोंमें गले का सूखना (ड्राई माउथ )यानी खुश्की ,मचली और चक्कर आना प्रमुख हैं .कभी कभार इनके यौन सम्बन्धी प्रभाव भी देखने को मिलतें हैं .
कई हफ़्तों बाद इनके असर का इल्म होता है .कोई जादू नहीं हैं ये दवाएं करते करते ही असर करतीं हैं ,आपकी स्थिति में सुधार आता है ।
प्रशिक्षित व्यक्ति की देख रख में "बिहेवियर थिरेपी "का भी अपना कारगर असर पड़ता है .मसलन यदि कोई ओसीडी से असरग्रस्त व्यक्ति हर दम यही सोचता रहता है उसे गंदगी से छूत लग सकती है तब उसे गंदगी से छिटकना नहीं उसके संग रहना सिखलाया जाता है .मसलन उससे पब्लिक तोइलाट्स का स्तेमाल करने के लिए कहा जाता है और यह भी हिदायत दी जाती है हाथ सिर्फ इक ही बार धोना है बारहा नहीं .इस आदत के पुनर- बलन से (री -इन्फोर्स मेंट )अच्छे नतीजे मिलतें हैं .
यानी उन तमाम वजहों से धीरे धीरे दो चार होना सिखलाया जाता है जो ओबसेशन और एन्ग्जायती की वजह बनती हैं ।नए अनुभवों से पैदा औत्सुक्य से तालमेल बिठाने के लिए धीरज धरना भी सिखलाया जाता है .
साथ ही यह हिदायत भी दी जाती है ,अपनी हताशा और नर्वस नेस से बचने के लिए कम्पल- सिव रिच्युँल्स की पनाह नहीं लेनी है बारहा हाथ नहीं धोना है .और कोई व्यवहार सम्बन्धी दोहराव नहीं करना है ।डर चाहें ,कांटा-मिनेशन का हो या जर्म्स का उससे दो चार होना सिखलाया जाता है .
व्यक्ति ओसीडी में वास्तविकता से वाकिफ होता है उसे यह भी पता होता है "रिच्युँल्स बेजा है जिनका कोई मतलब नहीं है ,वह जितना इन्हें करता दोहराता एन्ग्जायती पलांश को कम ज़रूर होती है पुनः दूने आवेग से लौट आती है ।
"करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान ,रसरी आवत जात के सिल पर पडत निसान ."-आदत के विपरीत आचरण से आदत छूट जाती है .डर से रू -बा -रू होने से डर भाग खडा होता है .
(ज़ारी...).
रविवार, 17 अप्रैल 2011
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