रविवार, 10 अप्रैल 2011

व्हाट आर दी ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस -ऑर्डर्स?

इन विकारों (आत्मविमोहिक)से ग्रस्त तमाम नौनिहालों में सोशल इंटे -रेक्शन(सामाजिक लेन देन ,घुलने मिलने परस्पर क्रिया -प्रति क्रिया करने )में कमी बेशी रह जाती है ,शाब्दिक और सांकेतिक और मुद्राओं को भी ये नहीं समझ पातें हैं .कोई इन्हें देखकर प्यार से मुस्करा रहा है ,ये कोई प्रतिक्रया या अनुक्रिया नहीं करेंगे . दोनों ही प्रकार के सम्प्रेषण (वर्बल और नॉन -वर्बल में )इन्हें मुश्किल पेश आती है ।न कोई बेब्लिंग न किसी की ताली पर ध्यान देंगें ,कोई मुह बिरा रहा है इन्हें बिरायेचिडा रहा है चिडाये इनकी बला से .
एक ही प्रकार का व्यवहार ये बारहा दोहराते करतें हैं .एक ही किस्मकी चीज़ों में ,रास्तों में दिलचस्पी मसलन एक ही खिलोने से खेलना है उसी प्रकार से हर बार ।
ग्यानेद्रियों से प्राप्त संवेदनों आवाजों और दृश्यों के प्रति इनकी प्रतिक्रया एक दमसे अस्वाभाविक और अ-सामान्य रहती है मसलन हवा की तेज़ आवाज़ ,समुन्द्र के किनारे लहरों की आवाज़ सुनकर कानों को हथेलियों से ढक लेंगें दूसरे छोर पर कहीं धमाका हो जाए इनके आसपास इन्हें खबर ही नहीं चलेगी कोई चिल्ला रहा है इन्हें पता ही नहीं चलेगा .स्पर्श कातर बने रहतें हैं ये शिशु ,स्पर्श से ,लाड दुलार से छिटक -तें हैं यहाँ तक की सामान्य स्पर्श कपड़ों तक की छुवन से इन्हें पीड़ा हो सकती है ।टाटा ,बाई -बाई नहीं कर सकते ये .अकेले ही खेलना पसंद करतें हैं .प्रिटेंड प्ले क्या होता है इन्हें नहीं मालूम .आम बच्चा हर छोटी से छोटी चीज़ में से मनोरंजन निकाल लेता है अपनी कल्पना से ये इक ही चीज़ को देर तक बा -मकसद घूरते रहतें हैं .जैसे इनके लिए उसका कोई ख़ास मतलब हो ।
हरेक आत्म विमोहिक बच्चे में इन लक्षणों की तीव्रता अलग होगी लक्षण भी .मसलन इक बच्चा पढ़ना तो आसानी से सीख जाएगा लेकिन उसकी सामाजिक अभिव्यक्ति नहीं कर सकता .सामाजिक लेन देन बोल चाल में बहुत पीछे रह जाता है ।
संचार(अपनी बात कहने में असमर्थदूसरे की समझने के ना -काबिल ) ,सम्बन्धी ,सामाजिक और व्यवहार सम्बन्धी पैट्रन सबका अपना अलग होगा लेकिन वह इस आत्म -विमोह के स्पेक्ट्रम में दायरे में फिट होगा .इसीलिए इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस -ऑर्डर कहा गया है ।
इनका विकास आम बच्चों की तरह नहीं होता है (दिमाग के न्यूरल सर्किट्सके विकास में ही कुछ कमी रह जाती है ,कुछ नेट वर्क न्युरोंस के टूटे हुए रहतें हैं ,अविकसित या फिर नष्ट ही हो जातें हैं ),कहतें हैं न कि पूत के पाँव पालने में ही दीख जातें हैं ,पता चल जाता है यह आगे चलके कैसा होगा ,यही खबर इन बच्चों के बारे में इनके माँ -बाप को इनके बारे इनके एक साल का होने से पहले ही लग जाती है .
विद -ड्रोन अपने में ही समाये खोये से अलग थलग अपने परिवेश से बेखबर .कुछ का विकास १-३ साल तक के बीच सामान्य दिखेगा लेकिन लोगों के साथ उठने बैठने इंटे -रेक्ट करने का ढंग एक दम से अलग और असामान्य होगा .अपनी उम्र के दूसरे बच्चों से सर्वथा भिन्न और विच्छिन्न ,अ -व्यवस्थित .कभी कभी आक्रामक और गुस्सेल भी .जो कुछ सीखा था उसे भी एक दिन अचानक भूलने लगतें हैं और फिर यह सिलसिला थमता नहीं है ज़ारी रहता है यदि फ़ौरन इसकी पड़ताल के बाद इलाज़ शुरू न हो पोजिटिव इंटर -वेंशन न हो तो बढ़ता ही चला जाता है आत्म विमोह दायरे का विकार .कम नहीं होता है ।
न सिर्फ ये लोगों का तिरस्कार करने लगतें हैं व्यवहार भी अजीबो -गरीब ढंग से करतें हैं यहाँ तक की अबतक जो भाषा सीख ली थी जो हुनर हासिल किया था वह सब जाया हो जाता है .कुछ का विकास (सकारात्मक )एक चरण पर आकर रुक जाता है .लेविल हो जाता है .इसीलिए इक आत्म विमोही दूसरे से बिलकुल अलग हो सकता है ।
अगली पोस्ट में हम पढेंगें :पोसिबिल इंडी -केटर्स ऑफ़ ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस -ऑर्डर्स .(ज़ारी ....)

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