असली दवा जैसा काम करता है प्लेसिबो .इससे बढ़कर यह: एक ही सिम्पिल सुगर की गोली जो अलग अलग बीमारियों में दी गई है उन्हीं की काट के अनुरूप एक्टिव दवा सा असर करने लगती है .यानी इसके शरीर क्रियात्मक (फिजियो -लोजिकल इफेक्ट्स )प्रभाव भी बीमारी के हिसाब से जुदा हो जातें हैं ।
मसलन जब प्लेसिबो अवसाद ग्रस्त लोगों को दिया जाता है तब यह दिमाग मेंकई वैसे ही प्रभाव पैदा करता है जैसा सच- मुचअवसाद रोधी दवाएं ,एंटी -डिप्रेसेंट्स करतीं हैं .
लेकिन यही मीठी गोली (सिम्पिल सुगर )जब दवा के नाम पर कमर दर्द से बेहद आजिज़ आचुके पुराने से पुराने मरीज़ को दी जाती है तो यह बेहतरीन दर्द -नाशी ओपियोइड एनाल्जेसिक बन जाती है ।
पार्किन्संज़ के मरीजों पर भी प्लेसिबोज़ ने असर दिखया है लेकिन अलग प्रभाव पैदा करके (अवसाद के मामलों से बिलकुल अलग हठ्के )।
बिलकुल नष्ट प्राय न्युरोंस से भी न्यूरो -ट्रांस -मीटर डोपामिन तैयार करवाया है प्लेसिबोज़ दवाओं ने ,छदम दवाओं ,इन मीठी गोलियों ने ।
यकीन मानिए ५०% डॉ जर्मनी में प्लेसिबो ही प्रिस्क्राइब कर रहें हैं ।
विशेष :मुझे जरा भी अजीब न लगा यह पढ़ समझ के .लोकप्रिय विज्ञान लेखन के दौरान कोई बीस बरस पहले मैंने भोपाल की रपट फोलो की थी जिसके अनुसार ६०% लोगों को प्राइवेट प्रेक -तिश्नरों ने नुश्खे ही गलत लिखे थे लेकिन मरीज़ फिर भी अच्छे हो गए .जब डॉ कहता है "चिंता न करो ,तीन चार दिन में बिलकुल ठीक हो जावोगे "तो यह आश्वस्ति ही प्लेसिबो बन जाती है .तब क्या गंडे -तावीजों ,पढ़े हुए पानी से मौलाना साहिब के भी प्लेसिबो असर होता है ?कृपया टिपण्णी करें ।
वीरुभाई ,४३,३०९,सिल्वर वुड ड्राइव ,केंटन ,मिशिगन ,४८ १८८ -१७८१ (यु एस ए .).
सन्दर्भ -सामिग्री :माइंड -बॉडी :दी सर -प्रा -इजिंग पावर ऑफ़ दी प्लेसिबो .(सी एन एन हेअलथ ,अप्रैल ४ ,२०११ )
मंगलवार, 5 अप्रैल 2011
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