मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

रेडियेशन सेफ्टी :थिंग्स आर नोट सो बेड फॉर दी जनरल पब्लिक .

बेशक प्रशांत महासागर के वक्ष पर जापान में ११,५००टन रेडियो -एक्टिव वाटर जा चुका है ,चीज़ें उतनी बदतर नहीं है विकिरण सुरक्षा की दृष्टि से जितना की लोगों में इसे लेकर चिंता व्याप्त है .
बेशक रेडियो -एक्टिव कण धूल से नत्थी होकर हवा पे सवार हो जातें हैं फिर हवाओं का रुख जिधर भी ले जाए और फिर देर सवेर जमीन पर आ गिरतें हैं .लेकिन अमरीका जैसे दूर दराज़ के क्षेत्रों को जो ५००० मील से ज्यादा दूरी पर हैं भला इनसे क्या ख़तरा हो सकता है जबकि विकिरण आगे बढ़ने के क्रममें अपनी ताकत में छीजता चला जाता है ,विच्छिन्न हो जाता है दिस्पर्स हो जाता है ,दूरी के साथ .इसलिए विकिरण का अल्पांश यदि अमरीका के वाशिंगटन और केलिफोर्निया राज्यों में थोड़ा बहुत दर्ज़ हुआ है तो क्या आफत आगई?आसमान सिर पे उठाने की क्या और कहाँ ज़रुरत है .
अलबत्ता जो विकिरण घास में चला आया है उस विकिरण संदूषित घास को यदि गाय भैंस खातीं हैं तो यह उनके दूध में चला आता है ।
बड़ी और चौड़ी पत्तियों वाली तरकारियों ,फूल गोभी ,बंद गोभी ,लेट्स ,पालक आदि को भी ख़तरा पैदा हो जाता है ,विकिरण को ज़ज्ब होने के लिए ज्यादा सर्फेस मिल जाता है ,लेकिन आदिनांक विकिरण का स्तर कुछ फुकुशिमा की नजदीकी जिलों (प्रिफेक्चर्स )फुकुशिमा ,मियागी ,इवते आदि को छोड़कर शेष इलाकों में उतना नहीं बढा है जो सेहत के लिए जोखिम पैदा कर सके .अलबत्ता इन जगहोंसे आने वाली तरकारियों पर रोक लगा दी गई है ।
फिशिंग भी ११ मार्च के भूकंप और सुनामी के बाद से इन क्षेत्रों में निलंबित कर दी गई है ।दूध का वितरण भी .

अलबता बीफ को लेकर कोई ऐसा ख़तरा सामने नहीं आया है ,जापान से आने वाला गौ -मांस सुरक्षित है .
मछलियाँ भी समुन्दर में बाकी जिलों में सुरक्षित हैं .ये मंज़र "गल्फ आयल डिजास्टर "जैसा नहीं है .डाय्ची के नजदीकी क्षेत्र के कुछ समुंदरी जीवों के लार्वे को छोड़ कर बाकी जीव सुरक्षित हैं .
इसीलिए बकौल "ईटोक्रेसी "जापान से आने वाली मच्छी भी सुरक्षित है ।
असली ख़तरा उन जाँ- बाजों को है जो अपनी जान पे खेलके फुकुशिमा एटमी संयंत्रों को आदिनांक नियंत्रित करने में लगें हैं ,भले फिलवक्त उनकी सेहत को ख़तरा उतना न दिखे दीघावधि इनके स्वास्थ्य पर नजर रखनी होगी ।
आप "सुशी "की तलब है तो ज़रूर खाइए ।
सूशी एक जापनी केक है जिसे कोल्ड बोइल्ड राईस से तैयार किया जाता है ,हाथ से इसे तरह तरह के रूपाकारों में ढाला जाता है ,या तो "सीवीड" से इसे ढका जाता है या फिर कच्ची, पकाई गई दोनों किस्म की मच्छियों की टोपिंग्स से .वक्त गुज़र जाता है अच्छा भी बुरा भी धैर्य और विवेक को आप ताख पे उठा के न रखें .नाहक कोई अफरा तफरी ,अफवाह न फैलाएं .

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