बेशक कहा जाता जाता है -शिजोफ्रेनिया इज ए पर्स्नालेती डिस -ऑर्डर .क्योंकि इसमें आदमी ठीक से सोच भी नहीं पाता है .कुछ भी करने की पहल उसमे समाप्त हो जाती है ।चेहरा भावशून्य हो जाता है .संभाषण कुछ निर -अर्थक शब्दों का ज़मा जोड़ .जिसे अंग्रेजी में कहा जाता है "इन -कहिरेंट स्पीच ",बे -सिर -पैर की बातें ।
पूरा नज़रिया ही व्यक्ति का गड़- बड़ा जाता है .जोआपके आसपास आपके परिवेश में है ही नहीं वह दिखलाई देता है .सुनाईदेता है .स्पर्श गंध और स्वाद भी महसूस होता है ,जबकि आसपास न कोई व्यक्ति है न वाष्प जिसके हलके अणु-
उड़के आपके पास आजायें हलुवे की खुशबू से .जिसका स्नेहिल स्पर्श आपके तन मन की थकान उतार दे .फिर भी यह सब सच्चा लगे है .मेरे दोस्त !यही है -हेलुसिनेशन ।
दृश्य ,श्रव्य ,स्पर्श और स्वाद ,गंध की खाम- ख्याली यानी हेलुसिनेशन जो शिजोफ्रेनिया यानी "स्प्लिट माइंड "(स्प्लिट पर्सनेलिटी नहीं जैसा कि समझ लिया गया है ,मल्तिपिल पर्सनेलिटी भी नहीं )नामक दिमागी विकार का नतीजा है ,इक लक्षण है ।क्योंकि शिजो -फ्रेनिया का अर्थ है -"स्प्लिट माइंड "न की स्प्लिट पर्सनेलिटी .क्योंकि इस विकार में नज़रिया ही व्यक्ति का ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त ज्ञान गड़ -बड़ा जाता है .दिमागी सोचने समझने की ताकत ही विच्छिन्न हो जाती है ,बिखर जाती है .
दूसरा खासुलखास लक्ष्ण है -भ्रांत धारणा यानी दिलुज़न जिसमे आपको लग सकता है ,आपके विचारों का प्रसारण रेडियो से हो रहा है ,लोग आपके और आप लोगों के विचारों को जान लेतें हैं .और आपके लिए यह लगना दिलुज़न नहीं है .क्योंकि आप इसे सच मानतें हैं .
ये दोनों ही लक्षण "पोजिटिव सिम्टम्स"कहलातें हैं क्योंकि ये साफ़ दिखलाई देतें हैं ,मुखरित होतें हैं ,वास्तव में इन्हें होना नहीं चाहिए था ,लेकिन यह ओवर्ट हैं ,जग ज़ाहिर हो जातें हैं,मुखरित हैं , इसीलिए "पोजिटिव "कहातें हैं ।
इक और अंदाज़ है शिज़ोफ्रेनिक पर्सनेलिटी का -
कुछ भी करने की पहल नहीं है ,चेहरा भाव -शून्य है ,अब अगर आप इंसान हैं तो ऐसा होना नहीं चाहिए था ,चेहरे पर कुछ भाव होने चाहिए थे .लेकिन यहाँ तो सब कुछ सपाट है .जीवन का जैसे कोई चिन्ह ही नहीं है लेकिन आदमी ज़िंदा है ,इन्हीं लक्षणों को "शिजोफ्रेनिया" में "निगेटिव सिम्टम्स "कह दिया जाता है ।
अब अगर कोई जन्मना या किशोरावस्था के पार आते आते शिज़ोफ्रेनिक हो जाता है तो इसमें उसका तो कोई कसूर नहीं है ,समाज ,पर्यावरण ,खान -दान ,जीवन इकाइयों का ,दिमागी रसायनों का ब्रेन केमिस्ट्री का भी कोई न कोई दोष रहा होगा ,फिर समाज ऐसे व्यक्ति से छिटकता क्यों हैं ,जबकि व्यक्ति तो खुद इक उत्पाद है ,प्रोडक्ट है ,उत्पादक नहीं है ,प्रोड्यूसर नहीं है ,माँ -बाप के महज प्रेम मिलन का नतीजा है ,फिर वह भला शिजोफ्रेनिया के चलते या किसी और मानसिक रोग के चलते अभि- शप्त क्यों रहे ?
जबकि व्यष्टि से ही समष्टि पैदा होती है .व्यक्ति इक इकाई है समष्टि की ।
(ज़ारी ...)।
विशेष :आज सुबह से ही इक छटपटाहट थी ,आज विज्ञान के लोकप्रियकरण के लिए कुछ नहीं किया ,वेब -साईट की मुरम्मत चल रही थी ,इसलिए इक लिपि का दूसरी में अंतरण नहीं हो पा रहा था .रोमन में लिखी हिंदी देवनागरी में लिप्यांतरित नहीं हो पा रही थी नतीज़न जो कुछ लिखा गुलाम भाषा में लिखा ,अंग्रेजी में लिखा .चंद मिनिट पहले ,आकस्मिक रूप से वेबसाईट "ब्लोगर डोट कोम चुस्त दुरुस्त दिखलाई दी "और जो मन में आया लिख दिया -शिजोफ्रेनिया के बाबत ।
(ज़ारी ....).
शनिवार, 16 अप्रैल 2011
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2 टिप्पणियां:
'A Beautiful Mind' मेरे ख़्याल से हेल्युसिनेशन पर आज तक की सबसे बढ़िया फिल्म है
Jaankaari dene ke liye shukriyaa kaajalbhaai .
veerubhai .
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