व्हाट इज शिजोफ्रेनिया ?
शिजोफ्रेनिया इक गंभीर मानसिक विकार है जिससे १८ साल से ऊपर की उम्र के तकरीबन २४ लाख अमरीकी ग्रस्त हैं .हालाकि यह विकार औरतों और मर्दों दोनों को समान रूप से असर ग्रस्त करता है ,मर्दों में इसके लक्षणों का प्रकटीकरण (शुरुआत )किशोरावस्था के आखिरी चरण या फिर युवावस्था की देहलीज़ पर पाँव रखते हुए बीसम बीस के शुरूआती दौर में ही हो जाता है ।
जबकि औरतों में इस व्यक्तित्व विकार के लक्षण बीसम बीस के दरमियानी बरसों या फिर तीसम तीस के शुरूआती सालों में ही प्रकट होतें हैं ।
इसके कारणों का पता लगाना इक टेढ़ी खीर है क्यंकि इसका कारण और बीमारी का रंग ढंग,कोर्स ऑफ़ इलनेस हर व्यक्ति में जुदा होता है .
इसे गंभीर व्यक्तित्व विकार इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के सही तरीके से सोच पाने ,ज़ज्बातों को संभाल पाने ,संवेगों का प्रबंधन करने उनपर काबू रखने को ही असर ग्रस्त करदेता है .कुछ भी और किसी भी निर्णय पर पहुँचने औरों से सम्बद्ध होने में व्यक्ति को खासी दिक्कत पेश आती है .
यदि इलाज़ न हो रोग निदान ही न हो तो व्यक्ति के काम करने की क्षमता छीजती चली जाती है.उसे अक्षम बना देता है ये रोग -इसीलिए इसे डि -वास -टेटिंग पर -सने -लिटी डिस -ऑर्डर कहा जाता है .उसका बाहरी पोटेंशियल ,पूरी क्षमता का दोहन ही नहीं हो पाता है ।
कोई एक सीधा साधा इलाज़ शिजोफ्रेनिया का नहीं है ।
रिसर्चरों ने इसका सम्बन्ध अनेक वजुहातों से जोड़ने की कोशिश की है जो आज भी ज़ारी है ,ब्रेन केमिस्ट्री (दिमागी रसायन शाश्त्र )के अलावा व्यक्ति के पर्यावरण से भी इसका रिश्ता हो सकता है ।
डिस्कवरिंग दी ट्रुथ अबाउट शिजोफ्रेनिया :
जिन लोगों का इलाज़ असरकारी तरीके से नहीं हो पाता है उनका व्यवहार असंगत ,समझमे न आने वाला ,अजीबो गरीब ढंग का होजाता है ,अव्यवस्थित हो जातें हैं बिना इफेक्टिव ट्रीट -मेंट मिलने पर ये लोग और इसीलिए दूसरे इनसे कन्नी काटने लगतें हैं ,आँख चुरा के निकलने लगतें हैं क्योंकि ये लोग अन -प्री -डिक -टेबिल भी हो जातें हैं कब कैसा व्यवहार कर बैठे इसका कोई ठौर नहीं ,निश्चय नहीं हो पाता है .यहीं सेएक सोशल प्रेजुडिस शुरू होती है ,बहिष्कार भी ,अभिशाप बनने लगता है यह रोग असर ग्रस्त व्यक्ति के लिए ।
अकसर इस अ-सामान्य दिखने होने वाले व्यवहार की वजह हेलुसिनेसंस और दिलुज़ंस बनतेंहैं जो इस विकार के एहम लक्षणों में शुमार हैं .
अलबत्ता मेडिकेशन के संग संग मरीज़ का मनो -सामाजिक पुनर्वास ,समुदाय आधारित मदद उसे एक सारगर्भित और संतोष -याफ्ता जीवन यापन के अनुकूल बना देतें हैं ।
समुचित और समर्पित सेवाओं के न मिलपाने की वजह से कितने ही मरीज़ आज जेलों में सड़ रहें हैं जबकि उनकी असली जगह समाज है ।या फिर मानसिक रोग शालाओं के गिर्द ,"बालाजी "जैसे कई धर्म स्थलों पर भी घुमते रहतें हैं ,ला -वारिश बने .
इसे अकसर एक ला -इलाज़ रोग मान लिया जाता है .शिज़ोफ्रेनिक्सको हिंसक मान समझ लिया जाता है ।
भारतीय फिल्मों में भी इनका बे -सिर पैर का चित्रण अकसर किया गया है और इस प्रकार इनके कई असत्य और दुर्भाग्य पूर्ण बिम्ब प्रस्तुत किये गएँ हैं ।
ज्यादा तर मरीज़ हिंसक नहीं होतें हैं .सुब्स्तेंस अब्यूज के मामलों में साइकोटिक लक्षणों के उग्र होजाने से ऐसा होता है .वरना शिजोफ्रेनिया के साथ लोग वैसे ही रहतें हैं जैसे जीवन शैली रोग डायबिटीज़ या कैंसर के ।
(ज़ारी...).
शनिवार, 16 अप्रैल 2011
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