" भाव- कणिका "
भोगी हुई इक सज़ा है औरत !
मुशायरा है ,बढ़िया ,इक ग़ज़ल है ,औरत !
बृज का रसिया ,या इक बला है ,औरत !
शनिवार, 16 अप्रैल 2011
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