गत पोस्ट से आगे ...
कुल मिलाकर शिजोफ्रेनिया के साथ रह रहें लोगों में हिंसक व्यवहार बहुत कम होता है न ही यह किसी समुदाय में हिंसा का कारण बनता है .यह एक प्रबंधनीय रोग है जिसका असरकारी इलाज़ है ,अलबत्ता इलाज़ ज़ारी रहना चाहिए .
इसका भी व्यक्ति परिवार समाज समुदाय- विशेष पर, वही असर पड़ता जैसा किसी भी अन्य रोग का -नकारात्मक ,इलाज़ न हो पाने पर ।
अलबत्ता आत्म -ह्त्या के मामले आम आबादी से ज्यादा देखे जा सकतें हैं ,बराबर और बड़ा जोखिम बना रहता है इनके आत्म ह्त्या का प्रयास करने का .जीवन में एक बार तो हरेक मरीज़ आत्म ह्त्या की कोशिश करता ही है जिसकी वजह हताशा और आइसो -लेशन बनता है,मैं और आप यानी हम बनतेंहैं ।
इलाज़ के साथ आत्म ह्त्या का जोखिम भी घटकर बहुत कम रह जाता है .अलबत्ता असर ग्रस्त व्यक्ति को इलाज़ के लिए तैयार करना खासा दुष्कर साबित होता है ,बहुत पापड बेलने पडतें हैं (मैं ऐसा अपने व्यक्ति गत अनुभव से भी कह रहा हूँ बीस साल तो गुज़ारे ही होंगें इनके साथ ,)।
व्यक्ति अपने आप को विकार ग्रस्त मानता ही नहीं है उलटे आपको कहेगा -तुम करा लो इलाज़ ,मैं ठीक ठाक हूँ .इनका बहुलांश अपने को अस्वस्थ ही नहीं मानता है (हेलुसिनेसंस और दिलुज़ंस इनके लिए असली होतें हैं ,नकली हो जाएँ तो फिर दिलुज़नहेलुसिनेसन कहाँ रह जायेंगें ?
जागरूकता की इसी कमी को ,नज़रिए के इसी विकार को "अनासोग्नोसिया "कहा जाता है .
(ज़ारी ...)
शनिवार, 16 अप्रैल 2011
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