कोई लेबो -रेटरी टेस्ट्स नहीं है ओसीडी के रोग निदान (डायग्नोसिस )के लिए .अलबत्ता बच्चों में अन्य रोगों की संभावना को खारिज करने के लिए डायग्नोस्टिक तकनीकों का सहारा लिया जा सकता है ।
अमूमन मरीज़ के साथ लम्बी बातचीत ,क्वेश्चन -आंसर्स ,मौजूदा लक्षणों के आधार पर रोग का निदान किया जाता है ।
ओबसेशन और कम्पल्शन दोनों का ब्योरा जुटा- या जाता है .ओबसेशन कोई भी ऐसा अवांच्छित लेकिन न टाले जा सकने वाला विचार ,वहम ,कुछ चीज़ें ,स्पर्श होता है जो मरीज़ का "बोस" बनाउसे नचाता रहता है ।
जबकी कम्पल्शन उससे तालमेल बिठाए रखने वाला (आम तौर पर कोई भी ऐसा कर्म काण्ड ,रिच्युअल जिसे इस वहम में मरीज़ करता दोहराता रहता है की इससे उसकी नर्वसनेस ,एन्ग्जायती ,घबराहट कम होगी जो कम तो क्या होती है पहले से ज्यादा दूनी हो जाती है .)मरीज़ के द्वारा खुद बनाए गए विधान के अनुरूप कर्म होता है ,क्रिया होती है .जैसे कोई दिन में पचासों बार हाथ ही धोता रहता है तो कोई इक ही दरवाज़े से अन्दर बाहर आता जाता रहता है ,किसी अनिष्ट को टाले रखने के लिए यह किया गया वैधानिक काम होता है जो उसने खुद के लिए तय किया है .चौकिदारा है यह ,चौकसी है उसकी तरफ से ।
कहीं किसी चीज़ को छूने से किसी से हाथ मिलाने से रोग संक्रमण न हो जाए यह चौबीसों घंटा बने रहने वाला विचार "ओबसेशन "है और इससे बचावी उपाय के रूप में खुद के बनाए नियम मुताबिक़ हाथ धोते रहना "कम्पल्शन "है ।
रोग निदान का यही चीज़ें ,आवर्ती -दोहराव वाला व्यवहार आधार बनता है ।
(समाप्त ).
रविवार, 17 अप्रैल 2011
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