गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

साइकोलोजिकल थिरेपीज़ फॉर बाईपोलर डिस -ऑर्डर .

बाईपोलर डिस -ऑर्डर क्योंकि हमारे दिमाग को असर ग्रस्त करता है (दिमागी बीमारी समझी जाती है )ऐसे में बहुत स्वाभाविक ही है जिसे भी यह डायग्नोज़ हो जाता है उसके संवेगात्मक , भावजगत ,तथा बोध जगत की कार्य प्रणाली को असरग्रस्त किये नहीं रहता ।
इसलिए मनोवैज्ञानिक इलाज़ इक कारगर इलाज़ हो सकता है फार्मा -कोलोजिक ट्रीट मेंट्स के साथ- साथ .इससे हासिल करने के लिए अनेक लक्ष्य हो सकतें हैं ।
(१)दवा दारु को नियम निष्ट तरीके से लेने के प्रति सचेत रहना ।
(२)दूसरे ऐसे ही लोगों के साथ कनेक्ट होना जो इस विकार से ग्रस्त
हैं ।
(३)नकारात्मक व्यवहार को लगाम लगा ना ।
(४)औरों के साथ खुद अपने साथ तालमेल बिठाना सीखना .इसी सिलसिले में यहाँ कुछ चिकित्सा प्रणालियों (थिरेपीज़ )का ज़िक्र करना प्रासंगिक होगा ।
(१)कोगनिटिव बिहेवियर थिरेपी (संबोध ,बोध व्यवहार सम्बन्धी चिकित्सा )।
(२)डाय -लेक्तिकल बिहेवियर थिरेपी ।
(३)फेमिली /मेरिज कोंसेलिंग ।
(४)गेस्ताल्ट(जेस्ताल्ट )थिरेपी ।
(५)ग्रुप थिरेपी (समूह चिकित्सा )।
(६)साइको -एना -लेतिक थिरेपी (मनो -विश्लेषणात्मक चिकित्सा )।
(७)टाक थिरेपी .(संवाद /बातचीत चिकित्सा ).
विशेष :गेस्ताल्ट :व्यक्ति के विचार तथा अनुभवों का समुच्चय जिसपर एक इकाई के रूप में विचार किया जाता है .
जिसे उसके अलग अलग (व्यक्तित्व के हिस्सों )से अलग समझा जाता है ।
गेस्ताल्ट थिरेपी :यह मनो -चिकित्सा (साइको -थिरेपी )का ही एक स्वरूप है .जिसमे सारा जोर फीलिंग्स उन (एहसासों )पर रहता है .,उन व्यक्तिगत मामलों पर रहता है जिनका समाधान (रिजोल्यूशन ,विभेदन )व्यक्ति खुद नहीं कर सका है और अभी तक इसीलिए अ-विभेदित (अन -रिज़ोल्व्द )पड़ें हैं .ये ही वे मसले हैं जो व्यक्तित्व निर्धारण में व्यक्तित्व विकास में अपना रोल प्ले करतें हैं ।
गेस्तालत साइकोलोजी :यह मनो विज्ञान की एक विशेषीकृत शाखा है ,जो व्यक्ति के व्यवहार और नज़रिए (पर -सेप -शन)को एक इकाई के रूप में लेती है उसे अलग अलग उद्दीपनों का ज़मा जोड़ मान कर नहीं चलती है .
डाय -लेक -टिकल थिरेपी /डाय -लेक -टिकल :दो विरोधी विचारों से पैदा तनाव ,चर्चा के द्वारा सही बात (सत्य )का पता लगा ना .डाय -लेक -टिक डिबेट रिज़ोल्विंग कोंफ्लिक्ट ।
(ज़ारी...).

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